धीरज कुमार/मधेपुरा:- आमतौर पर बच्चों को आप यह कहते हुए सुनते होंगे कि माता- पिता, दादा-दादी का सपना पूरा करना है. लेकिन आज हम आपको मधेपुरा जिले के एक ऐसे युवक की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने अपने चाचा के सपने को पूरा किया है. पैसे के अभाव में चाचा बीच में ही वकालत की पढ़ाई छोड़ दिए. बालपन में यह बात दिव्यांशु भारद्वाज को इतनी चुभ गई कि बड़े होकर उन्होंने वकील ही बनने की ठान ली. देश के प्रतिष्ठित लॉ संस्थान से मास्टर की डिग्री लेकर आज वे सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस करते हैं और गरीबों के केस की पैरवी फ्री में करते हैं.
कोविड के कारण टूट गया विदेश से पढ़ाई का सपना
मधेपुरा जिले के झलारी गांव के रहने वाले दिव्यांशु भारद्वाज बताते हैं कि प्राथमिक शिक्षा उन्होंने गांव के जयधारी मिडिल स्कूल से की. इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वो देहरादून चले गए. वहां से उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई की. इसके बाद एमिटी लॉ स्कूल दिल्ली से लॉ में स्नातक किया. दिव्यांशु की चाहत थी कि मास्टर की डिग्री वे विदेश से लें और इसके लिए उन्होंने प्रयास भी किया. लेकिन कोविड के कारण वेडरहम यूनिवर्सिटी से पढ़ाई नहीं कर पाए. फिर यहीं ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी से उन्होंने मास्टर्स पूरा किया. अब वो देश के सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस कर रहे हैं.
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गरीब और निःसहाय की करते हैं मदद
लोकल 18 बिहार से बात करते हुए दिव्यांशु बताते हैं कि उनके पिता किसान हैं. बचपन में चाचा को वकालत की पढ़ाई करते हुए देखा, लेकिन पैसे के अभाव में चाचा वकालत की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए. बस तभी से मन में ठान लिया था कि बड़ा होकर उन्हें वकालत ही करना है. अब वह सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस कर रहे हैं. वे बताते हैं कि उनके क्षेत्र में गरीबी बहुत ज्यादा है. केस लड़ने के लिए लोग जमीन तक बेच देते हैं. इस कारण से वे अपने इलाके के गरीब और निःसहाय की मदद करते हैं. वे बताते हैं कि जब भी अपने पैतृक गांव आते हैं, तो कई लोग जमीन विवाद का केस लेकर उनके पास आते हैं. वे ऐसे लोगों की निःशुल्क मदद करते हैं. वे कहते हैं कि जीवन में धन-दौलत ही सबकुछ नहीं है, वकील का असली काम पीड़ितों को न्याय दिलाना है.
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FIRST PUBLISHED : March 1, 2024, 12:38 IST