विशाल कुमार/छपरा:- सारण में आलू की खेती करने वाले किसान खासा परेशान चल रहे हैं. आलू में झुलसा रोग लगने से किसानों की चिंता बढ़ गई है. आलू की फसल लगाने में जितनी पूंजी लगी है, झुलसा रोग लग जाने से वह भी निकलना इस बार मुश्किल लग रहा है. छपरा के कई किसानों ने इस बार बड़े पैमाने पर आलू की खेती की है. कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो कम रकबा में आलू की खेती कर रहे हैं. लेकिन दोनों प्रकार के किसानों की चिंता एक समान है. यह फसल दो से ढ़ाई महीने में तैयार हो जाता है और दो कट्ठे में दो क्विंटल तक उत्पादन हो जाता है. किसानों को अच्छा मुनाफा भी देकर जाता है, लेकिन इस बार लागत वसूल होने पर भी आफत है. इस बार आलू के पौधे शीतलहर और कुहासे की चपेट में आ गए हैं, जिससे फसल बर्बाद हो रही है.
किसानों के लिए जारी किया गया है एडवायजरी
किसान भोला सिंह ने बताया कि 25 रुपये किलो की दर से बीज खरीद कर बोया था. शीतलहर और कुहासे के कारण आलू के उत्पादन पर काफी असर पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि झुलसा रोग से आलू की फसल झुलस रही है. पहले आलू के पौधे में पीलापन आ जा रहा है और उसके बाद झुलस जा रहा है. जबकि अभी फसल तैयार भी नहीं हुआ है. वहीं कृषि विभाग के सहायक निदेशक राधे श्याम कुमार ने बताया कि किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की गई है. झुलसा रोग फाइटोथोड़ा इंफेस्टेस नामक फंगस के कारण होता है. तापमान के 10 से 15 डिग्री सेल्सियस रहने पर आलू में पिछात झुलसा रोग होता है. रोग का संक्रमण रहने पर व बारिश होते ही यह कम समय में फसल को नष्ट कर देता है. रोग से आलू की पत्तियां किनारे से सूखती है. किसान दो सप्ताह के अंतराल पर मैकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण, दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
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ऐसे करें आलू की फसलों का उपचार
सहायक निदेशक राधे श्याम कुमार ने बताया कि संक्रमित फसल में मैकोजेब 63 प्रतिशत व मेटालैक्सल 8 प्रतिशत या कार्बेन्डाजिम व मैकोनेच संयुक्त उत्पाद का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में 200 से 250 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर सकते हैं. वहीं तापमान 10 डिग्री से नीचे होने पर किसान रिडोमिल 4 प्रतिशत एमआई का प्रयोग कर सकते हैं. अगात झुलसा रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद के कारण होता है. इसमें निचली पत्तियों पर रिंग जैसे गोलाकार धब्बे बनते हैं. इसके कारण अंदर में सेन्ट्रिक रिंग बना होता है. पत्ती पीली पड़कर सूख जाती है. यह रोग देर से लगता है और रोग का लक्षण दिखाई देने पर जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या मैकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील पूर्ण दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं.
रासायनिक तथा जैविक कीटनाशी पर मिल रहा है अनुदान
सहायक निदेशक राधे श्याम कुमार ने बताया कि फेरोमोन ट्रैप, लाइफटाइम ट्रैप, स्टिकी ट्रैप पर 75% अनुदान एवं रासायनिक तथा जैविक कीटनाशी पर 50% अनुदान मिल रहा है. किसानों को चिन्हित कीटनाशी विक्रेताओं के पास से इसे लेना होगा. किसान भाई प्राप्त कैशमेमो और जमीन की रसीद को लेकर ऑनलाइन के माध्यम से कृषि विभाग के डीबीटी पोर्टल पर जाकर आवेदन कर अनुदान हासिल कर सकते हैं. राशि उनके खाते में चली जाएगी.
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FIRST PUBLISHED : January 14, 2024, 18:34 IST