घनी झाड़ियों में दफन है प्राचीन कालीन धरोहर, 12वीं शताब्दी से जुड़ा है इतिहास

अर्पित बड़कुल / दमोह. प्राचीनकाल में मप्र के बुंदेलखंड इलाकों में भगवान विष्णु को मानने वाले लोगों के प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी दमोह जिले में मौजूद हैं. तेंदूखेड़ा ब्लॉक के बगदरी ग्राम के नजदीक घने जंगलों में मौजूद मोहड़ ग्राम में भगवान विष्णु के अवतारों में से एक हयग्रीव अवतार की प्रतिमा और मढ़ का होना इस बात का पुख़्ता प्रमाण है कि आज भी दमोह जिले कि धरा में प्राचीन धरोहर अलग-अलग स्थानों में मौजूद है, जिन्हें देखने पर जिले का पुराना इतिहास प्रतीत होता है. परंतु इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता है जिससे इन्हें संजोया जा सके, लेकिन जवाबदार अफसरों द्वारा आज तक इतिहास को गहराई से जानने और खोजने का प्रयास भी नहीं किया गया.

घनी झाड़ियों में दबी पड़ी है 11-12वीं शताब्दी की अमूल्य धरोहर
मोहड़ गांव से 2 किलोमीटर दूर बीच खेत खिलहान में एक प्राचीन मढ़ है, जो कंटीली झाड़ियों से पूरी तरह से ढका हुआ है, जहां जहरीले जीव जंतु डेरा डाले हुए है. इस मढ़ के तकरीबन 300 मीटर की दूर तक के क्षेत्रफल में प्राचीन धरोहर बिखरी पड़ी है, जो संरक्षण का इंतजार करते करते विस्मृति के गर्त में समाती जा रही है. यहां अलग-अलग करीब 5 स्थानों पर मढ़े के भग्नावशेष बिखरे हुए कंटीली झाड़ियों में दबे पड़े हैं, यदि इन झाड़ियों को हटवा दिया जाए तो यह मढ़ा बहुत कुछ सलामत है और वर्तमान में गर्भ ग्रह मंडप का भाग क्षतिग्रस्त अवस्था में अपने मूल स्थान पर बना हुआ है.

मंदिर के अवशेषों से इसके शिखर के आकार की विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है. देवालयम का मंडप मिश्रित कोटि के चार स्तंभ से युक्त हैं, मंडप की छत पर पूर्ण विकसित कलम कंद का अंकन अभी भी दिखाई देता है. गांव के बुजुर्ग ग्रामीणों की मानें तो इस देवालय का निर्माण कल्चुरी शासकों ने नवमी शताब्दी में किया था. पत्थरों पर की गई नक्काशी अद्भुत, प्रतिमाओं का अंकन बहुत ही खूबसूरत तरीके से किया गया है. मोहक शिल्पांकन और प्रतिमा की अवस्था में इसके तंबू पर खूबसूरत तराशी हुई कलाकृतियां मौजूद है.

जंगलों के बीच में मौजूद है प्राचीन धरोहर का खजाना
मोहड़ गांव तक जाने के लिए घने जंगल पगडंडी और कच्चे रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है. मुख्य सड़क मार्ग से 7 किलोमीटर अंदर घने जंगलों के बीच में मौजूद है प्राचीन धरोहर का खजाना. यह मढ़ गांव से 2 किलोमीटर दूर खेत खलिहान के बीचों बीच पूरी तरह से कटीली झाड़ियां, लताओं और जहरीले जीव जंतुओं का ठिकाना बन चुका है. मोहड़ ग्राम के जनपद सदस्य सोनू यादव ने बताया कि धीरे-धीरे हमारी विरासत विलुप्त होती जा रही है, जिन्हें यदि संजोया नहीं गया तो आने वाली पीढ़ी कैसे हमारी संस्कृति और विरासत को देख पाएगी.

वहीं सरपंच संतोष बंसल की मानें तो विभाग को जल्द से जल्द इसका जीर्णोद्धार कराना चाहिए ताकि दमोह की धरोहर को विलुप्त होने से बचाया जा सके. पुरातत्व अभिलेखागार अधिकारी डॉ. सुरेंद्र चौरसिया ने बताया की धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास किया जाना सही है जिले के दौनी, अलौनी और मोहड़ ग्राम महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में परगणित होते हैं मोहड़ से प्राप्त हैग्रीव स्वरूप का अंकन इस संग्रहालय की महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है.

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