(विमल कुमार/ Vimal Kumar)
हिंदी फिल्मों के अमर गीतकार शैलेंद्र को भला कौन भूल सकता है? एक जमाना था जब हिंदी के आलोचकों ने उन्हें वह महत्व नहीं दिया जिसके वे हकदार थे. लेकिन रूस की जनता ने उन्हें बहुत प्यार और सम्मान दिया, यहां तक कि रूस के प्रधानमंत्री भी शैलेंद्र के गीतों के दीवाने थे.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू जब 1955 में मास्को गए थे तो वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री बुलगानिन ने श्री 420 फिल्म का मशहूर गीत “आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं” सुना कर पंडित नेहरू का स्वागत किया था. इस घटना से पता चलता है कि शैलेन्द्र रूस में इतने लोकप्रिय हो गए थे कि उनके गानों की मुरीद रूस की जनता हो गयी थी. साहित्य अकादमी द्वारा ‘भारतीय साहित्य के निर्माता’ सीरीज में शैलेन्द्र पर प्रकाशित पुस्तक में यह जानकारी दी गई है.
वरिष्ठ कहानीकार असग़र वजाहत गीतकार शैलेंद्र के बारे में कहते हैं- “फिल्म के लिए गीत लिखना शैलेंद्र के लिए रचनात्मक चुनौती था. उनके सामने अपनी विचारधारा और लोकप्रियता के बीच एक रास्ता निकालना था. इसी जोखिम भरे काम को सफलता के साथ किए जाने की वजह से उनके गीत श्रेष्ठ कविता के उदाहरण बन गए हैं.”
सबसे महंगे गीतकार होने के बाद शैलेंद्र को मिलती थी महज 500 रुपये पगार, मथुरा से था विशेष लगाव
असग़र वजाहत भी हिंदी साहित्य जगत में शैलेंद्र को महत्व न मिलने पर आहत दिखलाई पड़ते हैं. वे लिखते हैं- “मेरे विचार से शैलेंद्र की कविता, गीतों के संबंध में अधिक काम नहीं हो पाया है. उन्हें हिंदी के पाठ्यक्रम में भी स्थान नहीं मिला है. जबकि मेरे विचार से शैलेंद्र किसी भी तरह आजादी के बाद सामने आए हिंदी के महत्वपूर्ण कवियों से किसी तरह कम नहीं है.”
शैलेन्द्र मूलतः बिहार के आरा जिले के अख्तियारपुर गांव के थे पर उनका जन्म 30 अगस्त, 1923 को रावलपिंडी में हुआ था. क्योंकि उनके पिता वहां काम करते थे. गीतकार शैलेन्द्र की 33 कविताओं की किताब “न्यौता और चुनौती” सन् 1955 में प्रकाशित हुई तो उन्हें आलोचकों ने हिंदी साहित्य में जगह नहीं दी. इस पुस्तक में एक जगह पर शैलेंद्र लिखते हैं-
खेतों में, खलिहानों में,
मिल और कारखानों में,
चल-सागर की लहरों में
इस उपजाऊ धरती के
उत्तप्त गर्भ के अन्दर,
कीड़ों से रेंगा करते-
वे ख़ून पसीना करते!
वे अन्न अनाज उगाते,
वे ऊंचे महल उठाते,
कोयले लोहे सोने से
धरती पर स्वर्ग बसाते,
वे पेट सभी का भरते
पर खुद भूखों मरते हैं!
“न्यौता और चुनौती” कविता संग्रह में शैलेंद्र देश के नेताओं को गरीबों की बस्ती में घूमने का न्योता देते हैं-
लीडर जी, परनाम तुम्हें हम मजदूरों का,
हो न्यौता स्वीकार तुम्हें हम मजदूरों का;
एक बार इन गन्दी गलियों में भी आओ,
घूमे दिल्ली-शिमला, घूम यहां भी जाओ!
जिस दिन आओ चिट्ठी भर लिख देना हमको
हम सब लेंगे घेर रेल के इस्टेशन को;
‘इन्क़लाब’ के नारों से, जय-जयकारों से–
खूब करेंगे स्वागत फूलों से, हारों से!
