रामकुमार नायक/रायपुरः सनातन धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है. इस बार तुलसी विवाह 23 नवम्बर गुरुवार को होगा. इस दिन को प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज शुक्ला ने बताया कि भगवान विष्णु चार महीने चौमासा में क्षीरसागर में शयन करने के बाद आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से लेकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के देवउठनी एकादशी पर्यंत इस चार मास के शयन से भगवान विष्णु जागृत होते हैं.
भगवान विष्णु के देवोउत्थान देवउठनी पूजन करके मां तुलसी के साथ भगवान विष्णु का विधि विधान के साथ विवाह किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु का विवाह गन्ने की मंडप पर होता है. इसकी भी अलग मान्यता हैं. इससे संबंधित कथाएं भी हैं कि किस कारण भगवान विष्णु और तुलसी माता का विवाह करना पड़ा. तब से लेकर आज पर्यंत हर व्यक्ति अपने घर में तुलसी का चंवरा बनाकर उसमें तुलसी माता जी को सुंदर सजाकर गन्ने की मंडप मानकर भगवान शालिग्राम और तुलसी माता का विवाह होता है यहीं तुलसी विवाह है.
क्या है गन्ने की मंडप पर शादी की मान्यता
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि हमारे छत्तीसगढ़ की विशेष परंपरा रही है, कि बड़े बुजुर्ग हर तीज त्योहार को उत्सव और उमंग के साथ मनाते हैं. इसके अलावा अपनी संस्कृति और प्रकृति के साथ जोड़कर उसकी पूजा करते रहे हैं. तुलसी विवाह के दिन जितनी भी सामग्री भगवान में अर्पित की जाता है वह पूरी तरह प्रकृति से जुड़ी हुई है. जिसमें गन्ने का मंडप बांधते हैं. भगवान के विवाह में चना भाजी की सब्जी, शकरकंद, छोटा बेर झरबेरी, सिंघाड़ा, मूली, बड़ा भाटा, फूल वाला भाटा यह अर्पण करके भगवान के साथ प्रकृति की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है. यही कारण है कि गन्ने की मंडप बनाकर भगवान विष्णु और माता तुलसी का विवाह संपन्न होता है.
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FIRST PUBLISHED : November 22, 2023, 17:27 IST