विकाश पाण्डेय/सतना. जिले भर में इस समय पशुओं में लंपी वायरस का प्रकोप फैला हुआ है. ग्रामीण अंचलों में हालत बेहद ही नाजुक है. जिसकी वजह से प्रतिदिन सैंकड़ों गाएं मर रही हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिरकार लंपी वायरस के व्यापक मात्रा में फैलने का कारण क्या है और इस वायरस से बचने के लिए क्या प्रयास किए जाने चाहिए. ऐसे में अब घरेलू नुस्खों के माध्यम से भी इलाज किया जा सकता है.
लंपी वायरस को लेकर ग्रामीणों में जागरुकता का अभाव है, जिसके कारण इस वायरस को ग्रामीण लाइलाज मानते हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. लंपी वायरस से बचाव के लिए तीन तरह की वैक्सीन है. जिन्हें आप बड़ी आसानी से अपने पशुओं को लगवा सकते हैं. पशुओं में वैक्सीन लगवाने के लिए आप अपने नजदीकी पशु चिकित्सा केंद्र या टोल फ्री नंबर 1962 में पशु एम्बुलेंस को कॉल कर घर में ही वैक्सीन लगवा सकते हैं. जिसका चार्ज मात्र 150 रुपए होगा. अगर आपने वैक्सीन लगवा दी तो आप के पशुओं में लंपी वायरस होने का खतरा खत्म हो जाएगा.
पशुओं में लंपी वायरस होने के बाद रोकथाम
कई केसों में देखा गया है कि लंपी वायरस के इलाज को लेकर पशुपालक को जानकारी नहीं होती. जिसके कारण पशुओं की मौत हो जाती है, लेकिन ऐसा नहीं है. अगर समय रहते आप अपने पास के पशुचिकित्सक से सलाह लेते हैं. तो पशुओं को सुरक्षित किया जा सकता है. अगर आप कहीं दूर दराज क्षेत्र के निवाशी हैं. तो घर बैठे ही टोलफ्री नम्बर 1962 में कॉल कर घर में ही पशुओं का उपचार करा सकते हैं.
लंपी वायरस रोकथाम के घरेलू नुस्खे
डॉक्टर मनीष निगम ने बताया कि लंपी वायरस एक त्वचा रोग है जिसका इलाज घर पर भी बड़ी आसानी से किया जा सकता है. जिनमें पहला है.
1. नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर नीम में उबले पानी को गाय की त्वचा में लगाना. साथ ही उबाली गई पत्तियों को पीस कर त्वचा में लेप लगाना.
2. कई केसों में देखा गया है कि एलोवेरा भी लंपी वायरस के खात्मे में बढ़िया काम करता है. इसलिए पशुपालक ऐलोवेरा का लेप भी पशुओं की त्वचा में लगा सकतें हैं. जो काफी हद तक लंपी वायरस के बचाव में कारगर सिद्ध हुआ है.
लंपी वायरस के लक्षण
इस बीमारी से ग्रसित पशुओं को बुखार आता है. इससे पशु सुस्त रहने लगते हैं. इस रोग से पीड़ित पशु की आंखों और नाक से स्राव होता है. पशु के मुंह से लार टपकती रहती है. इस बीमारी से ग्रसित पशु के शरीर पर गांठ जैसे छाले हो जाते हैं जो फफेले का रूप ले लेते हैं. इससे पशु को काफी परेशानी होती है.इस रोग से ग्रसित पशु की दूध देने की क्षमता कम हो जाती है.रोग से ग्रसित की भूख कम हो जाती है और पशु चारा कम खाना शुरू कर देता है.
ऐसे करें बचाव
संक्रमित पशु को स्वस्थ पशु से तत्काल अलग कर देना चाहिए. संक्रमित क्षेत्र में बीमारी फैलाने वाले मक्खी-मच्छर की रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए. पशुओं को ताजा चारा ही खिलाएं. पुराना या गला सड़ा चारा नहीं खिलाएं. संक्रमित पशु के खाने-पीने का पात्र स्वस्थ पशु के पात्र से अलग रखें .संक्रमित क्षेत्र से अन्य क्षेत्रों में पशुओं का आवागमन प्रतिबंधित करें. संक्रमित क्षेत्र के बाजार में पशु बिक्री, पशु प्रदर्शनी, पशु संबंधित खेल आदि पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाएं.रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत ही अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय में या पशु चिकित्सक से संपर्क करें.
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FIRST PUBLISHED : October 6, 2023, 17:10 IST