गोरखपुर दरअसल, गोरखनाथ मंदिर , विष्णु मंदिर, गीता वटिका, गीता प्रेस, चौरीचौरा शहीद स्मारक के लिए प्रसिद्ध है. इसके साथ ही आरोग्य मंदिर, रामगढ़ ताल, पुरातात्विक बौद्ध संग्रहालय, इमामबाड़ा, नक्षत्रशाला आदि भी आकर्षण का केंद्र हैं. पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, बंधु सिंह के बलिदान और संत कबीर के देहत्याग की गवाह भी यही धरती है. मशहूर शायर फिराक गोरखपुरी और मुंशी प्रेमचंद कर्मस्थली भी यही धरती है. कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म तो बनारस में हुआ था लेकिन कर्मभूमि गोरखपुर ही बना. उन्होंने गोरखपुर से दमदार पात्र तलाश कर ऐसी कृतियां गढ़ दीं, जो साहित्य जगत में आज भी मील का पत्थर है. ईदगाह और नमक का दारोगा यहीं लिखी गई थी.
कपिलवस्तु और कुशीनगर ने दुनिया के नक्शे पर दिलाई पहचान
वहीं भगवान बुद्ध से जुड़े कपिलवस्तु (गोरखपुर से 116 किलोमीटर दूर) और कुशीगर (गोरखपुर से 53 किलोमीटर दूर) को दुनिया के नक्शे पर गोरखपुर को स्थापित करते हैं.कुशीनगर में भगवान द्ध ने अपना अंतिम उपदेश दिया और महापरिनिर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया और रामाभार स्तूप में उनका अंतिम संस्कार किया गया था.
चौरीचौरा कांड भी यहीं से जुड़ा
स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण असहयोग आंदोलन के स्थगित होने की वजह बना चौरीचौरा भी गोरखपुर में ही है. दरअसल, असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों के एक बड़े समूह पर अंग्रेजों ने गोली चलवाई थी, जिसमें कई आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी. इसके बाद जब गोलियां खत्म हो गई तो पुलिसवाले थाने की ओर भागे. पुलिसवालों ने खुद को थाने में बंद कर लिया. पुलिस की गोलीबारी से गुस्सायी भीड़ ने 4 फरवरी 1922 को स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े लोगों ने ब्रिटिश सरकार की एक पुलिस चौकी में आग लगा दी थी, जिसमें वहां छुपे 22 पुलिसकर्मी जल गए थे. इस घटना को चौरीचौरा कांड के नाम से जाना जाता है. इसी के चलते हिंसा के खिलाफ गांधीजी ने कहा था कि हिंसा होने की वजह से असहयोग आंदोलन उपयुक्त नहीं रह गया और उसे वापस ले लिया था.
रामग्राम नाम से लेकर गोरखपुर तक का सफर
गोरखपुर के नाम भी कई बार बदला गया. छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व इसका नाम रामग्राम था. इसके बाद पिप्पलीवन, गोरक्षपुर, फिर सूब-ए-सर्किया, अख्तरनगर, गोरखपुर सरकार, मोअज्जमाबाद और 1801 से अब तक गोरखपुर नाम है. मुगलकाल में जब जौनपुर में सर्की शासक हुए तो इसका नाम बदलकर सूब-ए-सर्किया कर दिया गया था. औरंगजेब के शासन के दौरान इसका नाम मोअज्जमाबाद पड़ा. औरंगजेब का बेटा मुअज्जम यहां शिकार के लिए आया था. उसी के नाम पर शहर का नाम बदल दिया गया. अंग्रेजों ने 1801 में इसका नाम ‘गोरखपुर’ कर दिया जो नौवीं शताब्दी के ‘गोरक्षपुर’ और गुरु गोरक्षनाथ पर आधारित है.
लोकसभा सीट पर कब रहा किसका कब्जा
1952 से 67 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिंहासन सिंह, 1967 से 70 तक महंत दिग्विजयनाथ निर्दलीय, 1970 से 1971 महंत अवैद्यनाथ (निर्दलीय), 1971 से 77 नरसिंह नारायण पांडेय (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस), 1977 से 80 हरिकेश बहादुर (भारतीय लोकदल), 1980 से 1984 हरिकेश बहादुर (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस), 1984-89 मदन पांडेय (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस), 1989-90 महन्त अवैद्यनाथ (हिन्दू महासभा), 1991-96 महन्त अवैद्यनाथ (बीजेपी), 1996-98 महन्त अवैद्यनाथ (BJP), 1998-2017 योगी आदित्यनाथ (BJP), 2018-19 प्रवीण कुमार निषाद (सपा) और 2019 से अब तक रवि किशन (बीजेपी).
गोरखपुर लोकसभा सीट के पिछले (2019) चुनाव का ब्यौरा
दोनों लोकसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. 2019 में इस सीट से रवि किशन जीते थे. निकटम प्रतिद्वंद्वी रामभुआल निषाद से 301664 वोटों से जीते थे. रवि किशन को 415458 वोट मिले थे.वहीं बांसगांव से बीजेपी के कमलेश पासवान जीते थे.