आदित्य आनंद/गोड्डा. झारखंड के गोड्डा जिले का रेशम नगर कहलाता है ये गांव, जिसे लोग भगय्या के नाम से जानते हैं. पूरे झारखंड के साथ-साथ देश-विदेश में भी गांव मशहूर है. गांव की लगभग 90 प्रतिशत आबादी सिल्क के कारोबार से जुड़ी है. ये लोग हाथों से साड़ियां तैयार करते है. इनमें से कुछ लोग इन साड़ियों की ऑनलाइन बिक्री भी करते हैं. गांव में हर घर के लोग रेशम उद्योग से जुड़े हैं. बड़े-बुजुर्गों के अलावा बच्चे भी पढ़ाई के समय के बाद इस कारोबार में हाथ बंटाते हैं. यही वजह है कि घर का हर सदस्य रोजाना 300 से 500 रुपए की कमाई कर पाता है.
भगैय्या गांव की आबादी करीब 1500 से 2000 है. यहां के बुनकर संजीत कुमार ने लोकल18 के साथ रेशम की साड़ी के निर्माण की पूरी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस गांव में लोग तसर सिल्क उत्पादन के कारोबार से जुड़े हैं. गांव में रेशम उद्योग कब शुरू हुआ, इस बारे में संजीत ने कहा कि काफी लंबे समय से लोग यहां साड़ी बनाने का काम कर रहे हैं. यहां की बनी साड़ियां झारखंड और पड़ोसी राज्य बिहार-बंगाल के अलावा देश के अन्य हिस्सों व विदेशों तक जाती हैं.
कैसे बनाई जाती है रेशमी साड़ी
लोकल18 को संजीत कुमार ने बताया कि वे लोग छत्तीसगढ़ से कोकून खरीद कर लाते हैं. कोकून को गर्म पानी में उबाला जाता है. बडे़ पैमाने पर उत्पादन के लिए स्ट्रीम मशीन भी इस्तेमाल किया जाता है. उबालने के बाद कोकून से पतला धागा निकाला जाता है. इस धागे को चरखे की मदद से रील में बदलने के बाद करघे (लूम) पर चढ़ाने के लिए तैयार कर लिया जाता है. गांव में कई लोग हथकरघा चलाते हैं, जिस पर इन धागों से साड़ी बनाई जाती है.
एक साड़ी बनाने में कई घंटे
रेशम-गांव भगैय्या के बुनकर संजीत ने बताया कि कोकून से एक साड़ी तैयार करने की प्रक्रिया काफी लंबी है. इसमें घंटों लग जाते हैं. कोकून से साड़ी के लिए धागे तैयार होते हैं, फिर लूम पर इसकी बुनाई होती है. इसमें करीबन एक से डेढ़ घंटा लगता है. साड़ी बनने के बाद इसे प्रिंटिंग के लिए भेजा जाता है. जहां जिस प्रकार की साड़ी की डिमांड होती है, उसी तरह की प्रिंटिंग और पेंटिंग की जाती है. संजीत कुमार ने बताया कि अधिकतर लोगों की फरमाइश मधुबनी या मिथिला पेंटिंग की डिजाइन वाली साड़ी होती है. इसलिए ज्यादातर साड़ियां इसी प्रिंट की होती हैं. दुकानों, शोरूम या ऑनलाइन मार्केट में इन साड़ियों को बेहद पसंद किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : March 12, 2024, 14:19 IST