अनुज गौतम/सागर: ‘बड़ो प्यारो बनो संभाग सागर प्यारो बनो…’ जैसे कई ढिमरयाई लोकगीत अपने अंदाज में रेकरिया की धुन पर गाने और नृत्य करने वाले चुन्नीलाल रैकवार हमेशा के लिए अलविदा कह गए. बुंदेलखंड से लोक कला परंपरा को निकाल कर देश के पटल पर ले जाने वाले कलाकार का 84 साल की उम्र में निधन हो गया.
चुन्नीलाल सागर जिले के कर्रापुर गांव के निवासी थे. ढिमरयाई गायन में उनका मुकाबला नहीं था. बड़ी-बड़ी गायन और नृत्य प्रतियोगिताओं में वह मंच पर खड़े होते ही महफिल लूट लेते थे. एक बार राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उनकी कलाकारी देख तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी दंग रह गए थे.
गांव से शुरुआत, राष्ट्रीय स्तर पर मिला सम्मान
बुंदेलखंड में अनेकों जातिगत लोकगीत और लोकनृत्य की परंपराएं आदि काल से प्रचलित हैं. इसी कड़ी में चुन्नीलाल ने ढिमरयाई लोक गीत-लोक नृत्य परंपरा को आगे बढ़ाया. बताया जाता है कि इस परंपरागत लोकगीत-लोकनृत्य की शुरुआत गांव में शौकिया तौर पर की गई थी. इसके बाद उन्होंने जिला, फिर संभाग स्तर पर प्रस्तुति दी. फिर उन्हें सीधे भोपाल बुलाया गया.
मुख्यमंत्री के सामने दी पहली प्रस्तुति
अपने दुबले पतले शरीर के साथ जब चुन्नीलाल मंच पर पहुंचे तो उनके 3 साथी बैठकर साज़ बजाने लगे. किसी के हाथ में लोटा था, किसी के हाथ में ढोलक और किसी के हाथ में झींका था. चुन्नीलाल खड़े होकर केंकडी (केकडिया) बजाते हुए गाना शुरू किया. गाने के साथ जो नृत्य किया, उसे देख कर सारे लोग झूम उठे. इसके बाद कलाकार चुन्नीलाल ने बुंदेली लोक संस्कृति और बुंदेली लोकगीत-लोकनृत्य ढिमरयाई को आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया.
मिले कई सम्मान
बुंदेलखंड का बच्चा, बूढ़ा, जवान, सभी चुन्नीलाल के मुरीद रहे. उनके गायन, उनके वादन और उनके नृत्य तीनों का सामंजस्य अद्भुत था. अपनी बुंदेलखंड की लोक परंपरा लोक विरासत ढिमरयाई लोकगीत-लोकनृत्य को जो सम्मान दिलाया, वह बुंदेलखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव की बात है. लोकोत्सव भोपाल 1982, लोकरंग रायगढ़ 1983, आकाशवाणी छतरपुर 1984, लोकोत्सव उज्जैन 1985, राज्य स्तरीय रायपुर 1986, लोक नृत्य सागर 1987, मेला महोत्सव उदयपुर राजस्थान 1990,अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह इंदौर 2015, कुंभ मेला इलाहाबाद 2019, नाट्य कला संगीत अकादमी 2023 जैसे कई पुरस्कार उन्होंने प्राप्त किए हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 6, 2024, 16:24 IST