कौआ, गाय और कुत्ते को ही क्यों खिलाया जाता है श्राद्ध का भोग, जानें इसके पीछे का महत्व और कारण

अनुज गौतम, सागर. अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हिंदी कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से आश्विन माह कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक सनातन धर्म में साधकों और परिजनों के द्वारा तर्पण श्राद्ध कर्म और पिंडदान किया जाता है. पितृपक्ष में पूर्वजों के निमित्त श्रद्धा व आस्था के 6 दिन बीत चुके हैं. लोग अपने पितरों को तृप्त व प्रसन्न करने के लिए तर्पण के दौरान जल व श्राद्ध के माध्यम से अन्न दे रहे हैं. ऐसे में आज हम जानेंगे कि विभिन्न पशु पक्षियों को भोग लगाने का क्या महत्व है.

श्राद्ध कर्म जातक की तिथि के दिन किया जाता है. जिसमें खीर, पुरी, सब्जी के साथ खट्टा मीठा समान बनाया जाता है जो अपने मानदान (पूज्यनीय रिश्तेदार), ब्राह्मण और परिजनों को खिलाया जाता है लेकिन इसके पहले अपने पूर्वजों को भोग लगाने के लिए इसके चार भाग निकल जाते हैं, जिसमें कौवा, गाय स्वान (कुत्ता) और कन्या का भाग शामिल रहता है.

कई लोगों के मन में यह सवाल होता है कि श्रद्धा का भोग इन पशु-पक्षियों को ही क्यों दिया जाता है तो इसका जवाब पिछले 29 साल से तर्पण करने वाले कर्मकांडी ब्राह्मण पंडित यशवर्धन चौबे देते हुए बताते हैं कि यह वसुदेव कुटुंबकम की भावना में समाहित है. 84 लाख देवताओं का जब हम आवाहन करते हैं तो सनातन धर्म वायु को भी पूजता है, वह अग्नि को भी पूजता है, वह आकाश को भी पूजता है, जल को भी पूजता है और वह पृथ्वी को भी पूजता है. इस प्रकार से देवों के प्रति कृतज्ञता का भाव है. गाय जो हैं. वह पवित्रता का सूचक हैं. स्वान अर्थात कुत्ता स्वांग भक्ति के लिए, काग अर्थात कौआ मलिंता निवारक हैं. कन्या या अभ्यागत अर्थात अतिथि के लिए देते हैं. यह भोजन के रूप में समाहित किए जाते हैं और इनका बहुत महत्व है.

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