दर्शन के हित होगी भीड़, न घबरा जाना,
अपने अनुगामी लोगों पर मत झुंझलाना;
हां, इस बार उतर गाड़ी से बैठ कार पर
चले न जाना छोड़ हमें बिरला जी के घर!
लेकिन 2013 में उनका कविता संग्रह छपा तो प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह ने भूरी-भूरी प्रशंसा की. पुस्तक के लेखक ने लिखा कि रामविलास शर्मा जैसे बड़े आलोचक ने शुरू में शैलेन्द्र की कविताओं को महत्व नहीं दिया लेकिन जब उन्होंने बॉम्बे में मजदूरों को शैलेन्द्र का गीत गाते सुना तो उनकी राय बदल गयी. पर रूस के लोग शुरू से शैलेन्द्र को पसंद करते थे.
1959 में प्रसिद्ध रूसी विद्वान चेलीशेव ने जब भारतीय कवियों का एक संकलन रूसी भाषा में निकाला तो उसमें शैलेन्द्र की भी दो कविताएं थीं. लेकिन हजारी प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य के इतिहास में शैलेन्द्र का जिक्र नहीं किया. पुस्तक के अनुसार शैलेन्द्र की गरीबी का आलम यह था कि मैट्रिक की परीक्षा में फॉर्म भरने के लिए 5 रुपये भी नहीं थे. किसी तरह रुपयों का इंतज़ाम हुआ और वह मथुरा जिले में टॉप हुए.
शैलेन्द्र ने फिल्मों में गीत लिखने के लिए 200 रुपये की रेलवे की नौकरी छोड़ दी और राजकपूर ने 500 रुपए प्रतिमाह पर रख लिया. हालांकि, आरके स्टूडियो की इस नौकरी में शैलेंद्र को आरके बैनर के अलावा अन्य फिल्मों में भी गीत लिखने तथा कवि सम्मेलनों में जाने की छूट थी.
बाद मे शैलेंद्र को गीतों के लिए 4,000 रुपये भी मिलने लगे थे. शैलेंद्र की शादी 2 अप्रैल, 1948 को झांसी के रेलवे मास्टर की बेटी शकुंतला से हुई. शैलेन्द्र ने शुरू में तो राजकपूर को फिल्मों में गीत लिखने से मना कर दिया पर जब पत्नी गर्भवती हुई तो उन्हें पैसों की जरूरत पड़ी. तब शैलेंद्र ने 500 रुपये का कर्ज राजकपूर से लिया. और राजकपूर ने इन 500 रुपये की एवज में ‘बरसात’ फिल्म के दो गीत लिखवाए.
इस तरह शैलेन्द्र का फिल्मी सफर शुरू हुआ और उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए 800 गीत लिखे. इनमें से कई गाने तो सदाबहार गीत बन गए और उनकी लोकप्रियता को आज तक कोई गीतकार छू न पाया. लेकिन अफसोस की बात है कि मात्र 43 वर्ष की अल्पआयु में ही शैलेंद्र का निधन हो गया.
उनके निधन की खबर मिलते ही राजकपूर, देवानंद, गायक मुकेश, शंकर-जयकिशन, हसरत जयपुरी, बासु भट्टाचार्य, कमलेश्वर आदि तमाम लोग उनके घर पहुंचे. शैलेन्द्र के निधन पर एक शोकसभा हुई जिसकी अध्यक्षता साहिर लुधियानवी ने की. इसमें कैफ़ी आज़मी, सरदार जाफरी, भरत व्यास, नरेंद्र शर्मा, राजेन्द्र सिंह बेदी, कृष्णचंदर आदि ने भाग लिया. राजकपूर ने कहा कि “मेरी अंतरराष्ट्रीय छवि के पीछे शैलेन्द्र का हाथ था. उनके गीतों को कभी भुलाया नहीं जा सकता. भारत की पूरी जनता इस महान कलाकार को कभी नहीं भुला पाएगी.”
आज भी शैलेन्द्र को चाहनेवाले लोगों की तादाद बढ़ रही है. कभी जगजीवन राम ने शैलेंद्र को उनके जन्मदिन पर बधाई देते हुए रैदास के बाद सबसे बड़ा कवि बताया था. उनकी यह बात अब सच साबित हो रही है.
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FIRST PUBLISHED : September 03, 2023, 14:19 IST