कैलाश कुमार/बोकारो.लोक आस्था का महापर्व छठ पूरे रीति रिवाज और नियम अनुसार मनाया जाता है. ऐसे में झारखंड और बिहार में छठ पर्व पर कोसी भरने की महत्वपूर्ण परंपरा है. जिसमें श्रद्धालु छठी मैया से अपनी मनोकामना प्राप्ति के लिए और मनोकामना पूर्ण होने पर कोसी भरते हैं.
कोसी भरने की परंपरा को लेकर बोकारो के सेक्टर वन राम मंदिर के पुजारी शिव शास्त्री ने बताया कि छठ लोक आस्था का महापर्व है. जिसमें लोक रीति के अनुसार श्रद्धालु कोसी भरने का परंपरा अदा कि जाती है. इस विधि में मुख्य रूप से मिट्टी के बर्तन में भगवान सूर्य को फल फूल मिष्ठान आदि शुद्धता के साथ दीपक जलाकर कर अर्पण किया जाता है.
ऐसी होती है पूजा
पुजारी शिव शास्त्री ने बताया कि इस विधि में मुख्य रूप से हाथी कलश और चौमुखी कलश का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें 6 गनों के बीच कलश को स्थापित कर पान पत्ता, सुपारी ,नारियल और सिक्का और चावल आदि रख कर पूजन किया जाता है और कलश के आसपास 12 या 24 छोटी मिट्टी के बर्तन पर पूरी ,ठेकुआ ,चावल के लड्डू रखे जाते हैं.
उन्होंने आगे बताया कि कोसी के ऊपर तैयार 6 गनों पर लाल कपड़े पर सिंदूर का टिकाकर और सूर्य देव को प्रार्थना कर उसमें ठेकुआ, पूरी और प्रसाद भरकर गाट बांध दिया जाता है. फिर छठ पूजा की विधि पूर्वक समाप्ति के बाद इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है.
1 साल तक रखा जाता है संभाल कर
मनोकामना प्रति वाले कोसी विधि में उपयोग होने वाले मिट्टी के बर्तनों को संभालकर एक वर्ष के लिए रख देते हैं. पंडित शिव जी ने बताया कि कोसी भरने की परंपरा मूलत बिहार के गंगा तट के रहने वाले आसपास के क्षेत्र से शुरू हुई और धीरे-धीरे यह प्रचलन दूसरे जिले और राज्यों तक पहुंचा और आज यह देशभर में इसका चलन है. आज भी श्रद्धालु अपने मनोकामना और विश्वास पर छठ व्रत कर निष्ठा के साथ कोसी भरने की परंपरा अदा करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 17, 2023, 10:58 IST