क्या होता है जैवलिन थ्रो? जानें नियम, साइज और वजन से जुड़ी सभी अहम जानकारी

पिछले कुछ सालों से यूरोप का एक खेल, ‘जैवलिन थ्रो’ जो मौजूदा समय में भारत में एक अहम खेल बनकर उभरा है। इस खेल का क्रेज दिन प्रतिदिन युवाओं के दिल में अपनी जगह बना रहा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि, आखिर जैवलिन थ्रो होता क्या है?

क्या है जैवलिन थ्रो?

दरअसल, ‘जैवलिन थ्रो’ एक खेल है जो एक लंबी धारीदार जैसे शैली में एक विशेषकर डिज़ाइन किए गए तीर (जैवलिन) को दूर से फेंकने पर आधारित है। यह एक ऑलिम्पिक खेल भी है और अधिकांश देशों में खेला जाता है। जैवलिन थ्रो एक पुरुष और महिला दोनों में प्रतिस्पर्धा के लिए है।

साल 1908 से लंदन में पुरुषों की जैवलिन थ्रो यानी भाला फेंक स्पर्धा शुरू होने के बाद से ये ओलंपिक का हिस्सा बन गया। ये थ्रो इवेंट में शॉट पुट, हैमर थ्रो और डिस्कस थ्रो के बाद शामिल होने वाला आखिरी इवेंट था।

जैवलिन थ्रो एक प्रदर्शनी खेल है जिसमें खिलाड़ी एक लंबी छड़ी जैसी चीज को एक प्रदर्शन क्षेत्र में फेंकता है, जिसे जैवलिन कहा जाता है। इस खेल के नियमों को अंतरराष्ट्रीय जैवलिन फेडरेशन (International Association of Athletics Federations, IAAF) द्वारा निर्धारित किया गया है।

जैवलिन थ्रो के नियम

जैवलिन का वजन और लंबाई: पुरुषों के लिए, जैवलिन का वजन 800 ग्राम लंबाई 2.67 मीटर होती है। जबकि महिलाओं के लिए जैवलिन का वजन 600 ग्राम और लंबाई 2.28 मीटर होती है।

क्षेत्र की सीमाएं: जैवलिन फेंकने के लिए एक क्षेत्र होता है जिसमें एक रेखा होती है जिसे रनअप रेखा कहा जाता है। फेंक की जगह को निश्चित करने के लिए एक लक्ष्य लाइन होती है जिसे अच्छूति रेखा कहा जाता है।

फेंक की तकनीक: फेंक को ध्यान से करने के लिए कुछ तकनीकी निर्देश होते हैं, जैसे कि स्पिन, ग्रिप, और रनअप की अच्छूति।

गेम के निगमन: फेंक के बाद, जैवलिन की छड़ी को कहीं ना लगने पर एक निगमन रेखा होती है। इससे यह पता लगता है कि किसने कितना दूर फेंका है और इसके आधार पर प्रतियोगिता में स्थान तय किया जाता है।

जैवलिन थ्रो का स्कोरिंग सिस्टम

जैवलिन थ्रो में स्कोर का पता भाले द्वारा तय की गई दूरी से चलता है। एक बा जब जैवलिन लैंडिंग क्षेत्र के अंदर सबसे पहले पहुंचता है। तो पहले थ्रो के मार्क को जज द्वारा एक मार्कर आमतौर पर एक स्पाइक के साथ चिह्रित किया जाता है। उसके बाद थ्रो आर्क के केंद्र बिंदु के अंदर के किनारे तक मार्कर की एक सीधी रेखा में दूरी को मापा जाता है। माप को निकटतम सेंटीमीटर तक मापा जाता है। 

हालांकि, पहले सभी मापों के लिए स्टील या फाइबरग्लास मीटर टेप का इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन वर्तमान समय में इलेक्ट्रॉनिक दूरी माप प्रणाली से इसे लेजर के माध्यम से डिजिटल रुप से मापा जाता है। ईडीएम से लैस नहीं होने वाले स्थानों पर अभी भी मीटर टेप का इस्तेमाल किया जाता है। 

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