क्या होता है डार्क मैटर? जिसकी तलाश में चीन ने पाताल में बना दी सबसे गहरी प्रयोगशाला

चीन ने ऐसा काम किया है जिसकी वजह से पूरी दुनिया की निगाहे उस पर जाकर टिक गई हैं। चीन ने दुनिया की सबसे गहरी प्रयोगशाला बनाई है। इस लैब में चीन क्या कर रहा है वो आपको बताते हैं। लेकिन इससे पहले इस लैब से जुड़ी खास बातें आपको बताते हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि इस लैब को जिनपिंग लैब नाम दिया गया है। चीन की तरफ से दुनिया की सबसे गहरी लैब को ऑपरेशनल कर दिया है। यानी लैब ने काम करना शुरू कर दिया है। चीन के दक्षिण पश्चिम में स्थित सिचुआन में जिनपिंग माउंटेन के नीचे बनाया गया है। इसे डीप अल्ट्रा रेडिएशन बैकग्राउंड फैसिलिटी फॉर फ्रंटियर एक्सपेरिमेंट्स नाम दिया गया है। फ्रंटियर फिजिक्स एक्सपेरिमेंट्स (डीयूआरएफ) के लिए डीप अंडरग्राउंड और अल्ट्रा-लो रेडिएशन बैकग्राउंड सुविधा दक्षिण पश्चिम चीन में जमीन से लगभग 2.5 किलोमीटर नीचे बनाई गई है। चीन ने इसे क्यों बनाया है और इससे जुड़ी खास बातें क्या हैं आइए आपको बताते है। 

दुनिया में सबसे गहरी और बड़ी प्रयोगशाला

सिन्हुआ समाचार एजेंसी के अनुसार, इस सुविधा का निर्माण सिचुआन प्रांत के लियांगशान यी स्वायत्त प्रान्त में किया गया है। डीयूआरएफ चीन जिनपिंग अंडरग्राउंड प्रयोगशाला का दूसरा चरण है। स्पेस डेली के अनुसार, लैब का पहला चरण 2010 में समाप्त हो गया था। लैब को डार्क मैटर प्रयोगों में ‘काफी सफलता’ मिली है। चाइना न्यूज सर्विस ने बताया कि सिचुआन मेडिकल यूनिवर्सिटी के वेस्ट चाइना मेडिकल सेंटर की एक टीम को पता चला कि आणविक लक्ष्य बेहद कम पृष्ठभूमि विकिरण के अनुकूल होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस खोज से संभावित रूप से ट्यूमर के इलाज में सुधार हो सकता है। ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, यह प्रयोगशाला दुनिया में सबसे गहरी चट्टानी परत और आयतन के हिसाब से सबसे बड़ी जगह वाली एक भूमिगत अनुसंधान सुविधा है। 

2010 में पूरा हुआ था फर्स्ट फेज

अंडरग्राउंड और अल्ट्रा लो रेडिएशन बैकग्राउंड फैसिलिटी फॉर फ्रंटियर फिजिक्स एक्सपेरिमेंट्स चीन जिनपिंग अंडरग्राउंड प्रयोगशाला का दूसरा फेज है। इसका फर्स्ट फेज 2010 में पूरा हो गया था। जिससे चीन पहले ही डार्क मैटर डायरेक्ट डिटेक्शन प्रयोगों में काफी सफलता हासिल कर चुका है और इस क्षेत्र में अग्रणी बन गया है। 

120 ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल 

डीयूआरएफ की कुल क्षमता 330,000 क्यूबिक मीटर या 120 ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल हैं। सिंघुआ विश्वविद्यालय और यालोंग रिवर हाइड्रोपावर डेवलपमेंट कंपनी द्वारा संयुक्त रूप से निर्मित प्रयोगशाला पर काम दिसंबर 2020 में शुरू हुआ। द सन के अनुसार, यह सुविधा पिछली सबसे बड़ी भूमिगत प्रयोगशाला इटली की ग्रैन सैसो नेशनल लेबोरेटरी के आकार से लगभग दोगुनी है। यहां वाहनों द्वारा पहुंचा जा सकता है। चाइना डेली के अनुसार, सिंघुआ, शंघाई जिओ टोंग और बीजिंग नॉर्मल यूनिवर्सिटी, चाइना इंस्टीट्यूट ऑफ एटॉमिक एनर्जी और चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज क्षेत्र के रॉक एंड सॉयल मैकेनिक्स इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की दस टीमें पहले से ही सुविधा पर काम कर रही हैं।

चीन ने इसे क्यों बनाया है?

वैज्ञानिकों ने सिन्हुआ को बताया कि प्रयोगशाला उनके लिए डार्क मैटर की जांच के लिए एक स्वच्छ स्थान है। ब्रह्माण्ड का 95 प्रतिशत हिस्सा डार्क मैटर और डार्क एनर्जी से बना है। वे यकीनन वैज्ञानिकों द्वारा अभी तक सुलझाए गए सबसे महान रहस्यों में से एक हैं। यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन (सीईआरएन) के अनुसार डार्क मैटर का पता लगाना बेहद मुश्किल है क्योंकि यह प्रकाश को अवशोषित, प्रतिबिंबित या उत्सर्जित नहीं करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि डार्क मैटर दृश्यमान पदार्थ से लगभग छह से एक अधिक भारी है – जिससे यह ब्रह्मांड का लगभग 27 प्रतिशत बनता है। इस बीच, डार्क एनर्जी, ब्रह्मांड के अन्य 68 प्रतिशत हिस्से के लिए जिम्मेदार है। ऐसा प्रतीत होता है कि इसका संबंध अंतरिक्ष में निर्वात से है। शोधकर्ताओं ने कहा कि पृथ्वी के बहुत नीचे बनाई जा रही प्रयोगशाला इसे ब्रह्मांडीय किरणों से बचाती है जो प्रयोगों में बाधा डालती हैं। सिंघुआ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर यू कियान को स्पेस डेली ने यह कहते हुए उद्धृत किया, “इसके स्थान के लिए धन्यवाद, डीयूआरएफ ब्रह्मांडीय किरणों के एक छोटे से प्रवाह के संपर्क में है, जो पृथ्वी की सतह पर केवल एक सौ मिलियनवां हिस्सा है। खमेर टाइम्स ने यू के हवाले से कहा कि प्रयोगशाला में बेहद कम पर्यावरणीय विकिरण, बेहद कम रेडॉन सांद्रता और एक अति-स्वच्छ स्थान सहित अन्य फायदे भी हैं।

क्या है डार्क मैटर?

डार्क मैटर उन कणों से बना है जिन पर कोई आवेश नहीं होता है। ये कण प्रकाश का उत्सर्जन नहीं करते हैं इसलिए ये डार्क हैं। ये पूरी प्रक्रिया एक विद्युत चुंबकीय घटना है। डार्क मैटर में सामान्य पदार्थ की ही तरह ट्रव्यमान होता है। इसलिए ये गुरुत्वाकर्षण के साथ अंत: क्रिया करते हैं। कई मॉडल ऐसी भविष्यवाणी करते हैं कि डार्क मैटर कण कमजोर अंत: क्रिया स्तर पर समान्य कण से जु़ड़ सकते हैं। इसलिए डायरेक्ट डिटेक्शन प्रयोग के जरिए डार्क मैटर कण के संकेत को पकड़ना संभव है। पिछले साल अमेरिका में भी डार्क मैटर की खोज के लिए लक्स जेप्लिन एलजेड नाम का एक प्रयोग किया गया था।  

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