सोनिया मिश्रा/ चमोली: उत्तराखंड के चमोली जिले में इन दिनों 6 महीने के लिए क्षेत्रपाल रावल की देवरा यात्रा यानी बन्याथ चल रही है, ऐसे में ग्रामीणों में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है. बन्याथ प्रायः देवताओं को क्षेत्र भ्रमण काल को कहा जाता है. इस दौरान ग्रामीण भगवान का निसाण यानी चिन्ह लेकर गांव गांव भ्रमण कराते हैं. 2003 के बाद से इस साल यानी 2024 में रावल देवता की तीसरी बार बन्याथ निकली है. सबसे पहले 1939 में यह देवरा यात्रा निकली थी, इस परंपरा का निर्वहन आज भी ग्रामीण करते हैं. 6 महीने की यात्रा के बाद देवता बाबलू (जंगली घास) को आशीर्वाद स्वरूप सभी भक्तों को देते हैं. पुजारी बताते हैं कि इसी घास के प्रचंड होने के बाद कई सालों बाद देवरा यात्रा का शुभारंभ किया जाता है.
गौचर के स्थानीय सुनील पंवार बताते हैं कि इन दिनों क्षेत्रपाल देवता रावल और लाटू देवता अपना क्षेत्र भ्रमण कर रहे हैं. यह 6 महीने का कार्यकाल होता है, जिसमें देवता अपनी ध्याणियों के पास जाते हैं. इस दौरान देवता अपने पश्वा का चयन करते हैं, जो उनके निसाण को पूरे क्षेत्र में घुमाते हैं. पंवार बताते हैं कि इस भ्रमण काल के दौरान सभी को कई नियमों का पालन करना पड़ता है. इसमें मांस-मदिरा का सेवन निषेध होता है. वहीं, नाखून और बाल काटना भी निषेध होता है.
देवरा यात्रा के समापन के बाद दिया जाता है विशेष प्रसाद
सुनील बताते हैं कि देवता को जिस भी घर में रहना होता है, देवता का निसाण स्वतः ही उस दिशा की ओर आगे बढ़ता है. देवता की देवरा यात्रा अभी तक 350 गांवों का भ्रमण कर चुकी है. वहीं, 6 महीने पूरे होने के बाद 7वें महीने में यात्रा पूरी होगी. उन्होंने बताया कि देवरा यात्रा पूरी होने के बाद मंदिर में विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस दौरान प्रसाद स्वरूप भक्तों को बबलु (स्थानीय घास) प्रसाद स्वरूप दी जाती है.
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FIRST PUBLISHED : March 13, 2024, 14:01 IST