गीता कोड़ा के BJP में आने के बाद… क्‍या है अब जातीय समीकरण? समझें पूरा गणित

चाईबासा. चाईबासा सीट से कांग्रेस की सांसद व झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा सोमवार को बीजेपी में शामिल हो गईं. राज्‍य के पूर्व मुख्‍यमंत्री मधु कोड़ा की पत्‍नी व पश्चिम सिंहभूम जिले की सांसद गीता कोड़ा पार्टी ने कांग्रेस से इस्‍तीफा दे दिया. अब ऐसे में मधु कोड़ा के पार्टी छोड़ने पर कांग्रेस को किस तरह नुकसान और बीजेपी को कैसे उनके आने से सियासी लाभ होगा इसको लेकर चर्चा तेज हो गयी है. मधु कोड़ा के इस्तीफे के बाद चाईबासा के जातिगत समीकरण को समझना भी जरूरी है.

दरअसल चाईबासा लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. यह सीट सरायकेला- खरसावां और पश्चिमी सिंहभूम जिले में फैली हुई है. यह इलाका रेड कॉरिडोर का हिस्सा है. इस सीट पर अनुसूचित जनजाति का दबदबा है. उरांव, संताल समुदाय, महतो (कुरमी), प्रधान, गोप, गौड़ समेत कई अनुसूचित जनजातियां, इसाई व मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक भूमिका निभाते हैं. 2014 के चुनाव में बीजेपी को अनुसूचित जनजातियों की गोलबंदी के कारण जीत मिली थी.

सभी सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित

इस सीट के अंतर्गत सरायकेला, चाईबासा, मंझगांव, जगन्नाथपुर, मनोहरपुर और चक्रधरपुर विधानसभा सीटें आती हैं. ये सभी सीटें भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इनमें से जगन्नाथपुर से सोनाराम सिंकू विधायक हैं. बाकी पांच पर जेएमएम का कब्जा है. यहां कुल मतदाता 11.52 लाख हैं. इनमें से 5.83 लाख पुरुष और 5.69 लाख महिला वोटर्स शामिल हैं. 2014 में यहां पर 69 फीसदी मतदान हुआ था.

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जानें कब किसका रहा दबदबा

1957 से लेकर 1977 तक इस सीट पर झारखंड पार्टी का दबदबा रहा. 1957 में शंभू चरण, 1962 में हरी चरण सोय, 1967 में कोलाई बिरुआ, 1971 में मोरन सिंह पूर्ति और 1977 में बागुन संब्रुई जीते. 1980 में बागुन संब्रुई ने कांग्रेस का हाथ थाम लिया और चुनाव जीतकर फिर संसद पहुंचे. इसके बाद वह 1984 और 1989 का चुनाव भी जीते. यानि बागुन संब्रुई इस सीट से लगातार चार बार सांसद बने. 1991 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के कृष्णा मार्डी जीते. 1996 में पहली बार इस सीट पर बीजेपी का खाता खुला.

2009 में मधु कोड़ा ने मारी थी बाजी

बीजेपी के टिकट पर चित्रसेन सिंकू जीते. 1998 में कांग्रेस ने वापसी की और विजय सिंह सोय जीते. 1999 में बीजेपी के टिकट पर लक्ष्मण गिलुवा जीतने में कामयाब हुए. एक बार फिर इस सीट से बागुन संब्रुई सांसद बने. 2004 में वह कांग्रेस के टिकट पर पांचवीं बार संसद पहुंचे. 2009 में इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मधु कोड़ा जीते. 2014 के चुनाव में बीजेपी के लक्ष्ण गिलुवा जीते.

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