मराठा आरक्षण की मांग को लेकर ताजा विरोध प्रदर्शन का चेहरा बने किसान परिवार से आने वाले मनोज जारांगे ने महाराष्ट्र के किसानों और अपने समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाने से पहले राजनीति में हाथ आजमाया था।
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के मुद्दे को लेकर मनोज जारांगे की भूख हड़ताल जारी है। महाराष्ट्र के जालना जिले में उनके स्वास्थ्य स्थिति की निगरानी कर रहे चिकित्सकों ने कहा कि उनके शरीर में पानी की कमी हो गई है और उन्हें अब नसों के जरिए तरल पदार्थ दिया जा रहा है। हम आपको बता दें कि मनोज जारांगे ने ऐलान किया है कि अगर आरक्षण पर अनुकूल निर्णय नहीं लिया गया तो वह चार दिनों के बाद पानी और तरल पदार्थ पीना बंद कर देंगे। सरकार अब तक जारांगे से दो बार संपर्क कर उनसे अनशन वापस लेने का आग्रह कर चुकी है, लेकिन उन्होंने पीछे हटने से इंकार कर दिया है। महाराष्ट्र के पर्यटन मंत्री गिरीश महाजन ने मंगलवार को मंत्रिपरिषद के अपने सहयोगियों संदीपन भुमरे और अतुल सावे के साथ जारांगे से मुलाकात की थी और उनसे अनशन समाप्त करने का अनुरोध किया था। महाजन ने जारांगे को अपने साथ मुंबई चलने और इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से बातचीत का प्रस्ताव भी दिया लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया था। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि मराठवाड़ा क्षेत्र के मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र कैसे जारी किया जाए, इस पर एक समिति एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। हम आपको बता दें कि वर्ष 2018 में जब देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री थे, तब महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण प्रदान किया गया था, जिसे मई 2021 में उच्चतम न्यायालय ने अन्य आधारों के साथ कुल आरक्षण पर 50 प्रतिशत की छूट की सीमा का हवाला देते हुए रद्द कर दिया था। यह मामला अब राज्य सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है।
दूसरी ओर, मराठा आरक्षण की मांग को लेकर ताजा विरोध प्रदर्शन का चेहरा बने किसान परिवार से आने वाले मनोज जारांगे ने महाराष्ट्र के किसानों और अपने समुदाय से संबंधित मुद्दों को उठाने से पहले राजनीति में हाथ आजमाया था। जारांगे ने जब 29 अगस्त को निकटवर्ती जालना जिले के एक गांव में मराठा आरक्षण के समर्थन में अपनी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की थी, तब इस पर किसी का खास ध्यान नहीं गया था, लेकिन एक सितंबर को उस समय सब कुछ बदल गया जब स्थानीय अधिकारियों द्वारा उन्हें अस्पताल ले जाने की कोशिश करने के कारण हिंसा भड़क गई। इसके बाद हुए घटनाक्रम ने 14 महीने पुरानी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली तीन दलों की सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी। विपक्ष ने जारांगे और मराठा आरक्षण की मांग के समर्थकों पर पुलिस कार्रवाई के लिए उपमुख्यमंत्री एवं राज्य के गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे की मांग की।
हम आपको याद दिला दें कि पिछले शुक्रवार को जालना जिले के अंतरवाली सारथी गांव में प्रदर्शनकारियों ने अधिकारियों को जारांगे को अस्पताल ले जाने से रोक दिया, जिसके बाद हिंसक भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। हिंसा में 40 पुलिस कर्मियों सहित कई लोग घायल हो गए और 15 से अधिक राज्य परिवहन बसों में आग लगा दी गई। विरोध प्रदर्शन और पुलिस कार्रवाई के चलते लगभग 40 वर्ष के दुबले-पतले कार्यकर्ता जारांगे चर्चा में आए और शिवसेना-भाजपा-राकांपा (अजित पवार समूह) सरकार को एक बार फिर शिक्षा व नौकरियों में मराठों के लिए आरक्षण के बारे में बात शुरू करनी पड़ी। मराठा आरक्षण एक भावनात्मक मुद्दा है, जो कानूनी विवाद में उलझा हुआ है।
हम आपको बता दें कि जारांगे मूल रूप से मध्य महाराष्ट्र के बीड जिले के एक छोटे से गांव मटोरी के रहने वाले हैं और उन्हें जानने वाले लोगों के अनुसार, उन्होंने किसानों और मराठा समुदाय के लिए आंदोलन करने से पहले दलगत राजनीति में कुछ समय बिताया था। बताया जाता है कि जारांगे ने अपनी स्कूली शिक्षा गांव में ही पूरी की। मटोरी में कुछ साल बिताने के बाद, वह जालना जिले के अंबाद तहसील के अंतर्गत शाहगढ़ चले गए, जहां उन्होंने एक होटल में काम किया। इसके बाद उन्हें अंबाद की एक चीनी मिल में नौकरी मिल गई, जहां से वे राजनीति में आए। उनकी पत्नी और बच्चे जालना के शाहगढ़ में रहते हैं। जारांगे ने पहले मराठा आरक्षण आंदोलन में जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों को सरकारी मुआवजा दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाई थी।
हम आपको यह भी बता दें कि जारांगे कांग्रेस पार्टी के लिए काम करते हुए, वर्ष 2000 के आसपास युवा कांग्रेस के जिला अध्यक्ष बने। हालांकि, कुछ राजनीतिक मुद्दों पर वैचारिक मतभेदों के कारण, उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और मराठा समुदाय के संगठन के लिए काम करना शुरू कर दिया। फिर 2011 में उन्होंने एक संगठन बनाया जिसका नाम है ‘शिवबा संगठन’। जारांगे ने किसानों से संबंधित मुद्दे भी उठाए और 2013 में उन्होंने जालना जिले के किसानों के लिए जयकवाड़ी बांध से पानी छोड़ने के लिए एक आंदोलन चलाया।