कोई बच्चा भी अब…नीतीश कुमार के इकबाल को तेजस्वी यादव का चैलैंज!

हाइलाइट्स

नीतीश कुमार ने विधानसभा में विश्वासमत जीता मगर कुछ खोया भी!
पाला बदल की राजनीति के माहिर मगर, इकबाल पर उठ रहे सवाल.
ठसक के साथ सत्ता चलाने की हनक खोते जा रहे सीएम नीतीश कुमार!

पटना. बिहार के मुख्यमंत्री राजनीति के चाणक्य कहे जाते हैं. इस बार भी उन्होंने साम दाम दंड भेद के जरिये एक बार फिर अपनी कुर्सी बचा ली. विश्वासमत के पक्ष में 129 और विपक्ष के बायकॉट करने के कारण विरोध में शून्य मत मिले. लेकिन इस बार अपने विश्वास की संख्या पूरी करने में इतने पापड़ बेलने पड़े जो शायद कभी नहीं करना पड़ा था. इस जीत को बिहार के राजनीति के जानकार नीतीश कुमार की खत्म होती साख और उनके शासन-सत्ता पर खोते इकबाल से जोड़कर देख रहे हैं.

दरअसल,नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव पर कहा कि सबसे पहले हम माननीय मुख्यमंत्री जी धन्यवाद देना चाहते हैं कि लगातार नौ बार उन्होंने शपथ लेकर के इतिहास रचने का काम किया है. तेजस्वी का तंज जारी रहा और उन्होंने आगे कहा कि- नीतीश जी ने नौ बार तो लिया ही, लेकिन एक ही टर्म तीन-तीन बार लिया शपथ ली, ऐसा अद्भुत नजारा हम लोगों ने कभी नहीं देखा था. इसके बाद तेजस्वी ने कहा कि अब कोई बच्चा भी नीतीश कुमार की बात पर भरोसा नहीं करेगा.

नीतीश की सबसे बड़ी पूंजी सियासी साख

दरअसल, राजनीति के जानकार कहते हैं कि नीतीश कुमार की छवि ही उनकी सबसे बड़ी पूंजी थी. लेकिन वर्ष 2013 के बाद उनका राजनीतिक आचरण अस्थिरता वाला रहा है जो उनकी साख को सीधे नुकसान पहुंचा चुका है. वर्ष 2013 में जब भाजपा का साथ छोड़ने के बाद जब 2015 में महागठबंधन बनाया तो उसे स्वाभाविक गठबंधन कहा गया. लालू प्रसाद यादव से तमाम सियासी अदावत के बाद भी इन दोनों का एक होना समाजवाद की जीत बताया गया.

पाला बदल राजनीति के उदाहरण बने

नीतीश कुमार और लालू यादव की जोड़ी को जनता का भरपूर समर्थन भी मिला और 243 सीटों में राजद, जदयू और कांग्रेस के साथ अन्य दलों के महागठबंधन ने बड़ी जीत हासिल करते हुए 179 सीटों पर विजय प्राप्त की. सरकार अच्छी भली चल रही थी, लेकिन 2017 अगस्त में सीएम नीतीश ने एनडीए के साथ जाने का फैसला कर लिया और महागठबंधन से निकल गए. इसके बाद उन्होंने भाजपा के साथ सरकार बनाई जो 2020 चुनाव तक चली.

परसेप्शन में बाजी मार ले गए तेजस्वी यादव

हालांकि, उनकी विश्वसनीयता लगातार गिरती गई और यह चुनाव परिणामों में भी झलकने लगा. 2020 के विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू 45 सीटों के साथ बिहार की तीसरी पार्टी बन गई जो कभी बिहार की नंबर वन पार्टी हुआ करती थी. चुनाव परिणाम में सीटों की संख्या में एनडीए भले बाजी मार ले गया, लेकिन जन समर्थन में राजद, कांग्रेस और वामदलों ने सत्ताधारी गठबंधन से 12 हजार मत अधिक पाकर परसेप्शन में बाजी मार ली.

नीतीश ने पाला बदला और अपनी साख खो दी!

भले ही इसका ठीकरा जदयू ने चिराग पासवान पर फोड़ा जिन्होंने जदयू के सभी कैंडिडेट के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार दिए थे. लेकिन, जानकार कहते हैं कि जाहिर तौर पर नीतीश कुमार की गिरती साख का ही नतीजा था. जदयू को अपनी कमियों पर मंथन करना चाहिए था, लेकिन एक बार फिर 2022 में नीतीश कुमार ने एनडीए का दामन छोड़ महागठबंधन के साथ होने का फैसला ले लिया. 17 महीने सरकार भी अच्छी भली चलती गई, लेकिन फिर नीतीश ने पाला बदल लिया और 2024 में एनडीए के साथ हो लिए.

जदयू को एकजुट रख पाना CM नीतीश के लिए चैलेंज

राजनीति के जानकार कहते हैं कि इससे अधिक अवसरवाद का उदाहरण राजनीति में शायद ही मिले. एक समय में ठसक के साथ सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार की सियासी हनक भी कम होती चली गई. अब जदयू में अपने कुछ चुनिंदा चहेतों से घिरे रहने का आरोप उनपर लगता है. वह उम्रदराज भी हो गए हैं इसलिए ऐसे आरोप लगेंगे भी. लेकिन, इस बार विश्वासमत में नीतीश कुमार बेदम होते साफ दिखे. जदयू के ही तीन विधायकों ने तो खुले तौर पर बगावत का झंडा बुलंद कर दिया. साफ है कि यह नीतीश कुमार जैसे नेता के लिए जदयू को एकजुट रख पाना अब बड़ा चैलेंज है.

रिटायरमेंट की ओर बढ़ चले नीतीश कुमार?

हालांकि, नीतीश राजनीति के मास्टर हैं और उन्होंने विश्वासमत प्राप्त कर लिया. राजद खेमे के तीन विधायक को भी अपने पाले में करने में कायाब रहे. कहा जाता है कि जोड़-तोड़ की राजनीति में भाजपा के नेताओं का पूरा साथ नीतीश कुमार को मिला और एक बार फिर उनकी कुर्सी बच गई. लेकिन, इसके साथ ही यह भी साफ है कि जदयू में भी अब नीतीश कुमार का दम उतना नहीं दिख रहा जितना 2017 के पहले दिखता था. अब राजनीति के जानकार साफ तौर पर कहने लगे हैं कि नीतीश कुमार की सक्रिय राजनीति के दिन गिने चुने रह गए हैं.

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