गौ वत्स द्वादशी के दिन की जाती है गाय- बछड़े की पूजा, जानिए क्या है इसका पुराणों में महत्व और पूजा विधि

प्रवीण मिश्रा / खंडवा. कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गौ वत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है. इसे बछ बारस भी कहते हैं. ये गाय पूजन का पर्व है. इस पूजा से अन्नपूर्णा की विशेष कृपा प्राप्त होती है. सनातन धर्म में गाय में सभी देवी-देवताओं का वास बताया गया है. इस बार यह पर्व 9 नवंबर दिन गुरुवार को मनाया जा रहा है.

ज्योतिषाचार्य पंडित राजेश पाराशर नेबताया कि इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा जरूर करना चाहिए. आज गाय को रोटी खिलाएं या हरी घास खिलाएं. किसी गौशाला में कुछ दान करें. इस दिन महिलाएं घर आंगन को गोबर से लीप कर चौक पूरती हैं.

गौमाता के साथ श्रीकृष्ण  की पूजा करना चाहिए
यहां गाय और बछडे की धूप, दीप नैवैद्य आदि से विधिवत पूजा की जाती है. गोवत्स द्वादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं पूजा में चावल का इस्तेमाल न करें. इस दिन गेहूं, चावल का सेवन भी न करें, साथ ही दूध या दूध से बनी चीजों का सेवन भी वर्जित है. इस दिन भोजन में चने की दाल बनाने की भी परंपरा है.गौमाता या उनकी प्रतिमा के साथ ही श्रीकृष्ण की भी पूजा करनी चाहिए.

भविष्यपुराण में भी है उल्लेख
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता में समस्त तीर्थ होते हैं. इसमें इस बात उल्लेख है कि गाय के गले में विष्णु का, पृष्ठदेश में ब्रह्म का और मुख में रुद्र का वास है. इसके रोमकूपों में महर्षि, पूंछ में अनंत नाग, खुरों में समस्त पर्वत, मध्य में समस्त देवता और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं. गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी का वास है.

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