खास आपके लिए MP के इस जिले में तैयार हो रहे होम स्टे, Photos में देखिए खासियत

देशी-विदेशी पर्यटकों को ग्रामीण परिवेश का लुत्फ देने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन निगम गांवों मे होम स्टे विकसित कर रहा है. प्रदेश के कई जिलों में 164 से ज्यादा होम स्टे काम भी कर रहे हैं. यहां ग्रामीणों के घर में ही अलग से रुकने, ठहरने, खाने की व्यवस्थाओं वाला आवास तैयार किया गया है. यहां मामूली शुल्क पर मेहमान पर्यटक घरों में रुक कर ग्रामीण संस्कृति, रीति रिवाज और खानपान से न केवल परिचित होता है, इस परिवेश का पूरा आनंद उठाता है. बैतूल में ऐसे आवास चार गांवों में तैयार किए जा रहे हैं. खेत-खलिहान में तैयार किए जा रहे होम स्टे अगले एक महीने में काम करने लगेंगे. इसकी जिम्मेदारी स्वयं सेवी संगठन बैक टू विलेज को सौंपी गई है. (रिपोर्ट- रिशु नायडू)

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ईंट ,पत्थर ,मिट्टी से बनने वाले इन आवासों में पर्यटकों के ठहरने की आरामदायक व्यवस्था होगी. बैतूल के बाचा, बज्जर वाडा, लोकलदरी और कुकरू में यह होम स्टे बनाए जा रहे हैं. पर्यटन निगम की योजना के मुताबिक इन होम स्टे को पर्यटकों की पसंद के अनुरूप बनाया जा रहा है. बैक टू विलेज के प्रोग्राम मैनेजर दीपक मिस्त्री के मुताबिक देश के पहले सोलर विलेज बाचा में 10 घर बनाए जाएंगे. इन्हें मिट्टी से बनाया जाएगा. बज्जर वाडा में ईट पर मिट्टी की जुड़ाई वाले 10 घर बनेंगे. लोकलदरी में भी इसी तरह के मकान बनाए जाएंगे. इन घरों में एक कमरा, आगे पीछे बरांडा होगा. जबकि, लेट बाथ आधुनिक तरीके से बनाए जाएंगे.

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योजना के तहत तैयार होने वाले घर यानि होम स्टे में दो पर्यटक एक समय में रुक सकेंगे. इसमें ठहरने वाले पर्यटक को देशी व्यंजन परोसे जाएंगे. पर्यटकों को उसी घर का हितग्राही भोजन बनाकर देगा. यहां ठहरने, खाने, नाश्ते के लिए 24 घंटे के लिए 2 हजार रुपये लिए जाएंगे. ये सभी मकान आदिवासी हितग्राही के उसके मूल निवास के बाजू में बनाए जा रहे हैं.

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संस्था बैक टू विलेज ने हितग्राहियों का चयन सामुदायिक बैठक के बाद किया है. इसके लिए पर्यटन निगम एक होम स्टे बनाने के लिए आदिवासी हितग्राही को 3 लाख रुपये, जबकि गैर आदिवासी हितग्राही को 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दे रहा है. इस होम स्टे से होने वाली कमाई का पूरा हिस्सा हितग्राही ही रखेगा.

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इन होम स्टे में रुकने के साथ ही टूरिस्ट आसपास के प्राकृतिक स्थलों की सैर भी कर सकेंगे. उनके चाहने पर समिति टूरिस्ट को वाहन भी उपलब्ध कराएगी. बाचा में ठहरने वाले पर्यटक जटान देव, भौरा, चूरना घूम सकेंगे. वहीं, फिशिंग के लिए उन्हे कोसमी डैम भी ले जाया जा सकेगा. भोपाली, बालाजीपुरम, पाढर स्थित शिव की टेकडी , कुकरु के कॉफी बागान भी दिखाए जा सकेंगे.

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साधारण सा दिखने वाला बैतूल का बाचा गांव दुनिया के नक्शे पर अब चमक रहा है. आधुनिक गांवों की कतार में सबसे आगे खड़े इस गांव में चूल्हा तो जलता है, लेकिन धुआं नहीं उठता. यहां के लोगों को न घरेलू गैस की जरूरत पड़ती है, और न ही जंगल से लकड़ी काटने की. क्योंकि यहां हर घर में सोलर चूल्हा जलता है. महिलाएं भी खुश हैं कि अब न तो लकड़ी लाने के लिए जंगल जाना पड़ता है और न ही गैस या कैरोसिन खत्म होने की चिंता सताती है.पर्यावरण संरक्षण से लेकर शराबबंदी तक और पौधरोपण से लेकर सफाई तक में अपनी खास पहल ने इस गांव को अलग गांव की फेहरिस्त में शामिल कर दिया है.

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