कौन है भारतीय बिजनेसमैन, जिसे उज्बेकिस्तान में मिली 20 साल कैद की सजा, 68 बच्चों की मौत का दोषी

Uzbekistan Cough Syrup case: उज्बेकिस्तान ( Uzbekistan) में कफ सिरप से 68 बच्चों के मौत मामले में दोषियों की सजा का ऐलान कर दिया गया है. उज्बेकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 21 लोगों को दोषी ठहराते हुए सजा सुना दी. इंडियन कफ सिरप से 68 बच्चों की मौत मामले में कोर्ट ने भारतीय कारोबारी राघवेंद्र प्रताप सिंह (Raghvendra Pratap Singh) को भी 20 साल की कठोर सजा सुनाई है. भारतीय फार्मा कारोबारी राघवेंद्र प्रताप सिंह को  भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और जालसाजी का दोषी पाया गया .  

कौन है भारतीय कारोबारी राघवेंद्र सिंह 

राघवेंद्र प्रताप भारतीय कारोबारी है. फार्मा सेक्टर की उनकी कंपनी भारत की फार्मा कंपनियों से दवा खरीदकर उज्बेकिस्तान में खरीदती है. राघवेंद्र प्रताप क्यूरामैक्स मेडिकल (Quramax Medical) के डायेक्टर है. उनकी कंपनी भारत की मैरियन बायोटेक से डॉक-1 मैक्स सिरप खरीदकर उज्बेकिस्तान में बेचती है. मैरियन कंपनी में बने कफ सिरफ पीने से उज्बेकिस्तान में 68 बच्चों की मौत हो गई. मामला साल 2022-23 का है. उज्बेकिस्तान में 2022 और 2023 के बीच कम से कम 68 बच्चों की मौत जहरीला कफ सिरप पीने से हो गई. इन बच्चों को एम्बरोनॉल सिरप और डीओके-1 मैक्स कफ सिरप पिलाया गया था. इन दोनों ही कफ सिरप की मैन्युफैक्चरिंग नोएडा स्थित कंपनी मैरियन बायोटेक करती थी.  

सरकार ने कप सिरप कंपनी का लाइसेंस किया कैंसिल 

मामला सामने आने के बाद WHO ने अपनी जांच में पाया कि दोनों ही कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकोल या एथिलीन ग्लाइकोल की सही मात्रा शामिल नहीं की गई थी, जिसकी वजह से कफ सिरप जहरीला हो गया था.  उज्बेकिस्तान पुलिस ने कंपनी के खिलाफ केस दर्ज किया. डॉक-1 मैक्स सिरप बेचने वाली कंपनी के डायरेक्टर राघवेंद्र प्रताप को आरोपी बनाया गया. उनपर लापरवाही, धोखाधड़ी समेत कई आरोप लगाए गए. मामला सामने आने के बाद भारत सरकार ने मार्च 2023 में कफ सिरप बनाने वाली कंपनी मैरियन बायोटेक का लाइसेंस रद्द कर दिया.  

भारत की दवा इंडस्ट्री

भारत का दवा कारोबार करोड़ों का है. भारत में 3000 से ज्याद फार्मा कंपनियां और 10500 मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है. जेनरिक दवाओं में भारत की हिस्सेदारी काफी बड़ी है. दुनिया में जेनरिक दवाइयों की कुल जरूरत का 50 फीसदी से अधिक अकेले भारत निर्यात करता है. वहीं अमेरिका में लगभग 40 फीसदी जेनरिक दवाओं की जरूरत को भारत पूरा करता है. भारत फार्मास्यूटिकल प्रोडक्शन के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है.  

    

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