चर्चित कथाकार और बेजोड़ प्रेमी नफीस अफरीदी का निधन

हापुड़ के मशहूर लेखक नफीस अफरीदी का निधन हो गया. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. बीती रात घर पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन पर हापुड़, गाजियाबाद सहित समूचे साहित्य जगत में शोक व्यक्त किया है. अशोक अग्रवाल, डॉ. अशोक मैत्रेय, डॉ. तिलक सिंह, डॉ. अजय गोयल और धर्मपाल अकेला सहित तमाम साहित्यकार ने अफरीदी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है. लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व उनकी पत्नी अफरोज शाहीन का निधन हुआ था. अफरोज शाहीन भी खुद एक बेहतरीन शायरा थीं. अफरोज के निधन पर वे बहुत व्यथित हो गए और अंदर ही अंदर घुलने लगे थे. आज मंगलवार को उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया.

चर्चित कवि और पत्रकार आलोक यात्री नफीस अफरीदी को याद करते हुए लिखते हैं- “नफीस साहब अपनी नफासत के लिए मशहूर थे. पिताश्री (से. रा. यात्री) से उनका याराना आला दर्जें का था. क्या मकबूल लेखक थे. इश्किया कहानी कहने का उनका हुनर लाज़वाब था. और किस्सागो भी कमाल के. पिछले लगभग 20 बरस से उनसे मेल-मुलाकात का सिलसिला नहीं बन सका. उनसे मुलाकात का जरिया पूजन प्रियदर्शी और अवधेश श्रीवास्तव के अलावा दीपक योगी और ताराचंद डाबर जी हुआ करते थे. पूजन प्रियदर्शी और अवधेश श्रीवास्तव हापुड़ छोड़ गए और डाबर साहब व दीपक योगी दुनिया ही छोड़ गए.”

आलोक यात्री लिखते हैं- “पिछले बरस दो-तीन बार हापुड़ जाने का अवसर मिला भी लेकिन उम्र संबंधी व्याधियों से ग्रस्त होने की वजह से वह मुलाकात का समय नहीं दे पाए. पिताश्री के बाद नफीस साहब का चला जाना हिंदी साहित्य की तो बड़ी क्षति है ही, निजी तौर पर मेरे लिए भी उनका जाना एक बड़ी क्षति है. नफीस साहब मुझ जैसे पार्टटाइम लेखक के उस्ताद हुआ करते थे. उस दौर (अस्सी के दशक के आसपास) के हम जैसे पाठक उनके लिखे के दीवाने थे.‌ वह एक बेहतरीन संपादक भी थे. संपादक होने के नाते हम अपने लिखे पर उनसे सलाहियत ले लिया करते थे.”

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आलोक यात्री बताते हैं कि नफीस अफरीदी की मेहमाननवाजी भी बेमिसाल थी. पिताश्री के साथ उनके घर (हापुड़) कई बार‌ जाना हुआ. हम समझते थे कि उनके दस्तरख्वान पर हम ही भोजन के लिए आमंत्रित हैं, लेकिन वहां तो पूरी चौकड़ी जमा रहती थी. भाभी अफरोज जी अन्नपूर्णा का साक्षात अवतार नजर आती थीं.

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स्वप्निल श्रीवास्तव, नफीस अफरीदी (मध्य में) और अशोक अग्रवाल.

हापुड़ का वह स्वर्णिम काल था. अशोक अग्रवाल, सुदर्शन नारंग और नफीस अफरीदी साहब ने हापुड़ को साहित्य के आकाश में मजबूती से स्थापित कर रखा था. अब नफीस साहब नहीं हैं‌ लेकिन उनके कहानी संग्रह ‘किस्सा दर किस्सा’, ‘अग्निकुण्ड’, ‘अपनी-अपनी सीमाएं’, ‘धूप का दरिया’, ‘दूसरी दुनिया’, ‘मिट्टी का माधो’, ‘बाबू की बगिया’ व विशिष्ट कहानियां तथा उपन्यास ‘वायदा खिलाफ’, ‘खुले हुए दरीचे’, ‘एक थका सच’, ‘फिर भी अकेले’, नाटक ‘शव यात्रा’, ‘प्रभु तेरी माया’ के रूप में वह हमारे बीच बने रहेंगे.

नफीस साहब की रचनाधर्मिता विविधता से भरी हुई थी. मंडी हाउस के अवतरित होने के दौरान ही टेलीनाटक की भी शुरुआत हुई और नफीस साहब इस नए फ्रेम में भी बाकमाल फिट नज़र आए. उनके नाटकों पर‌ जहां टेलीफिल्म बनीं वहीं देश भर के की मंचों पर उनके नाटक काफी पॉपुलर भी हुए.

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नफीस अफरीदी (बाएं), अशोक अग्रवाल, अवधेश श्रीवास्तव और अमितेश्वर.

