लखनऊ. वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद के एक तहखाने में हिंदू समुदाय की तरफ से की जाने वाली प्रार्थनाओं को रोकने के लिए मुलायम सिंह सरकार का 1993 का कदम “अवैध” था. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को यह कहते हुए जिला अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसने 30 साल बाद प्रार्थनाओं को फिर से शुरू करने की इजाजत दी थी. न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद 15 फरवरी को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था. न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि व्यास जी के तहखाना में पूजा-अर्चना जारी रहेगी.
व्यास जी के तहखाने के नाम से मशहूर ज्ञानवापी के इस हिस्से को 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद सील कर दिया गया था. इसके तुरंत बाद, तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था और बाद में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था, जिससे उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का रास्ता साफ हो गया था. अगले साल विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार बनी. राज्य सरकार ने तब कानून और व्यवस्था की चिंताओं का हवाला दिया और तहखाने वाले मंदिर को सील कर दिया गया.
ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी जिला न्यायाधीश के दोनों निर्णयों के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी. दोनों ही अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा, “इस मामले के संपूर्ण रिकॉर्ड को देखने और संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत को वाराणसी के जिला जज द्वारा पारित निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं मिला.”
अदालत ने कहा कि इन दो आदेशों (वाराणसी की अदालत के) के खिलाफ दायर अपील में मस्जिद कमेटी अपने मामले को सिद्ध करने और जिला अदालत के आदेश में किसी प्रकार की अवैधता दर्शाने में विफल रही है. इसलिए इस अदालत द्वारा किसी तरह का हस्तक्षेप वांछित नहीं है. न्यायमूर्ति अग्रवाल ने कहा कि उस स्थान पर पूजा पहले ही प्रारंभ हो चुकी है और जारी है इसलिए उसे रोकने का कोई औचित्य नहीं है.
उच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया, “व्यास परिवार द्वारा 1993 तक तहखाने में की जाने वाली पूजा और अनुष्ठान को बिना किसी लिखित आदेश के राज्य की अवैध कार्रवाई से रोक दिया गया था.” हाईकोर्ट ने आगे कहा, “भारत के संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता देता है. व्यास परिवार जिसने तहखाने में धार्मिक पूजा और अनुष्ठान जारी रखा था, उसे मौखिक आदेश द्वारा प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता था. अनुच्छेद 25 के तहत तयशुदा नागरिक अधिकार को राज्य के मनमाने ढंग की कार्रवाई से नहीं छीना जा सकता है.”
मुस्लिम पक्ष ने दलील दी थी कि बिना अर्जी के 31 जनवरी का आदेश पारित किया गया. इस पर अदालत ने कहा, “इस मामले में 17 जनवरी 2024 को पारित आदेश में जो अर्जी मंजूर की गई, उसमें समग्र प्रार्थना की गई थी लेकिन ‘रिसीवर’ नियुक्त करने की राहत दी गई. अदालत के संज्ञान में लाए जाने के बाद 31 जनवरी के आदेश में पूजा की अनुमति जोड़ी गई और आदेश दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 151/152 के संदर्भ में संशोधित हो गया.”
अपने 54 पन्ने के निर्णय में अदालत ने कहा, “अंततः जिला अदालत द्वारा 31 जनवरी 2024 को पारित आदेश की छवि को इस आधार पर धूमिल करने का प्रयास किया गया कि संबंधित अधिकारी ने अपने अंतिम कार्य दिवस पर वह आदेश पारित किया.” व्यास जी के तहखाने में पूजा की अनुमति के खिलाफ मस्जिद कमेटी की याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से उच्चतम न्यायालय के इनकार करने के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई थी.
.
Tags: Allahabad high court, Gyanvapi Masjid, Gyanvapi Mosque
FIRST PUBLISHED : February 26, 2024, 17:21 IST