कौन थे के के नायर? रामलला की मूर्ति हटाने का आदेश मानने से किया था इंकार, नेहरू हो गए थे नाराज

सिमरनजीत सिंह/शाहजहांपुर : आज राम मंदिर निर्माण का सपना पूरा हो रहा है. मंदिर निर्माण के लिए कई लोगों ने अपना जीवन दांव पर लगा दिया और कई लोगों ने शहादत भी दी. लेकिन कुछ नाम ऐसे भी हैं जिन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के आदेशों को मानने से साफ इंकार कर दिया और राम भक्तों की भावनाओं का सम्मान किया. फिर अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया.

राम जन्मभूमि संघर्ष समिति के राष्ट्रीय संयोजक स्वामी चिन्मयानंद ने जानकारी देते हुए बताया कि 22-23 दिसंबर1949 की मध्य रात्रि को जब रामलला स्वयं प्रकट हुए थे. स्वामी चिन्मयानंद बताते हैं कि मध्य रात्रि के दौरान मंडप में प्रकाश ही प्रकाश हो गया. इस प्रकाश में एक अद्भुत मूर्ति प्रकट हुई. इस मूर्ति के दर्शन सबसे पहले वहां सुरक्षा में तैनात मुस्लिम सिपाही ने किया था. मूर्ति के प्रकट होने की खबर रातों-रात जंगल की आग की तरह फैल गई. रात में ही हजारों की संख्या में राम भक्त मूर्ति के दर्शन करने के लिए पहुंच गए और पूजा अर्चना शुरू हो गई.

के के नायर दिया था ये तर्क
राम जन्मभूमि स्थल पर लगातार बढ़ती हुई राम भक्तों की संख्या को देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को तत्काल मूर्ति हटवाने के आदेश दिया. मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव भगवान सहाय को निर्देशित किया. मुख्यमंत्री के आदेशों का पालन करते हुए मुख्य सचिव ने फैजाबाद (अयोध्या) के डीएम के के नायर को मूर्ति को हटाने के आदेश दिया. इसके बाद डीएम के के नायर ने कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए मूर्ति को हटवाने से मना कर दिया. के के नायर ने कहा कि अगर मूर्ति हटाई गई तो प्रदेश में शांति व्यवस्था भंग हो सकती है. ऐसी स्थिति तैयार हो जाएगी जिसको नियंत्रित करना आसान नहीं होगा.

डीएम के के नायर ने दिया इस्तीफा
आदेशों का पालन नहीं होने से पंडित जवाहरलाल नेहरू आग बबूला हो गया. उन्होंने एक बार फिर से प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को सख्त आदेश दिया कि चाहे लाठी चलाओ या गोली चलाओ लेकिन मूर्ति हर हाल में हटाई जानी चाहिए. उसके बाद मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने डीएम के के नायर को सख्त लहजे में आदेश दिया कि तत्काल मूर्ति हटाई जाए. डीएम के के नायर ने मुख्यमंत्री के आदेशों का पालन नहीं किया और राम भक्तों का साथ देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद सिटी मजिस्ट्रेट गुरबख्श सिंह ने भी मूर्ति हटवाने से मना करते हुए परिसर में ताला लगवा कर अपने पद से इस्तीफा दे दिया. यह ताला 1984 तक लग रहा.

1984 में खुला राम मंदिर से ताला
राम जन्मभूमि संघर्ष समिति के राष्ट्रीय संयोजक स्वामी चिन्मयानंद ने बताया कि 1984 में एक बार फिर से ताला खुलवाने के लिए जिला जज कृष्ण मोहन पांडे को दरख्वास्त दी गई. जिसके बाद उन्होंने तत्कालीन डीएम रामशरण श्रीवास्तव से रिपोर्ट मांगी. डीएम रामशरण श्रीवास्तव ने कहा था कि” राम मंदिर में ताले का कोई औचित्य नहीं है. ताला किसी न्यायालय के आदेश पर नहीं लगाया गया बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से ताला लगाया गया था. उसके बाद जिला जज ने एसपी सरदार कर्मवीर सिंह से ताला हटाने को कहा.

सिर्फ ताला खुलवाना नहीं था मकसद
राम जन्मभूमि संघर्ष समिति के राष्ट्रीय संयोजक स्वामी चिन्मयानंद ने कहा की 1984 में ताला तो खुल गया लेकिन हमारा मकसद सिर्फ ताला खुलवाना ही नहीं था. बल्कि वहां पर भव्य मंदिर का निर्माण करना था. जिसके बाद मंदिर निर्माण के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और आज वह दिन आया है. जब भगवान श्री राम अयोध्या में विराजमान होंगे.

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