सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान बेंच ने 15 फरवरी को इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने SBI को मंगलवार शाम तक इलेक्टोरल बॉन्ड का पूरा डेटा सौंपने को कहा था. SBI ने मंगलवार शाम 5.30 बजे चुनाव आयोग को डेटा सौंप दिया था. इसके बाद चुनाव आयोग (EC) ने गुरुवार को इसे सार्वजनिक किया. 11 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने बैंक को फटकार लगाई थी और 12 मार्च शाम तक यह डिटेल देने का निर्देश दिया था.
चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए BJP, कांग्रेस, AIADMK, BRS, शिवसेना, TDP, YSR कांग्रेस को डोनेशन मिला. इलेक्टोरल बॉन्ड के खरीदारों में अपोलो टायर्स, लक्ष्मी मित्तल, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुला वाइन, वेलस्पन और सन फार्मा शामिल हैं.
SBI ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी थी मोहलत
4 मार्च को SBI ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी जानकारी देने के लिए 30 जून तक का वक्त मांगा था. SBI का कहना था कि डेटा का मिलान करने में समय लगेगा. इसके लिए 30 जून तक की मोहलत मांगी गई थी.
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11 मार्च को हुई थी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी देने से जुड़े केस में SBI की याचिका पर सोमवार (11 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट ने करीब 40 मिनट सुनवाई की थी. SBI ने कोर्ट से कहा था- ‘बॉन्ड से जुड़ी जानकारी देने में हमें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ समय चाहिए.’ इस पर CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा- ‘पिछली सुनवाई (15 फरवरी) से अब तक 26 दिनों में आपने क्या किया?’ सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा- ‘SBI 12 मार्च तक सारी जानकारी का खुलासा करे.’
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इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम क्या है?
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी. 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया. ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहते हैं. SBI से इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है. सरकार का दावा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी. साथ ही ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा.
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दूसरी ओर, इसका विरोध करने वालों का तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं.
बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई. 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें. हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई.
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