चीन के पूर्व प्रधानमंत्री ली क्विंग की दो नवंबर को अंत्येष्टि की जाएगी

चीन के पूर्व प्रधानमंत्री ली क्विंग की यहां बृहस्पतिवार को अंत्येष्टि की जाएगी। दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो जाने के कुछ दिनों बाद मंगलवार को एक आधिकारिक घोषणा में यह जानकारी दी गई।
पद से इस्तीफा देने के कुछ महीनों बाद ली (68) का 27 अक्टूबर को शंघाई में निधन हो गया।
सरकारी मीडिया की खबर के अनुसार, उन्होंने मार्च में सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था।
सरकारी शिन्हुआ समाचार एजेंसी की खबर के अनुसार, ‘‘कॉमरेड ली के पार्थिव शरीर की अंत्येष्टि बृहस्पतिवार को बीजिंग में की जाएगी।’’
ली को 2012 में सत्तारूढ़ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) का नेतृत्व करने के लिए शी के खिलाफ मजबूत दावेदार माना जा रहा। वह प्रधानमंत्री के तौर पर करीब एक दशक, मार्च 2013 से मार्च 2023 तक, शी के बाद चीन के दूसरे नंबर के नेता रहे।

सीपीसी, कैबिनेट और संसद ने अपने एक शोक संदेश में ली के निधन को भारी नुकसानबताया है।
उन्हें सीपीसी का एक श्रेष्ठ सदस्य, समय पर खरा उतरने वाले, विश्वस्त कम्युनिस्ट सैनिक और एक शानदार सर्वहारा क्रांतिकारी, राजनेता तथा पार्टी एवं देश का नेता बताया गया है।
उनके पार्थिव शरीर को 27 अक्टूबर को एक विशेष विमान से शंघाई से बीजिंग ला गया था।
उनके निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए थियानमन चौक, शिन्हुआमेन, द ग्रेट हॉल ऑफ पीपल, बीजिंग में विदेश मंत्रालय और प्रांतों, स्वायत्त क्षेत्रों एवं नगरपालिकाओं में सीपीसी कार्यालयों पर राष्ट्र ध्वज बृहस्पतिवार को आधा झुका रहेगा।
यहां एक आधिकारिक घोषणा में कहा गया कि हांगकांग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र, बंदरगाहों, हवाई अड्डों और चीनी दूतावासों तथा वाणिज्य दूतावासों में भी राष्ट्र ध्वज आधा झुका रहेगा।

वह जाने-माने अर्थशास्त्री थे और आर्थिक मंदी से निपटने में उन्होंने काफी मदद की।
उनके शी से असहज संबंध रहे, जिन्होंने राष्ट्रपति पद पर रहने के दौरान सत्ता में अपनी पकड़ मजबूत की और पार्टी के संस्थापक माओत्से-तुंग के बाद चीन के सबसे शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे हैं।
ली ने 2020 में अपने वार्षिक संवाददाता सम्मेलन में खुलासा किया था कि चीन के 60 करोड़ लोगों की मासिक आय बमुश्किल 140 डॉलर है। यह टिप्पणी दुनियाभर में सुखियां बनीं और पार्टी नेतृत्व को यह पसंद नहीं आया था।
अर्थशास्त्री ली को 2013 में कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन नेता हू जिंताओ का उत्तराधिकारी माना जाता था, लेकिन सत्ता शी के हाथ में चली गयी थी। हू के सर्वसम्मति से आगे बढ़ने की नीति को पलटते हुए शी ने शक्तियों पर अपनी पकड़ बना ली, जिससे ली और पार्टी की सत्तारूढ़ सात सदस्यीय स्थायी समिति के अन्य सदस्यों के पास बहुत कम शक्तियां बचीं।
प्रधानमंत्री बनने के शुरुआती वर्षों में ली भारत के प्रति चीन की नीति के प्रबंधन से जुड़े। प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा भारत के दौरे के रूप में की थी।

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