चीन की आक्रामकता उसके उदय के साथ और अधिक स्पष्ट हो गई है : सीडीएस जनरल चौहान

चीन की आक्रामकता उसके उदय के साथ और अधिक स्पष्ट है और भारत को अपनी समग्र “रणनीतिक गणना” में इस पहलू को ध्यान में रखना होगा। प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने बृहस्पतिवार को विभिन्न राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों और गहन भू-राजनीतिक परिवर्तनों पर चर्चा करते हुए यह बात कही।
वार्षिक जनरल केवी कृष्ण राव स्मृति व्याख्यान देते हुए सीडीएस ने चीन के साथ उत्तरी सीमाओं पर भारत के “प्रमुख विवाद” का भी उल्लेख किया और सुझाव दिया कि नयी दिल्ली को रणनीतिक स्वायत्तता का पत्ता चलना होगा।
उन्होंने कहा, “रणनीतिक स्वायत्तता आपके खतरों से निपटने के बजाय अवसरों का फायदा उठाने के लिए प्रासंगिक हो सकती है। भविष्य यहीं होना चाहिए।

हमें अवसरों के बारे में अधिक सोचना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “यह सब जो मैंने कहा वह उत्तरी पड़ोसी के कारण थोड़ी चेतावनी के साथ आता है। इस रणनीतिक गणना में भारत को चीन के एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरने को भी ध्यान में रखना होगा।”
सीडीएस ने कहा, “चीन की आक्रामकता उसके उदय के साथ और अधिक स्पष्ट है। भारत का चीन के साथ उत्तरी सीमाओं पर बड़ा विवाद है और उसे रणनीतिक स्वायत्तता का कार्ड खेलना होगा…।”
वैश्विक भू-राजनीतिक व्यवस्था में व्यवधानों पर चर्चा करते हुए, उन्होंने भारत के अपने दृष्टिकोण में “रणनीतिक स्वायत्तता” बनाए रखने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया और कहा कि देश “गुटनिरपेक्षता” के अपने दृष्टिकोण से विश्व-मित्र के युग में आगे बढ़ रहा है।

उन्होंने 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों, रूस-यूक्रेन युद्ध पर उसके “तटस्थ और सूक्ष्म” रुख और प्रतिबंधों की धमकियों के बावजूद मास्को से एस-400 मिसाइल प्रणालियों की खरीद के साथ आगे बढ़ने के फैसले का भी “रणनीतिक स्वायत्तता” के उदाहरण के तौर पर उल्लेख किया।
प्रमुख रक्षा अध्यक्ष ने भारत की गुटनिरपेक्ष होने से लेकर रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने की यात्रा का भी सार दिया।

उन्होंने कहा, “अगर मुझे गुटनिरपेक्षता से लेकर रणनीतिक स्वायत्तता हासिल करने तक की भारत की यात्रा का सारांश प्रस्तुत करना हो, तो मैं जो कह सकता हूं वह ‘तीन एस’ पर आधारित हो सकता है। पहला है भारत को सुरक्षित करना। अगला है आत्मनिर्भरता। और अंत में, भारत के लाभ और हित के लिए पर्यावरण को आकार देना।”
जनरल चौहान ने वैश्विक भू-राजनीति के आर्थिक पहलुओं के बारे में भी विस्तार से बताया और कहा कि शक्ति का वैश्विक संतुलन आर्थिक संरेखण और यहां तक कि नैतिकता, धार्मिकता और वैश्विक हितों के अभिसरण जैसे मुद्दों से भी स्थानांतरित किया जा सकता है।

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