कुत्तों के हमले से उद्योगपति की मौत के बाद तो सरकारों की आंखें खुल जानी चाहिए

वाघ बकरी चाय समूह के कार्यकारी निदेशक पराग देसाई का आवारा कुत्तों के हमले के दौरान सिर में लगी गंभीर चोट से अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। 49 वर्षीय देसाई पर उनके घर के बाहर मौजूद आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया था। यह घटना बताती है कि देश में आवारा पशुओं के नियंत्रण और लचर सरकारी मशीनरी की अनदेखी की हालत क्या है। इससे आम आदमी ही नहीं बल्कि उद्योगपति तक पीड़ित हैं। हर रोज कुत्तों के काटने की सैंकड़ों घटनाएं होने के बावजूद केंद्र, राज्यों की सरकारें और स्थानीय निकाय दशकों पुरानी इस समस्या के निदान में विफल रहे हैं। यदि यही हादसा किसी विदेशी पर्यटक के साथ होता तो भारत की विश्व में कितनी किरकिरी होती। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि विदेशी पर्यटक कभी आवारा कुत्तों के निशाने पर नहीं आ सकते। विधायिका ही नहीं न्यायपालिका भी इस मुद्दे का कोई ठोस समाधान नहीं कर सकी है।

इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की नजर पिछले दिनों तब गई जब सुनवाई के दौरान एक वकील के हाथ में पट्टी बंधी देख कर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड ने पूछ लिया। चीफ जस्टिस के साथ बैठे दूसरे जज जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि आवारा कुत्तों को लेकर इस तरह की समस्या एक गंभीर समस्या है। कोर्ट में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसे गंभीर समस्या बताते हुए कहा कि आए दिन कुत्तों के काटने के मामले सामने आ रहे हैं। यहां तक कि छोटे और अबोध बच्चों के मौत की खबरें भी काफी विचलित करती हैं। सॉलिसिटर जनरल की चिंता से सहमति जताते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड ने कहा था कि दो साल पहले मेरा लॉ क्लर्क गाड़ी पार्क कर रहा था तभी आवारा कुत्तों ने उसे घेर लिया था और उस पर हमला कर दिया था। अदालत में दूसरे सीनियर एडवोकेट विजय हंसरिया ने भी चीफ जस्टिस से अनुरोध किया कि इस गंभीर समस्या पर अदालत को स्वत: संज्ञान लेना चाहिए। हंसारिया ने कहा कि इस मामले पर देश के अलग-अलग हाईकोर्ट के अलग-अलग फैसले के चलते एक भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेकर एक आदेश पारित करना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल और हंसारिया की मांग पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वो इस पर विचार करेंगे। हालांकि पहले भी आवारा कुत्तों के आतंक पर देश के दूसरे राज्यों की कई याचिकाएं सालों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।

तमिलनाडु में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और हमलों को लेकर नसबंदी किये जाने के खिलाफ पेटा (पशु अधिकार संगठन) की याचिका हो या केरल और बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका केरल के कन्नूर की जिला पंचायत की ओर से भी दायर की गई, जिसमे इंसान के लिए खतरनाक हो चुके कुत्तों को उन्हें इन्जेक्शन देकर मार दिए जाने की मांग की गई। दिल्ली हाईकोर्ट के 2021 में आए एक ऐतिहासिक फैसले में आवारा कुत्तों को भोजन के अधिकार की गारंटी दी गई है। साथ ही इसमें चेतावनी भी दी गई है कि इस अधिकार को सुनिश्चित करने में सावधानी बरती जानी चाहिए। इससे बाकी नागरिकों के अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए। जी-20 के आयोजन के दौरान एमसीडी की ओर से सडकों से आवारा कुत्तों को हटाए जाने का मामला दिल्ली हाईकोर्ट में भी उठा। एक जनहित याचिका दाखिल कर आरोप लगाया गया कि कुत्तों को एमसीडी ने अवैध तरीके से पकड़ रखा है। याचिका पर एमसीडी ने दिल्ली हाई कोर्ट में दलील देते हुए कहा है था कि स्ट्रीट डॉग्स को सिर्फ जी-20 इवेंट की वजह से पकड़ा गया था और अब उन्हें उसी इलाके में छोड़ा जा रहा है, जहां से उन्हें पकड़ा गया था। इन कुत्तों को बगैर नसबंदी के छोड़ा गया। अब यह समस्या देश की राजधानी का भी सिरदर्द बन चुकी है।

