हिना आज़मी/ देहरादून. किसी अपराध के चलते जेल जाने वाले कैदियों का जीवन बहुत बदल जाता है. जेल के अंदर भी उन्हें कुछ न कुछ काम में लगाया जाता है ताकि वह कुछ कमाई कर सकें और सलाखों के पीछे पड़ी वीरान जिंदगी को थोड़ा बेहतर कर सकें. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के 65 वर्षीय सफी उल्लाह जेल के कैदियों को कारपेट, मैट और कई तरह के हैंडीक्राफ्ट बनाना सिखाते हैं, जिन्हें उत्तराखंड ही नहीं दिल्ली, मुंबई आदि बड़े शहरों की प्रदर्शनियों में बेचा जाता है, जिससे जेल के कैदियों को भी रोजगार मिल जाता है.
सफी उल्लाह ने कहा कि कालीन बुनने का काम वह बचपन से कर रहे हैं. यह उनका पुश्तैनी काम है और अपने पिता से उन्होंने इसे सीखा था. इसके बाद साल 2009 में उन्हें जेल के कैदियों को यह काम सिखाने को कहा गया. उन्होंने देहरादून की सुद्धोवाला जेल में कई कैदियों को कार्पेट मेकिंग सिखाई. इसके बाद वह हरिद्वार जेल के कैदियों को काम सिखाने लगे. 10 से 12 सालों में उन्होंने सैकड़ों कैदियों को ट्रेनिंग देकर उन्हें हुनरमंद और रोजगार लायक बना दिया है. उनका कहना है कि कई कैदी जेल से छूटने के बाद भी उनके पास काम करना चाहते हैं.
महिलाओं को भी दी ट्रेनिंग
सफी उल्लाह सिर्फ कैदियों को ही नहीं बल्कि महिलाओं को भी ट्रेनिंग देते हैं. समय-समय पर वह महिलाओं को भी यह काम सिखाते हैं. मुनस्यारी में कई महिलाओं को उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की राह दिखाई. हाल ही में देहरादून नारी निकेतन में महिलाओं को कार्पेट, आसन, पायदान और कालीन बनाने की ट्रेनिंग दी. उनके बनाये हुए प्रोडक्ट्स उत्तराखंड ही नहीं दिल्ली, मुंबई और कोलकाता की प्रदर्शनियोंमें भेजे जाते हैं. उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम के लिए भी उनके यहां आसन बनाकर भेजे गए थे. उन्होंने बताया कि कैदियों की मेहनत और लगन से हम लोग 20 से 25 लाख रुपये कमा लेते हैं. ये प्रोडक्ट इतने टिकाऊ होते हैं कि 25 साल तक ऐसे के ऐसे ही रहेंगे.
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FIRST PUBLISHED : February 20, 2024, 16:48 IST