क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी के झांसे में फंसे हिमाचल प्रदेश के 1000 पुलिसकर्मी, कुछ नौकरी भी छोड़ चुके

हिमाचल के मंडी जिले में जालसाजों द्वारा बनाई गई फर्जी स्थानीय क्रिप्टोकरेंसी के झांसे में एक हजार से अधिक पुलिसकर्मी आ गए। यह जानकारी एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को दी।
घोटाले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के जांचकर्ताओं के अनुसार, फर्जी क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वाले अधिकांश पुलिस कर्मियों को करोड़ों रुपये का चूना लगा, लेकिन उनमें से कुछ ने भारी लाभ भी कमाया, योजना के प्रवर्तक बन गए और इसके साथ अन्य निवेशकों को जोड़ा।
पुलिस के अनुसार, क्रिप्टोकरेंसी धोखाधड़ी में जालसाजों ने कम से कम एक लाख लोगों को धोखा दिया है और 2.5 लाख आईडी (पहचानपत्र) पाए गए हैं, जिनमें एक ही व्यक्ति की कई आईडी शामिल हैं।
निवेशकों को आकर्षित करने के लिए, घोटालेबाजों ने दो क्रिप्टोकरेंसी – कोरवियो कॉइन (या केआरओ) और डीजीटी कॉइन पेश किये थे और इन डिजिटल मुद्राओं की कीमतों में हेरफेर के साथ फर्जी वेबसाइट बनाईं।

इन लोगों ने शुरुआती निवेशकों को कम समय में उच्च रिटर्न का वादा करके लुभाया। उन्होंने निवेशकों का एक नेटवर्क भी बनाया, जिन्होंने अपने-अपने दायरे में श्रृंखला का और विस्तार किया। जल्दी रिटर्न के चक्कर में पुलिसकर्मी, शिक्षक व अन्य लोग योजना में शामिल हो गये।
हालाँकि इसमें शामिल अधिकांश पुलिस कर्मियों को नुकसान उठाना पड़ा, लेकिन उनके द्वारा योजना के प्रचार से निवेशकों के बीच विश्वास उत्पन्न हुआ और निवेश योजना को विश्वसनीयता मिली।
पुलिस के एक अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बृहस्पतिवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि क्रिप्टोकरेंसी योजना में शामिल कुछ पुलिसकर्मियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) का विकल्प चुना और इसके प्रवर्तक बन गए।

पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) संजय कुंदू ने कहा, ‘‘हम गलत कृत्य करने वाले सभी को पकड़ेंगे…जांच व्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रही है।’’ उन्होंने कहा कि घोटाले में शामिल सभी लोगों से कानून के मुताबिक सख्ती से निपटा जाएगा।
क्रिप्टोकरेंसी वित्तीय लेनदेन का एक जरिया होता है। यह रुपये या डॉलर की तरह ही होता है लेकिन अंतर सिर्फ इतना है कि यह डिजिटल होता है, इसलिए इसे डिजिटल मुद्रा भी कहते है। इसका पूरा कारोबार ऑनलाइन माध्यम से ही होता है। एक ओर जहां किसी भी देश की मुद्रा के लेनदेन के बीच एक मध्यस्थ होता है, भारत में भारतीय रिजर्व बैंक, लेकिन क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार में कोई मध्यस्थ नहीं होता और इसे एक नेटवर्क द्वारा ऑनलाइन संचालित किया जाता है।
यह घोटाला 2018 में शुरू हुआ था, जिसमें अधिकांश पीड़ित मंडी, हमीरपुर और कांगड़ा जिलों से थे। कुछ मामलों में, एक अकेले व्यक्ति ने 1,000 लोगों को इसके साथ जोड़ा था।

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