खेत में तालाब खुदवाने पर सुने लोगों के ताने…अब कमाई देखकर हैरान हो रहे सब

दिलीप चौबे/कैमूर: सरकार पारंपरिक फसलों में मोती अनाज की खेती को बढ़ावा दे रही है. लेकिन किसान इसे तौबा करते जा रहे हैं. इसके पीछे की मुख्य वजह है पारंपरिक फसलों की खेती में जितना खर्च होता है उसे अनुसार किसानों को मुनाफा नहीं मिल पाता है. इसलिए किसान अब नगदी फसलों की खेती के अलावा कृषि से जुड़े अन्य प्रकार के व्यवसाय करने लगे हैं.

इसमें मुर्गी, बत्तख, गाय, बकरी और मछली पालन किसानों के लिए कमाई के लिहाज से बेहतर साबित हो रहा है. नई तकनीक और आइडिया के समावेशन से किसान अच्छी कमाई भी कर रहे हैं. आज हम कैमूर के एक ऐसे ही युवा किसान के बारे में बताने जा रहे हैं जो मछली पालन कर बेहतर कमाई कर रहे हैं. यह किसान कैमूर जिला अंतर्गत कुदरा प्रखंड के रहने वाले अभय कुमार सिंह हैं, जो फिलहाल 4 तालाब में मछली पालन कर रहे हैं.

तालाब खुदवाने के दौरान अभय का मजाक उड़ा रहे थे ग्रामीण
अभय सिंह ने बताया कि मछली पालन शुरू करने से पहले अधौरा वनवासी सेवा केंद्र में गया और अन्य जगहों से भी आए हुए किसान से मिला. वनवासी सेवा केंद्र में प्रशिक्षण लेकर गांव में तालाब खुदवाया. एक-एक कर दो तालाब खुदवाए. उन्होंने बताया कि जब तालाब खुदवा रहे थे तो लोग काफी भला-बुरा कहने के साथ मज़ाक उड़ा रहे थे.

कुछ लोगों ने तो तालाब को न खुदवाने की सलाह दिए और गांव में कुछ ऐसे भी लोग थे जो ये बोलते हुए हंस रहे थे कि खेती की उपजाऊ जमीन को खुदवाकर बेकार कर रहा है. अभय ने बताया कि अभी दो तालाब है, जिसमें चेनारी से लाकर मछली का बीज डाला है. जब मछली तैयार हो जाता है तो उसकी बाजार में बिक्री करते हैं. तालाब पर आस-पास के अलावा बाहर से भी लोग आकर मछली ले जाते हैं.

चारे के तौर पर मछलियों को देते हैं केला का पत्ता और तना
अभय सिंह ने बताया कि मछली को खिलाने के लिए तालाब में केला का पत्ता और तना काट कर डाल देते हैं और मछलियां प्रेम से उसे खाती है. अभी इजरायली रोहू, ग्रासकाट, सिल्वर, भकुरा (कतला), नयनी, कमल काट आदि मछलियों का पालन कर रहे हैं. इसमें रोहू, भकुरा को तैयार होने में एक वर्ष का समय लग जाता है. जबकि पुराने जीरा (बीज ) महज 6 महीने में तैयार हो जाता है. वहीं सिल्वर और बिझट को तैयार होने में महज 3 से 4 महीने हीं लगता है.

दो तालाब से एक बार में निकलता है 15 क्विंटल मछली
अभय सिंह ने बताया कि वर्तमान में रोहू, सिल्वर, बिझट, ग्रासकाट और भकुरा का अलग-अलग कीमत हैं. थोक में 150 रुपए प्रति किलो जबकि 15 हजार रुपए क्विंटल के हिसाब से बिक्री होती है. एक बार के हार्वेस्टिंग में दो तालाब से लगभग 15 क्विंटल से अधिक मछली निकलता है. साल में लगभग दो से ढाई लाख रुपए की कमाई हो रही है. उन्होंने बताया मछली पालन करने के लिए सरकार की तरफ से 40 से 50 फीसदी तक का अनुदान भी मिला है. वहीं तालाब की खुदाई में भी विभाग ने मदद किया है.

Tags: Bihar News, Kaimur, Local18

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *