परमजीत कुमार/देवघर. हिंदू धर्म जन्माष्टमी के पर्व का बड़ा महत्व है. देश भर में इसे धूमधाम से मनाया जाता है. जन्माष्टमी में कृष्ण भगवान के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा की जाती है. जन्माष्टमी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था. हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि और बुधवार के दिन हुआ था.. इस साल जन्माष्टमी का व्रत 06 सितम्बर को मनाया जाएगा. वहीं ज्योतिषाचार्य बताते है कि जन्माष्टमी में पूजन के साथ भोग का भी विधान है. अगर भगवान को उनका मनपसंद भोग लगाते है तो आपकी हर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नन्द किशोर मुद्गल ने लोकल 18 को बताया कि जन्माष्टमी में पूजन के साथ भोग का बड़ा महत्वपूर्ण होता है. अगर आप लड्डू गोपाल को उनका मनपसंदीदा भोग लगाते है तो आप पर श्री कृष्ण की कृपा हमेशा बनी रहेगी और मनोकामना भी पूर्ण होगी. इसलिए जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के पसंदीदा भोग जरूर लगाए.
इन चीज़ो का लगाएं भोग
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण यानी लड्डू गोपाल को मिष्ठान का भोग लगाए. जैसे माखन मिश्री. भगवान श्री कृष्ण को माखन अतिप्रिय है. इसके साथ ही आटे की पंजीरी बना के भोग लगा सकते हैं. वहीं अगर आपका बना हुआ कार्य बिगड़ जा रहा है तो छाछ में तुलसी डालकर जरूर अर्पण करें. इससे बिगड़ा हुआ काम बन जाएगा. इसके साथ ही लड्डू गोपाल को पंचामृत अर्पित करें.
पूजा का शुभ मुहूर्त
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नन्द किशोर मुद्गल ने बताया कि हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी पर कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है. श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृषभ राशि और बुधवार के दिन हुआ था. इस साल अष्टमी तिथि की शुरुआत 6 सितंबर को संध्या 07 बजकर 58 मिनट से हो रही है और समापन अगले दिन 07 सितम्बर को संध्या 07 बजकर 52 मिनट पर होगा. मध्य रात्रि में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था. इसलिए जन्माष्टमी 6 सितंबर को मनायी जाएगी. पूजन का शुभ मुहूर्त 09 बजकर 54 मिनट से 11 बजकर 49 मिनट रहने वाला है.
कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा विधि
ज्योतिषाचार्य पंडित नन्द किशोर मुद्गल ने बताया कि सबसे पहले बाल कृष्ण की मूर्ति को एक बर्तन में रखें और उसे शुद्ध जल और दूध, दही, शहद, पंचमेवा और सुगंध युक्त गंगा जल से स्नान कराएं. फिर पालने में स्थापित करें और वस्त्र धारण करें. इसके बाद भगवान के विधान के अनुसार आरती करें. अंत में उन्हें नैवेद्य यानी फलों और मिठाइयों के साथ-साथ अपनी परंपरा के अनुसार धनिया, आटा, चावल या पंच ड्राई फ्रूट्स की पंजीरी शामिल करें.भगवान पर इत्र जरूर लगाएं. पंचामृत स्नान के बाद षोडशोपचार पूजा की जाती है. श्री कृष्ण की जयंती मनाने के लिए मंदिरों में इस पूजा का विशेष आयोजन किया जाता है. इसके बाद रात्रि जागरण करते हुए सामूहिक रूप से भगवान की स्तुति की जाती है. इन सभी 16 चरणों में सोलह मंत्र हैं, सोलहवें मंत्र को प्रभु की आरती कहते हैं.
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FIRST PUBLISHED : August 30, 2023, 16:01 IST