नीरज कुमार/बेगूसराय: बिहार को केला उत्पादन के लिए प्रयुक्त राज्य माना जाता है. यही वजह है कि बिहार में सरकार द्वारा केला की खेती पर 75 फीसदी सब्सिडी किसानों को मुहैया कराया जा रहा है. साथ हीं केला की बागवानी के लिए किसानों को प्रेरित भी किया जा रहा है. वहीं किसान भी अब धान, गेहूं के अलावा कम समय में अच्छा मुनाफा देने वाली फसलों की खेती कर रहे हैं. इसमें कई किसान तो बागवानी से अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं.
अगर आप भी पारंपरिक खेती से आर्थिक रूप से सफल नहीं हो पा रहे हैं और वैकल्पिक खेती के बारे में सोच रहे हैं तो आपके लिए केले की खेती एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है. बेगूसराय जिला अंतर्गत बरियारपुर पक्षी गांव के रहने वाले रामचंद्र दास ने ऐसा ही उदाहरण पेश किया है. ठेला पर केला बेचते-बेचते अब बागवानी भी करने लगे हैं और इससे मुनाफा भी कमा रहे हैं.
ठेला पर केला बेचने वाले आज एसी में पका रहें हैं केला
रामचंद्र दास ने बताया कि पूर्व में ठेला पर पर केला लेकर बेचते थे. जिससे आमदनी हो जाती थी और कारोबार धीरे-धीरे बढ़ता गया. त्यौहार में केले की डिमांड को पूरा करने के लिए भागलपुर से केला लाना शुरू कर दिया. इस दौरान एक साल ऐसा हुआ जब छठ के समय बेचने के लिए केला नहीं मिला पाया तो निराश होकर लौटने लगे. इसी दौरान भागलपुर के हीं रहने वाले एक व्यक्ति ने खुद से केला की बागवानी करने की सलाह दी.
रामचंद्र ने बताया कि घर आने के बाद गांव के हीं जमींदार से चार कट्ठा खेत लीज पर लेकर केला लगाया और अच्छी आमदनी हुई. इसके बाद ठेला पर केला बेचना छोड़ केला उत्पादन करना शुरू कर दिया. फिलहाल चार बीघा खेत लीज पर लेकर केला लगाया है. केला लगाने के लिए खेत लीज पर लेकर 1 लाख की लागत से खेत तैयार किया. भुसावल प्रजाति के केले का बागवानी कर रहे हैं. उत्पादित केले को पकाने के लिए एसी का प्रयोग करते हैं. इसके लिए कोल्ड स्टोरेज को 100 रुपए क्विंटल देना होता है.
8 लाख से ज्यादा की हो रही है आमदनी
रामचंद्र ने बताया कि केले की बागवानी करने के लिए किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिली है. सरकारी कार्यालय जाकर प्रयास भी किया, लेकिन असफल रहा. अगर सरकारी सहायता मिलती तो 23 रुपए के केले का एक टिशू कल्चर 6 रुपए में उपलब्ध होता.
वहीं 75 फीसदी सब्सिडी मिलती तो और भी आमदनी ज्यादा होती. लेकिन अभी भी चार बीघा में केले की बागवानी कर आठ लाख से अधिक का मुनाफा कमा रहे हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि 5 साल पहले ठेला पर केला बेचने वाले दुकानदार को केले की डिमांड ने प्रगतिशील किसान बना दिया.
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FIRST PUBLISHED : October 7, 2023, 22:58 IST