धीरज कुमार/मधेपुरा. बिहार के किसान अब पारंपरिक खेती को छोड़कर साग सब्जी और फल उत्पादन पर काफी जोर दे रहे हैं. वहीं मधेपुरा के उदाकिशुनगंज प्रखंड की खाड़ा के रहने वाले लोधाय मंडल ने इस बार 18 कट्ठा खेत में सिंगापुरी केला की बागवानी किया है. लोधाय को केला के बागवानी का आइडिया भागलपुर से मिला. जब वह नवगछिया घूमने के लिए गया था, 4 साल पहले वहीं से केला का पौधा लाया और 6 कट्ठा से शुरूआत की. इस खेती की और आज लगभग एक बीघा में वह केले की खेती कर रहा है. मोटे अनाज की तुलना में अच्छा मुनाफा भी कमा रहा है.
लोधाए पहली बार केले की बागवानी 6 कट्ठा से शुरूआत की थी. जो की साल दर साल बढ़ता गया और खेती का दायरा भी बढ़ता गया. आज वह 18 कट्ठा में बागवानी कर रहें हैं. आगामी इसकी तादाद एक एकड़ भी जा सकती है. वह कहते हैं कि धीरे-धीरे खेती बढ़ा रहे हैं. अगर इस साल मुनाफा बेहतर हुआ तो अगले वर्ष डेढ़ बीघा तक केला की खेती करेंगे.
ऐसे आया आइडिया
लोकल 18 बिहार से बात करते हुए लोधाय ने बताया कि केला खेती का आइडिया उसे भागलपुर से मिला. सब्जी बेचने के क्रम में भागलपुर मंडी गया था, नवगछिया की किसान से मुलाकात हुई. फिर उन्होंने केला की खेती की शुरू की. आज 18 कठ्ठे खेत में सिंगापुरी केला की खेती कर रहे है. लोधाय ने बताया कि सिंगापुरी केला की खासियत यह है कि यह पूजा पाठ से लेकर त्योहार के वक्त निकलने पर आसानी से सब बिक जाता है. रेट भी अच्छा लग जाता है. एक बीघा खेत में लगभग 50-60 हजार रुपए खर्च आता है. मुनाफा 3-4 लाख तक आसानी से हो जाता है. वहीं केला को खानी के हिसाब से बेचता हैं, जो कि सिंघेश्वर सहरसा और खगड़िया से व्यापारी खरीदने आते हैं खरीद कर ले जाते हैं.
सिंगापुरी केला की खेती
लोधाए सिंगापुर केला की खेती 4 वर्षों से कर रहा है सिंगापुरी केला एक बीघा में लगभग 600-700 पौधा लगाया जाता है. उसके बाद इसमें खाद बीज सिंचाई से लेकर समय-समय पर कीटनाशक दवाई भी दी जाती है, जिसमें एक बीघा पर 50 से 60 हजार रुपया खर्च आता है. वह कहते हैं कि सहरसा मधेपुरा की किसान अक्सर सिंगापुरी केला की ही खेती करते हैं. यह खेती मधेपुरा की धरती के लिए उपयुक्त है और किसानों को इस केला की खेती में मुनाफा भी बेहतर हो रहा है.
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FIRST PUBLISHED : February 4, 2024, 12:23 IST