खेतों में न जलाए पराली, कृषि यंत्रों का करें इस्तेमाल! पर्यावरण को भी फायदा

गौरव सिंह/भोजपुर. बिहार के आरा में धान की कटाई शुरू हो गई है, और इसके साथ ही किसान अपनी खेतों में आगे की फसल की तैयारी के लिए पराली जला रहे हैं. कृषि विभाग इस समय पराली जलाने के खिलाफ जागरूकता फैला रहा है. उन्होंने बताया कि सरकार कृषि यांत्रिकरण योजना के तहत किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन से जुड़े यंत्रों के लिए अनुदान प्रदान कर रही है. भोजपुर में, कृषि यंत्रों पर 50% से 80% तक का अनुदान उपलब्ध है, ताकि किसान पराली जलाने के प्रयासों में सक्षम हों और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं हो.

बिहार सरकार ने पिछले साल, बिहार सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों को कृषि से मिलने वाली योजनाओं से वंचित कर दिया था. इस समस्या का समाधान करने के लिए, कृषि विभाग ने चौपालों का आयोजन किया है और विभिन्न स्थानों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को पराली जलाने के हानिकारक प्रभावों से रोकना और उन्हें कृषि यंत्रों का उपयोग करने के लिए प्रेरित करना है. कृषि विज्ञान केंद्र और जिला कृषि विभाग ने किसानों को आगे बढ़ने और उन्हें यंत्रों का उपयोग करने के लिए प्रेरित किया है.

पराली से जुड़े दर्जन भर कृषि यंत्रों पर अनुदान
बिहार सरकार कृषि से जुड़े कई तरह के कृषि यंत्रों पर करीब 90 प्रतिशत तक अनुदान देती है. वहीं, किसान अपने खेतों में पराली नहीं जलाएं, इसको लेकर कृषि यांत्रिकरण योजना के अंतर्गत किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन करने से संबंधित यंत्रों पर भी अनुदान दिया जा रहा है. कृषि यंत्रों पर 50 से 80 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है. इसमें हैप्पी सीडर, रोटरी मल्चर, स्ट्रॉ बेलर, सुपर सीडर, स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस), रोटरी स्लेशर, जीरो टिलेज/सीड-कम-फर्टिलाइजर, पैडी स्टॉचौपर सहित कई तरह की मशीनें शामिल हैं.

पराली जलाने से जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म
कृषि वैज्ञानिक पीके दिर्वेदी ने बताया कि मजदूरों के अभाव में जिले के अधिकांश जगहों के किसान धान की कटनी कम्बाईन हार्वेस्टर से करते हैं. इस दौरान धान के तने का अधिकांश भाग खेतों में ही रह जाता है. अगली फसल उगाने की जल्दबाजी में फसल अवशेषों को खेतों में ही जला दिया जाता है. इसके चलते मिट्टी में उपलब्ध जैविक कार्बन नष्ट हो जाती है. इसके कारण मिट्टी की उर्वरा-शक्ति कम हो जाती है. साथ ही, मिट्टी का तापमान बढ़ने से सूक्ष्म जीवाणु, केंचुआ आदि भी मर जाते हैं.

1 टन फसल अवशेष को जलाने पर इतना होगा नुकसान
बता दें कि एक टन फसल अवशेष को जलाने से लगभग 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड और दो किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड गैस निकलकर वातावरण में फैलती है जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाता है. कृषि वैज्ञानिक ने किसानों से अपील करते हुए बताया कि आप ज्यादा से ज्यादा कृषि यंत्र का प्रयोग करें. साथ ही, फसल अवशेष को चारा के रूप में इस्तेमाल कर जानवरों के लिए बचाएं. उसकी खरीद बिक्री कर पैसे बनाए, और आने वाले समय में चारे की बड़ी समस्या होने वाली है. अगर किसान अभी से अलर्ट नही होंगे, तो आने वाले समय में बहुत बड़ी समस्या होने वाली है. इसलिए आप पराली को जलाए नहीं बल्कि उसका इस्तेमाल करें.

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