खेती के आधुनिक तरीके ने बदली इस महिला की किस्मत, मेहनत कर बेटे को बनाया शिक्षक

नीरज कुमार/बेगूसराय : आपने हिंदी फिल्म मालामाल वीकली को देखा होगा या इसकी कहानी जरूर सुनी होगी. जिस प्रकार से प्रियदर्शन की लिखी इस फिल्म में गरीबी से बाहर निकलने का आईडिया एक लॉटरी से मिल जाता है. ठीक उसी प्रकार बेगूसराय की सार्जन देवी को गेहूं की पारंपरिक खेती में हो रहे नुकसान से सब्जी की खेती का आइडिया मिल जाता है. आज हम आपको खेती के माध्यम से गरीबी को दूर कर क्षेत्र में पहचान बनाने वाली सर्जन देवी की कहानी बता रहे हैं.

इनका मानना है कि पहले पारंपरिक खेती करते थे तो आय में खास इजाफा नहीं होता था. वहीं अब पारंपरिक खेती को छोड़ सब्जी की खेती कर मालामाल हो रहे है. सार्जन देवी ने बताया कि दो बीघा जमीन है,जिसमें से एक बीघा में परवल और एक बीघा में केला की खेती कर रहे हैं. इससे अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं.

2 बीघा में केला और परवल की करते हैं खेती
जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर खगड़िया जिला के सीमावर्ती इलाके की रहने वाली वीरेंद्र महतो की पत्नी सार्जन देवी ने बताया कि दो बीघा जमीन में पहले गेहूं की खेती करते थे तो कोई खास आमदानी नहीं होती थी. हमेशा कर्ज में डूबी रहती थी और दो बेटे और एक बेटी को पढ़ाने की जिम्मेदारी थी. ऐसे में हमने सोचा कि खेती के ट्रेंड को बदल दिया जाए.

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कम मेहनत में सालभर होने वाली सब्जी के रुप में डंडारी वैरायटी का परवल एक बीघा में लगाया और एक बीघा खेत में G9 वैरायटी का केला लगाया. दो बीघा में कई प्रकार की सब्जी लगाना संभव नहीं था. पति को सब्जी बेचने के लिए हर सप्ताह भेज देते हैं. इससे अतिरिक्त खर्च की बचत के साथ कमाई भी हो जाती है.

सब्जी की होने वाली कमाई से बेटे को बनाया शिक्षक
सार्जन देवी ने बताया कि साल के 10 महीने तक परवल खेत से निकलकर बाजार में बिकने के लिए जाता है. एक बीघा से हर सप्ताह परवल तोड़ते हैं तो लगभग 8 हजार तक का उत्पादन हो जाता है. जबकि एक लाख से ज्यादा का केला उत्पादन हो जाता है. उन्होंने बताया सब्जी कि बेचकर होने वाली कमाई से बेटे को डीएलएड करवाया और सरकारी शिक्षक बन गया है. वही एक बेटी को बीएड करवा रहे हैं. इसे भी सरकारी अफसर बनाएंगे. वहीं छोटे बेटे को नौकरी दिलवाकर सपना है कि एक सुंदर सा घर बनाएं. उन्होंने बताया कि खेती-किसानी में जीविका से भी अच्छी मदद मिल रही है.

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