कैसे राजपूत-मीणा समुदाय ने बीजेपी को मेवाड़ और पूर्वी राजस्‍थान में दिलाई जीत?

अनिंदय बनर्जी

नई दिल्‍ली. राजस्थान का चुनाव परिणाम एक स्पष्ट रुझान दिखाता है कि मेवाड़ और पूर्वी राजस्थान भगवा रंग में लौट आए हैं. जहां मेवाड़ क्षेत्र राजपूतों से काफी प्रभावित है, वहीं पूर्वी क्षेत्र में ज्यादातर आदिवासियों का वर्चस्व है. किरोड़ी लाल मीणा ने 2018 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को मीणा वोट पाने में मदद नहीं की. उस वक्‍त राजपूत वोट विभाजित थे. ऐसा इसलिए क्‍योंकि तब पद्मावत फिल्म को लेकर भाजपा के रुख से राजपूत काफी नाराज थे. मौजूदा चुनाव में अगर देर शाम के रुझानों पर गौर किया जाए, तो भाजपा इसे बदलने में कामयाब रही.

जैसा कि न्यूज18 ने क्षेत्र के अपने चुनाव कवरेज के दौरान रिपोर्ट किया था, ठीक वैसे ही राजपूतों का 2018 का मोहभंग 2023 में दूर हो गया है. यह चुनावी आंकड़ों पर दिखा भी है. जीत के प्रमुख कारणों में से एक नाथद्वारा से महाराणा प्रताप के वंशज विश्वराज सिंह मेवाड़ को मैदान में उतारना भी रहा. उस वंश से कोई 30 वर्षों के बाद सक्रिय राजनीति में शामिल हुआ. न्‍यूज18 के साथ एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा, “जहां तक मेरी वंशावली का सवाल है, मैं कहूंगा कि भगवान की कृपा और मेरे पूर्वजों के आचरण से, हम यहां के लोगों के साथ एक बंधन और तालमेल साझा करते हैं और यह उनकी ओर से भी ऐसा ही है.” ऐसा लगता है कि समुदाय को लुभाने का संदेश क्षेत्र के अंतिम राजपूत तक पहुंच गया है.

राजपूत समाज को रिझाया
इसके अतिरिक्त, भाजपा ने गजेंद्र सिंह शेखावत, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, भैरों सिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी जैसे कई राजपूतों को मैदान में उतारा. साथ ही कई अन्य लोगों को यह संदेश भी दिया कि वे राजपूत समाज को लुभाने में एक अतिरिक्त मील चल चुके हैं. उदयपुर शहरी, उदयपुर ग्रामीण, नाथद्वारा और राजसमंद जैसी जगहों पर भाजपा उम्मीदवारों के आगे बढ़ने के साथ, मेवाड़ भगवा रंग में लौट आया है. 2018 में मेवाड़ क्षेत्र में बीजेपी के 14 विधायक हार गए थे. ऐतिहासिक रूप से, यह कहा जाता है कि जो मेवाड़ जीतता है वह जयपुर में सत्ता पर काबिज होता है. हालांकि पिछली बार, इस क्षेत्र ने एक विभाजित जनादेश दिया था, जहां कांग्रेस ने 2013 के प्रदर्शन के मामले में 11 विधायकों को जोड़ा था. 2018 के राजस्थान चुनाव से ठीक पहले, बीजेपी के पोस्टर बॉय हरीश मीणा कांग्रेस में शामिल हो गए. भाजपा वाजिब तौर पर इस बात को लेकर चिंतित थी कि क्या वह समुदाय पर अपना प्रभाव बरकरार रख पाएगी, खासकर पूर्वी राजस्थान में.

यह भी पढ़ें:- मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर सहित 21 बीजेपी सांसदों ने लड़ा विधानसभा चुनाव, 14 जीते, अब दो सप्‍ताह में लेना होगा अहम फैसला

किरोड़ी लाल मीणा ने दिलाया फायदा
किरोड़ी लाल मीणा, मीणा समुदाय के एक फायरब्रांड नेता हैं, जिन्होंने 2003 के चुनाव के दौरान भाजपा छोड़ दी, जिससे बीजेपी को झटका लगा और राज्यसभा सांसद के रूप में वापस आए, लेकिन 2018 के चुनाव में इसका कोई असर नहीं हुआ. हालांकि, इस बार उन्होंने आंदोलनों का नेतृत्व किया और कई कथित घोटालों में व्हिसलब्लोअर बन गए, जिसके बाद केंद्रीय एजेंसी की छापेमारी इस बार भाजपा के लिए काम करती दिख रही है. साथ ही उन्हें उच्च सदन के ठंडे बस्ते से वापस लाते हुए, भाजपा ने इस बार उन्हें सवाई माधोपुर से मैदान में उतारा, जिससे मीणाओं को स्पष्ट संदेश गया.

कभी एक फिल्‍म ने ‘बिगाड़ा’ था खेल, कैसे राजपूत और मीणा समुदाय ने बीजेपी को मेवाड़ और पूर्वी राजस्‍थान में दिलाई जीत?

आदिवासी समाज तक पहुंचे पीएम 
इस अक्टूबर में आदिवासियों तक पहुंचते हुए, पीएम मोदी ने बांसवाड़ा में बोलते हुए देश के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका की सराहना की. उन्होंने कहा, “हमारे स्वतंत्रता संग्राम का हर कदम, इतिहास के पन्ने आदिवासी वीरता से भरे हुए हैं.” ऐसा लगता है कि इसका फायदा मिला है क्योंकि सवाई माधोपुर (जहां भाजपा के सबसे बड़े मीणा नेता चुनाव लड़ रहे हैं), कोटा दक्षिण, झालरापाटन (जहां वसुंधरा राजे सिंधिया ने जीत हासिल की है), छबड़ा और डग सहित अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा उम्मीदवार अच्छे अंतर से आगे चल रहे हैं. हालांकि भरतपुर या कोटा उत्तर जैसी विसंगतियां हैं, लेकिन भाजपा राज्य के पूर्वी क्षेत्र में अपना भगवा झंडा फहराने में सफल रही है.

Tags: Amit shah, Assembly Elections 2023, Pm narendra modi, Rajasthan elections

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *