क्या होता है लव एट फर्स्ट साइट? प्यार और आकर्षण के बीच क्या होता है फर्क…

अनूप पासवान/कोरबा. आजकल युवा पीढ़ी लव एट फर्स्ट साइट में यकीन करती है, यानि पहली नजर में देखते ही प्यार हो जाना. क्या ऐसा वाकई में होता है? आज कल युवा प्यार और आकर्षण में फर्क नहीं समझ पाते और बस आई लव यू बोल बैठते हैं. कोई थोड़ा भी किसी के लिए आकर्षण हुआ, तो युवा पीढ़ी को लगता है कि उन्हें प्यार हो गया है. इस वजह से पढ़ने-लिखने की उम्र में लड़के-लड़कियां घर छोड़कर भाग रहे हैं. युवा पीढ़ी में आत्महत्या के मामले भी ज़्यादातर ऐसी कहनियों से जुड़े होते हैं. समय के साथ यह प्रकृति गंभीर होती जा रही है. समाज में बढ़ती इस तरह की गंभीर प्रवृत्ति को देखते हुए हमने मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीलिमा महापात्रा से बातचीत की. उन्होंने बताया कि युवा पीढ़ी आकर्षण को प्यार समझने की भूल कर बैठती है और पढ़ने लिखने के उम्र में घर से भागने के मामले सामने आते हैं.

उन्होंने बताया कि प्यार और आकर्षण दोनों बिलकुल ही अलग है. आप सामने वाले को अभी ठीक से जान भी नहीं रहे हैं, तो यह कैसे संभव हैं कि आपको उससे प्यार हो गया है. ये सिर्फ एक आकर्षक हो सकता है. जो शुरुआत में प्यार जैसे फीलिंग के साथ होता है. आकर्षक कुछ दिनों का होता है और प्यार पूरी जिंदगी का. आजकल की जो युवा पीढ़ी वेस्टर्न कल्चर से प्रभावित हो रही है. किसी के प्रति आकर्षित होना या मानव स्वभाव है. आकर्षण पहले भी हुआ करता था लेकिन तब युवा पीढ़ी को सामाजिक ज्ञान भी होता था. गलत कदम उठाने से पहले घर परिवार समाज के बारे में सोचते थे. वर्तमान समय में देखा जाए तो बच्चों के हाथ में मोबाइल उनके लिए जितना उपयोगी है उतना ही अनुपयोगी है. छोटी उम्र में जो उन्हें नहीं जानना चाहिए, वह सब मोबाइल से जान जाते हैं और अपने आप को बड़ा समझने लगते हैं और अपने आप को ही सही मानते हैं.

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अट्रैक्शन है या प्यार ऐसे समझे
मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीलिमा महापात्रा ने बताया कि बढ़ती उम्र के साथ बच्चों में मानसिक और शारीरिक रूप से अलग-अलग बदलाव होते हैं. साथ ही टीनएजर ग्रुप के बच्चों में हार्मोनल बदलाव होते हैं. उन्होंने बताया कि बात बस इतनी सी है कि सही समय पर बच्चों के माता-पिता उन्हें सही और गलत चीजों के बारे में नहीं बताते हैं, जिससे वे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं. ये समय रहता है. पेरेंट्स अपने बच्चों के प्यार से आकर्षक, प्यार, सही और गलत चीजों के बारे में समझाएं. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को अच्छी सामाजिक ज्ञान की भी जरूरत होती है. इसलिए बच्चों को घुमाएं और उन्हें सामाजिक जीवन से परिचय कराएं.

बच्चें की काउंसलिंग कैसे करें?
मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीलिमा महापात्रा ने बताया कि अगर आपने अपने बच्चों को मोबाइल दे रखा है तो समय-समय पर नजर बनाए रखें कि आखिर वह मोबाइल में कर क्या रहा है. बच्चों से बात करते रहे कि आखिर उनके मन में क्या चल रहा है. बच्चा अगर जिद कर रहा है तो जरूरी नहीं कि उसकी गैर जरूरी जिद पूरी की जाए. गलती करने पर बच्चों को पेरेंट्स बैठ कर प्यार से समझाएं. अगर बच्चे पेरेंट्स की बात नहीं सुन रहे हैं तो साइकेट्रिस्ट से मिलकर बच्चों की काउंसलिंग कराए.

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