हाइलाइट्स
संसद की दहलीज तक नहीं पहुंच पाई हैं बिहार की 195 जातियां.
जाति गणना के बाद हक मांगने सामने आ सकती हैं ये जातियां.
हिंदुओं में 10-12 जातियां ही सक्रिय रूप से राजनीति में हैं आगे.
पटना. नीतीश सरकार की जातीय गणना रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में कुल 13 करोड़ से अधिक की आबादी है. इनमें से सबसे अधिक आबादी 63% ओबीसी का है. इसमें भी हिस्सेदारी की बात करें पिछड़ा वर्ग से 27% और अत्यंत पिछड़ा वर्ग की 36% आबादी है. इसके बाद बिहार बिहार में अनुसूचित जाति यानी SC वर्ग की 19% अनुसूचित जनजाति यानी ST वर्ग की आबादी 1.68% है. वहीं, बिहार में सामान्य वर्ग के लोगों की संख्या 15.52% है. राज्य में मुस्लिमों की संख्या 17.70 प्रतिशत है. इसके साथ ही विभिन्न जातियों की संख्या भी सामने आ चुकी है, जिसके बाद राज्य में आबादी के अनुरूप आरक्षण का दायरा बढ़ाने की मांग जोर पकड़ रही है.
दरअसल, राजनीतिक दल प्राय: यह नारा देते रहे हैं कि- जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. अब जातिवार गणना की रिपोर्ट आने के बाद प्रतिनिधित्व व सरकारी सुविधाओं में हाशिए पर खड़ी कम संख्या वाली जातियों में भी उचित राजनीतिक हिस्सेदारी की भावना प्रबल हो रही है. इस बात के संकेत पूर्व मुख्यमंत्री की इस मांग से भी मिलते हैं कि उन्होंने कहा कि अब जो दरी बिछाएगा वही बैठेगा भी. जाहिर है विकास से पिछड़ी जातियां वे अपने अधिकारों के लिए के लिए अपनी आवाज प्रबलता से उठा सकती हैं. दरअसल, इसके पीछे की सच्चाई आंकड़ों से भी स्पष्ट होती है.
चुनावों की चौेकानेवाली हकीकत
दरअसल, बिहार में प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से उतारे गए प्रत्याशियों की सूची बताती है कि सिर्फ 21 जातियों को ही टिकट के लायक समझा गया था. बता दें कि जातिवार गणना के अनुसार बिहार में कुल 215 जातियां हैं. स्वतंत्रता के बाद देश में लोकसभा के कराए गए कुल 17 चुनावों का इतिहास बताता है कि इनमें से 195 जातियां अभी तक संसद में अपनी उपस्थिति तक दर्ज कराने से वंचित रही हैं. बड़ी हकीकत यह है कि मात्र 20 जातियों को ही संसद के प्रतिनिधित्व अवसर मिल सका है.
हर वर्ग में दबंगों का दबदबा कायम
बिहार की राजनीति के हिसाब से देखा जाए तो बड़ा सच यह भी है कि प्रदेश में 10-12 जातियां ही प्रमुख रूप से राजनीति में सक्रिय रहती हैं. ऐसे में ये पार्टियां भी इन्हीं जातियों के बीच से अपने-अपने प्रत्याशियों की तलाश करती हैं. बिहार की राजनीति की जातीय सच्चाई पर लिखी गई वरिष्ठ पत्रकार श्रीकांत की पुस्तक ‘बिहार में चुनाव, जाति और बूथ लूट’ से भी सामने आती है, जिसमें यह हकीकत बताई गई है कि किस तरह से समाज की (चाहे वो अगड़े हों या पिछड़े) प्रमुख जातियां अपनी ही बिरादरी से संसद या विधायक चुनने में दिलचस्पी रखती हैं.
इन जातियों से ही चुने गए हैं सांसद
श्रीकांत की पुस्तक में बिहार में चुनाव, जाति और बूथ लूट के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि 1952 से अब तक यादव, ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ, कुर्मी, कोइरी, बनिया, कहार, नाई, धानुक, नोनिया, मल्लाह, विश्वकर्मा, पासवान, रविदास, मांझी, पासी, मुस्लिम और ईसाई समुदाय से ही सांसद चुने गए हैं. अन्य जातियों को अभी भी अपनी बारी का इंतजार है. बिहार विधानसभा चुनावों में यह आंकड़ा थोड़ा बड़ा है.
10-12 जातियों में ही लगी रहती होड़
जानकार बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय की बात अगर छोड़ दी जाए तो इन हिंदू जातियों में से करीब 10-12 जातियां ही अति सक्रिय राजनीति कर पाती हैं. अनारक्षित सीटों पर यादव, भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत, कुर्मी, कायस्थ, कोईरी, बनिया, कहार, धानुक एवं मल्लाह के बीच ही टिकट के लिए होड़ होती है.
एससी समुदाय का भी बुरा हाल
दूसरी ओर बिहार में अनुसूचित समुदाय के लिए लोकसभा में आरक्षित सीटों की संख्या छह है और इनकी जातियों की संख्या 22 है. इन सीटों पर भी चार-पांच जातियों की ही प्रधानता रहती है. इनमें पासवान, मांझी, रविदास एवं धोबी सबसे आगे हैं. अन्य 18 जातियों को मुकाबले से भी बाहर मान लिया जाता है. जातिवार गणना की जारी रिपोर्ट को ऐतिहासिक बताने वाले दलों को यह आंकड़ा सतर्क करने के लिए काफी है, क्योंकि अब वंचित जातियों में भी प्रतिनिधित्व पाने की भावना प्रबल हो सकती है.
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Tags: Bihar politics, Caste Based Census, Caste Census
FIRST PUBLISHED : October 4, 2023, 13:55 IST