केले का थंब काटने से निकलता खून, दुर्गा मंदिर स्थापना में छुपे हैं रहस्य

मनीष कुमार/कटिहार. सीमांचल के कटिहार में माता का एक मंदिर काफी प्राचीन है. इस मंदिर की अपनी अलग मान्यता है. कटिहार पोठिया के 208 साल पुराने दुर्गा मंदिर की बात करें तो इस प्राचीन दुर्गा मंदिर को यहां के पूर्वजों ने केला के थंब काटने के दौरान जहां पर खून निकला था. वही, इस मंदिर की स्थापना की गई थी. सन 1815 ई. में यहां स्थानीय पूर्वजों द्वारा सार्वजनिक रूप से मंदिर की स्थापना की गई थी. 208 साल पूर्व पोठिया बाजार से सटे गद्दी घाट के कोसी नदी में मां दुर्गा की एक मूर्ति बहकर आई थी, तभी पोठिया गांव के लोगों ने उस मूर्ति को लाकर पुजारी को दिया. इसके बाद यह तय किया गया कि जहां केले का थंब काटने से खून निकलेगा वहीं, पर मंदिर का निर्माण होगा.

इस मंदिर में आज भी बलि प्रथा
पंडित पुरुषोत्तम पोद्दार ने कहा कि आज भी इस मंदिर में बलि प्रथा चालू है. इसके अलावा चारों नवरात्रा के दौरान यहां विधि विधान से पूजा होती है. दशमी के दिन किसी भी हाल में मूर्ति विसर्जन तय है. विसर्जन से जुड़कर भी इस मंदिर का आकर्षण काफी भव्य है. मंदिर कमेटी से जुड़े लोग पूजा के आयोजन को लेकर पूरी तरह तन मन से जुटे हुए हैं. इन लोगों के माने तो इस मंदिर में हर किसी के मनोकामना पूर्ण होती है, इसलिए दूर-दूर से इस मंदिर में लोग आते हैं. वही, मंदिर कमेटी से जुड़े लोग बताते हैं कि नवमी और दशमी को यहां सदियों से बलि देने की प्रथम परंपरागत रूप से भक्तजन देते आ रहे हैं. इन दो दिनों में करीब हजार से अधिक पाठा की बोली दी जाती है.

हाथ में मशाल लेकर विसर्जन में होते हैं शामिल
यहां की महानता है कि बलि देने से माता प्रसन्न होकर भक्तजनों के सभी मनोकामना पूर्ण कर देती है. बताते चले कि लगभग 65 फीट विशाल मंदिर का निर्माण प्राचीन मंदिर के स्वरूप में किया गया. विशेष रूप से मंदिर की अलौकिक शक्ति की चर्चा दूर-दूर तक है. जबकि कई ऐसी कहानी अलौकिक शक्ति से जुड़ी हुई हैं, जिसकी चर्चा दूर दूर तक है. इस मंदिर कमेटी से जुड़े लोग बताते हैं कि विसर्जन के दौरान 10 हजार से अधिक भक्ति मौजूद होते हैं. खासकर युवा हाथ में मशाल लेकर विसर्जन में शामिल होते हैं, जो काफी अनोखा दृश्य होता है. कटिहार के पोठिया में स्थित लगभग 208 साल पुराना दुर्गा मंदिर अलौकिक शक्ति के लिए प्रसिद्ध है, जहां दूर-दूर से भक्त आकर पूजा करते हैं.

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