रामकुमार नायक/ रायपुरः छत्तीसगढ़ अपनी कला संस्कृति और प्रथा परंपरा के नाम से भी जाना जाता है. यहां जन्म से लेकर मृत्यु तक अलग अलग रस्म और संस्कार पूरे किए जाते है. छत्तीसगढ़ में खासकर शादियों में भिन्न भिन्न प्रकार की रस्में होती है. इन्हीं रस्मों में से एक रस्म परछन रस्म की है. इस रस्म की खास बात यह है की इसके माध्यम से दूल्हे के माता, घर के बड़ी महिलाएं वर वधु को आशीर्वाद देती हैं.
समय ने सभी के जीने का तरीका बदल दिया है. वैवाहिक कार्यक्रम का स्वरुप भी बदल गया है. धन ने वैवाहिक के मूल स्वरुप को बदल कर रख दिया है. अब दिखावा अधिक है. पहले घर से बारात निकलती है. बेटी की विदा घर से होती थी अब यह रस्म खत्म सी हो गई है जिस कराण रिश्ते मजबूत नहीं रहते हैं. आधुनिकता के कारण वैवाहिक कार्यक्रम दिखावा बन कर रह गये हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में आज भी विवाह की रस्में निभाई जाती है.
विवाह कार्य में परछन दो प्रकार
ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि छत्तीसगढ़ के शादियों में कई प्रथा परंपरा आज भी प्रचलित है.जैसे कि हमारे छत्तीसगढ़ के विवाह कार्य में परछन दो प्रकार का होता है.एक परछन तो वह होता है कि जब लड़के की बारात निकल रही होती है तो मंगल कलश जिसमें ज्योत जल रहा होता है उसको लेकर के एक सुहागन खड़ा हो जाती है और दूल्हे की मां, बड़ी मां, मामी, चाची समेत जितनी बड़ी उम्र की घर की माताएं बहनें हैं वह सभी ज्योत से हाथ दिखा करके वर के सिर में आशीर्वाद देते हुए छूते हैं. आशीर्वाद देती हैं. इसे ही परछन यानी मौर सौपना कहते हैं. विवाह के बाद जब लड़का दुल्हन लेकर अपने घर आता है तब दरवाजे पर ही परछन किया जाता उसे डोला परछन कहते हैं डोला अर्थात हमारा बेटा डोली में बहु को लेकर आया हुआ है यहीं सोचकर माता बहनें यह रस्म पूरी करती है और वर वधु को आशीर्वाद देती हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 7, 2024, 17:18 IST