बिट्टू सिहं/ सरगुजाः हर साल की तरह इस वर्ष भी 25 दिसंबर को जिले के चर्चों में धूमधाम से क्रिसमस मनाया जाएगा. यह त्योहार ईसाई धर्मों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. क्रिसमस को लेकर चरनी का विषेश महत्व होता है. जिसे स्थानीय कारीगरों ने चर्च के सामने दुकान सजाकर बेच रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि प्रभु यीशु का जन्मोत्सव चरनी में मनाया जाता है, इसलिए शहरी क्षेत्रों में चरनी की बिक्री भी बढ़िया होती हैं.
अंबिकापुर के नवापारा चर्च के सामने ग्रामीण क्षेत्र से आए चरनी कारीगर पति पत्नी ने मिलकर लोगों के डिमांड के मुताबिक, चरनी का निर्माण कर रहे हैं. इसकी कीमत सबसे कम 200 रुपये से शुरू होकर 600 रुपये तक जाती है. चरनी कारीगर ने बताया कि इसको बनाने के लिए करीब दो माह पहले से तैयारी करनी पड़ती है. चरनी बनाने के लिए जंगल से घास काटकर लाया जाता है और इसे धूप में सुखाने के बाद चरनी ग्राहक के डिमांड पर साइज में बनाते हैं.
चरनी बना रहे पति-पत्नी का कहना है कि प्रत्येक वर्ष क्रिसमस में चरनी बेचकर करीब 50-60 हजार रुपये कमा लेते हैं. जिससे कि उनका क्रिसमस का त्योहार बढ़िया से मन जाता है.
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चरनी में जन्मे थे प्रभु यीशु
चरनी बेचने आए ग्रामीण कारीगर ने बताया कि इसे चरनी कहा जाता है. हम लोगों का ऐसा मानना है कि इसमें प्रभु यीशु जन्मे थे. इसलिए हम लोगों ने चरनी में प्रभु यीशु का स्टेच्यू रखकर क्रिसमस त्यौहार को धूमधाम से सेलिब्रेट करते हैं. चरनी बनाने के लिएजैसे ही दिसंबर महीना आता है, तो हम लोग घास काटना शुरू कर देते हैं. जिसका चरनी बनाते है.
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हमारी सोच है कि ईसाई धर्म के भाई बहनों को चरनी आसानी से उपलब्ध हो जाए और इससे हमारा भी घर परिवार चलाने के लिए कुछ आमदनी हो जाए. लेकिन इस बार बाजार का माहौल ठंडा होने की वज़ह से खरीदा बिक्री कम हो रही है.लेकिन फिर भी उम्मीद है की जो समय बचे हुए हैं उसमेंचरनी का बिक्री बढ़िया हो सकें .
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FIRST PUBLISHED : December 22, 2023, 13:48 IST