खास तरीके से चुने पत्थरों से बना राम मंदिर, हर ब्लॉक की हुई टेस्टिंग; अनंत काल तक टिके रहने की गारंटी

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैकेनिक्स (NIRM) बेंगलुरु के डायरेक्टर डॉ. एचएस वेंकटेश कहते हैं, “जो पत्थर सावधानीपूर्वक चुने गए हैं, वे अनंत काल तक टिके रहेंगे.” NIRM फिजिको-मैकेनिकल एनालिसिस का इस्तेमाल करके पत्थरों की टेस्टिंग में मदद करने वाली नोडल एजेंसी है. ये एजेंसी भारत के डैम और न्यूक्लियर पावर प्लांट की टेस्टिंग करने का काम भी करती है.

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पत्थरों के ब्लॉक की हुई टेस्टिंग

डॉ. एचएस वेंकटेश ने कहा, “बेहद खास तरीके से चुने गए ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और संगमरमर पत्थरों का इस्तेमाल ही राम मंदिर के निर्माण में किया गया है.” उन्होंने कहा कि राम मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल किए गए ग्रेनाइट, बलुआ और संगमरमर के पत्थर के ब्लॉक का वैज्ञानिक सिद्धांतों और टूल्स का इस्तेमाल करके उनकी अखंडता और सुदृढ़ता के लिए गंभीर रूप से मूल्यांकन किया गया था.

अनुमान लगाया गया है कि ग्रेनाइट के 20700 बड़े ब्लॉक, बलुआ पत्थर के 32800 ब्लॉक और संगमरमर के 7200 ब्लॉक की टेस्टिंग की गई थी. ये सभी ब्लॉक इंडियन स्टैंडर्ड इंस्टिट्यूट या ISI स्टैंडर्ड पर खरे पाए गए. इसके बाद ही इन पत्थरों का इस्तेमाल मंदिर निर्माण में किया गया. 

संदिग्ध गुणवत्ता वाले ब्लॉक को खदान में किया रिजेक्ट

वेंकटेश कहते हैं, “इंजीनियर्ड नींव के ठीक ऊपर ग्रे ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया है, जो मंदिर के लिए 6.7 मीटर मोटा चबूतरा बनाता है. ग्रेनाइट कम से कम 2100 लाख साल पुराने हैं. दक्षिण भारत के ओंगोल, चिमाकुर्ती, वारंगल और करीमनगर में सावधानीपूर्वक चुनी गई खदानों से इन्हें लिया गया है. इन्हें अयोध्या ले जाया गया. फिर प्रत्येक ब्लॉक को श्मिट हैमर जैसे आधुनिक साइंटिफिक टेस्टिंग के लिए भेजा गया था.” उन्होंने बताया कि संदिग्ध गुणवत्ता वाले सभी ब्लॉकों को खदान हेडक्वॉर्टर पर ही रिजेक्ट कर दिया गया था. 

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राम मंदिर की ऊपरी संरचना विशेष रूप से चयनित बलुआ पत्थर से बनी है. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा कहते हैं, ”राजस्थान से गुलाबी बंसी पहाड़पुर के पत्थरों का चयन किया गया है. ऐसा पता चला है कि इस प्रसिद्ध बलुआ पत्थर का लगभग 4.75 लाख घन फीट स्रोत निकाला गया है.”

 

तराशने के लिए बलुआ पत्थर पसंदीदा


डॉ. एचएस वेंकटेश ने कहा, “बलुआ पत्थर कम से कम 700-1000 लाख वर्ष पुराना है. बलुआ पत्थर एक पसंदीदा पत्थर है, जो तराशने के लिए काफी नरम है. लेकिन हवा के कटाव जैसे मौसम का सामना करने के लिए ये पत्थर काफी कठोर है.”

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वेंकटेश कहते हैं, ”राम मंदिर के लिए इस्तेमाल किया गया संगमरमर पत्थर सफेद रंग का है. इसे राजस्थान के मकराना की प्रसिद्ध खदानों से लाया गया है.” हालांकि, सफेद संगमरमर का इस्तेमाल भार वहन करने वाले पत्थर के रूप में नहीं, बल्कि सिर्फ सजावटी सामग्री के रूप में किया गया है. खासकर मंदिर के गर्भगृह में संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि संगमरमर कम से कम 1450 साल पुराना है.

नक्काशीदार पिलर्स की भी हुई टेस्टिंग

चट्टानों की टेस्टिंग का नेतृत्व करने वाले डॉ. ए राजन बाबू की टीम ने सभी चट्टानों का घनत्व, पोरोसिटी यानी सरंध्रता, कंप्रेसिव पावर और इनकी ताकत की जांच की थी. वहीं, नक्काशीदार पिलर्स का अल्ट्रासोनिक और इन्फ्रारेड थर्मोग्राफिक टेकनीक के जरिए गैर-विनाशकारी परीक्षण (NDT) भी किया गया.

वेंकटेश कहते हैं, ”राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की इस अनूठी मंदिर निर्माण परियोजना में योगदान देना एक सुखद और भक्तिपूर्ण अनुभव था.” उन्होंने दावा किया, “जहां तक ​​चट्टानों का सवाल है हम गारंटी दे सकते हैं कि वे एक हजार साल से भी अधिक समय तक जीवित रहेंगी.”

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22 जनवरी को दोपहर 12:30 बजे होगी प्राण प्रतिष्ठा

अयोध्या में बन रहे राम मंदिर में 22 जनवरी को दोपहर 12:30 बजे रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित 6000 दिग्गज शामिल होंगे. इनमें 4000 संत भी शामिल हैं. 

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