रोहित भट्ट/ अल्मोड़ा. जैसे-जैसे समय बदल रहा है, वैसे-वैसे लोग उस समय के हिसाब से ढल रहे हैं. उत्तराखंड की कुमाऊंनी संस्कृति की बात करें, तो यहां की अलग ही छटा देखने को मिलती है. यहां की कुछ परंपराएं धीरे-धीरे अब गायब होते नजर आ रही हैं. पहले कोई भी शुभ कार्य होता था, तो ग्रामीण क्षेत्रों के घरों में कुमाऊंनी संस्कृति की प्रतीक मानी जाने वाली रंग बिरंगी पतंगें देखने को मिलती थी, पर धीरे-धीरे इसका चलन अब कम हो रहा है. लोग इस आधुनिक दौर के युग में पतंगों के बजाय फैंसी माला और झालर को लगाना पसंद कर रहे हैं.
कुछ सालों पहले तक लोग शुभ कार्यों के अवसर पर अपने घरों के बाहर रंग बिरंगी पतंगें लगाया करते थे. यह पतंगें शादी समारोह, नामकरण या फिर कोई भी शुभ कार्य होता था, तो लोग इसे अपने घर के बाहर से लगाया करते थे पर जैसे-जैसे समय बदला, लोग इन्हें पीछे ही छोड़ते गए. अब लोग शुभ कार्यों में फैंसी माला या फिर झालर आदि का सबसे ज्यादा प्रयोग करते हैं. अल्मोड़ा में कुछ ही लोग हैं, जो आज भी इनका इस्तेमाल कर रहे हैं.
अल्मोड़ा के वरिष्ठ रंगकर्मी त्रिभुवन गिरी महाराज ने कहा कि इस आधुनिक युग की चकाचौंध में सजावट के विभिन्न तरह के सामान देखने को मिल रहे हैं. पहले से झारा कागज यानी कि रंग बिरंगी पतंगें शुभ कार्यों में लगाई जाती थी, पर आज लाइट माला और झालर आदि को लोग लगाना पसंद करते हैं. इसके अलावा लोगों को अब समय भी नहीं है, जिस कारण से लोग इसे लगाने में कम रुचि रखते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ जगहों पर पतंगें दिख जाती हैं.
एनजीओ से जुड़ी महिलाएं बना रही पतंगें
गृहिणी जयंती बिष्ट ने कहा कि पहले से ग्रामीण क्षेत्र में होने वाले शुभ कार्यों के लिए रंग बिरंगी पतंगें लगाई जाती थीं, पर धीरे-धीरे माहौल काफी बदल चुका है और अब लोग इन्हें भूलते ही चले जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि कुछ जगह पर फिर से इसकी थोड़ी बहुत मांग देखने को मिल रही है. एनजीओ के माध्यम से वे लोग पतंगें बना रहे हैं.
समिति को मिला है ऑर्डर
एनजीओ की अध्यक्ष रेखा आर्य ने कहा कि उनके एनजीओ को हमारी पुरानी संस्कृति से जुड़ी पतंगें बनाने का ऑर्डर मिला है. इनका इस्तेमाल विवाह समारोह में होगा.इससे पहले उन्होंने नवरात्रि के समय दुर्गा महोत्सव चौहानपाटा के लिए यह पतंगें बनाई थीं. ये पतंगें वे लोग कपड़े से बना रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : November 29, 2023, 18:53 IST