वरिष्ठ लेखक महेश दर्पण नफीस साहब के निधन की सूचना पर अवाक रह गए. यह दुखद सूचना सुनते ही उनके मुंह से निकला- “हापुड़ साहित्य जगत का एक स्तम्भ और ढह गया.”

महेश दर्पण उन्हें याद करते हुए बताते हैं कि नफीस अफरीदी की कहानियों के माध्यम से और व्यक्तित के माध्यम से उनकी अलमस्ती का पता चलता है. नफीस का अध्ययन और भाषा ज्ञान प्रभावित करता है. नफीस साहब बड़े अच्छे संपादक थे. साम्प्रदायिकता से कोसे दूर थे नफीस साहब.

पुराने दिनों को याद करते हुए महेश दर्पण बताते हैं कि हापुड़ में किसी जमाने में पंडित और पठान की जोड़ी मशहूर हुआ करती थी. उनमें पंडित अमितेश्वर शर्मा थे और पठान नफीस अफरीदी थे.

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हापुड़ में अवधेश श्रीवास्तव के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में नफीस अफरीदी और अफरोज शाहीन. (बाएं से तीसरे और चौथे स्थान पर)

महेश दर्पण याद करते हैं कि एक बार धीरेंद्र अस्थाना के साथ वह हापुड़ गए तो नफीस साहब ने उन्हें ऐसी जगह बैठाया जहां ओपन शराबखाना था. इस पार्टी में भी वह अपनी पत्नी के साथ शरीक हुए. यह वाकई एक ऐसी जगह थी जहां हमें सआदत हसन मंटो के किरदार नजर आ रहे थे.

वह बताते हैं कि आजादी के बाद भारतीय साहित्य में हिन्दुस्तानी भाषा की एक अलग पहचान थी और जिन कलमकारों ने इस हिंदी-उर्दू की इस तहजीब आगे बढ़ाया उनमें नफीस अफरीदी का नाम प्रमुख है.

चर्चित कहानीकार और पत्रकार अवधेश श्रीवास्तव बताते हैं कि नफीस अफरीदी एक चर्चित लेखक, कुशल संपादक और बेजोड़ प्रेमी थे. प्यार-मोहब्बत की दुनिया में भी उन्होंने मिसाल कायम की. बताते हैं कि नफीस कोटा, राजस्थान के रहने वाले थे. पत्रों के माध्यम से उनकी अफरोज शाहीन से मुलाकात हुई. और ख़तों की मुलाकात कब मोहब्बत में बदल गई, पता ही नहीं चला. नफीस अफरीदी अफरोज की मोहब्बत में इस कदर डूबे की कोटा में भरापूरा परिवार छोड़कर हापुड़ आ गए और यहीं के होकर रह गए. अफरोज शाहीन के पिता हापुड़ में चर्चित दंत चिकित्सक डॉ. शब्बीर हसन की बेटी थीं. डॉ. शब्बीर भी अपने समय के बेहद उम्दा शायर थे.

अवधेश श्रीवास्तव पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि हापुड़ में वैश्विक साहित्य मंच पर विशेष पहचान दिलाने वालों में नफीस अफरीदी प्रमुख रचनाकार थे. उनकी रचनाओं में अधिकांश चरित्र कमजोर मुस्लिम वर्ग के लोग हुआ करते थे. अवधेश बताते हैं कि चूंकि खुद नफीस ने पूरा जीवन संघर्ष किया, इसलिए उनके संघर्ष की छाप लेखन पर भी दिखलाई पड़ती है.

उत्तर प्रदेश सरकार में अधिकारी रहे चर्चित लेखक और कवि स्वप्निल श्रीवास्तव नफीस अफरीदी को याद करते हुए लिखते हैं- आठवें दशक में मेरी नौकरी की शुरूआत गाजियाबाद और जनपद के विभिन्न जगहों जैसे पिलखुवा, गढ़मुक्तेश्वर और हापुड़ में हुई. हापुड़ में प्रभात मित्तल (संपादक पश्यन्ती), अशोक अग्रवाल, सुदर्शन नारंग, नफीस आफरीदी, अवधेश श्रीवास्तव और हरफनमौला अमितेश्वर से मुलाकात हुई. इस मंडली से प्रभात मित्तल, सुदर्शन नारंग, अमितेश्वर इस परिदृश्य से विदा हो चुके हैं. अब नफीस आफरीदी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. हापुड़ शहर में अब विरानगी छा गई है. कोई शहर इमारतों से नही बनता, वहां के लोग उसे मशहूर करते हैं. स्वप्निल श्रीवास्तव ने नफीस अफरीदी और अन्य मित्रों के साथ पुरानी तस्वीरें अपने सोशल मीडिया पेज फेसबुक पर शेयर करते हुए उन्हें याद किया है.

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