आवारा कुत्तों और बिल्लियों की संख्या को लेकर दि स्टेट ऑफ पेट होमलेसनेस इंडेक्स डाटा फॉर इंडिया की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि देश में आवारा कुत्तों की संख्या लगभग 6.2 करोड़ है, वहीं ऐसी बिल्लियों की संख्या करीब 91 लाख है। करीब 88 लाख कुत्ते और बिल्लियां शेल्टर होम में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या से भारत के ऑल पेट्स वांटेड स्कोर में भी गिरावट दर्ज की गई है। 10 अंकों के मानक पर इस समय भारत का स्कोर 2.4 है। रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया है कि भारत में 85 फीसदी कुत्ते और बिल्लियां बेघर हैं। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 68 फीसदी लोगों का कहना है कि वह हर सप्ताह कम से कम एक आवारा बिल्ली देखते हैं और लगभग 77 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें आवारा कुत्ते आसानी से देखने को मिल जाते हैं।

भारत की 61 फीसदी जनसंख्या दूरी, प्रतिष्ठा या सुविधाओं जैसे व्यावहारिक कारणों के चलते आवारा कुत्तों के काटने के बाद भी पशु चिकित्सक के पास नहीं जाती है। यह दुनियाभर के औसत 31 फीसदी से कहीं ज्यादा है। पीपल्स फॉर एनिमल्स के अनुसार देश में हर 100 लोगों पर आवारा कुत्तों की संख्या कम से कम तीन है। भारत के अलावा दुनिया के बाकी देशों की बात करें तो रिपोर्ट बताती है कि चीन में बेघर कुत्ते और बिल्लियों की संख्या लगभग 7.5 करोड़ है। वहीं, जर्मनी में यह आंकड़ा 20.6 लाख, मैक्सिको में 74 लाख, रूस में 41 लाख, दक्षिण अफ्रीका में 41 लाख और ब्रिटेन में 11 लाख है। रिपोर्ट में इस मामले को लेकर भारत की स्थिति को चिंताजनक बताया गया है। दूसरी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कुत्तों के काटने की वजह से होने वाली रेबीज बीमारी से मौत के मामले में भारत की भागीदारी 36 प्रतिशत है। समस्या के इतने गंभीर होने के बावजूद जिम्मेदार देश का सरकारी तंत्र गफलत में है।

आवारा कुत्तों को 1960 के पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धारा-38 के तहत संरक्षित किया जाता है। इसका मतलब है कि किसी कुत्ते की उपेक्षा करना या उसका दुरुपयोग करना अवैध है। ऐसा करने वाले व्यक्ति के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। आवारा कुत्ते आज बड़े शहरों में आवारा कुत्ते बहुत बड़े विवाद की वजह हैं। आवारा कुत्तों की वजह से जिंदगी दूभर हो चुकी है। ऐसी घटनाएं आए दिन होती हैं, जिसकी वजह से सैर पर जाने वालों में खौफ रहता है। बच्चों के खेलने के दौरान भी कुत्तों के हमलों का खतरा बना रहता है। दूसरी तरफ ऐक्टिविस्ट की जमात है, जो यह माने बैठे हैं कि यह जानवर बिना छेड़े कुछ कर ही नहीं सकते! सिक्किम में आवारा कुत्तों के खिलाफ एक कार्यक्रम चलाया गया, जो कि बड़े पैमाने पर नसबंदी और वार्षिक एंटी-रेबीज टीकाकरण कार्यक्रम था। इसके चलते सिक्किम में बहुत कम रेबीज केस हैं। मौजूदा नियमों में ऐसे भी परिवर्तन होना चाहिए कि न सिर्फ आवारा कुत्तों की आबादी कम करने पर जोर हो, बल्कि सड़कों को कुत्तों से मुक्त करने का लक्ष्य तैयार किया जाना चाहिए। डॉग लवर्स को भी जिम्मेदार बनाना होगा। देश में विकराल होती जा रही आवारा कुत्तों की समस्या का यदि शीघ्र निदान नहीं किया गया तो यह भी हो सकता है कि किसी दिन विदेशी पर्यटक के शिकार बनने पर भारत को विश्व में शर्मिंदगी का सामना करना पड़े। ऐसी नौबत आए, इससे पहले सरकारी और स्वायत्तशाषी निकायों को इस समस्या का कोई ठोस और स्थायी समाधान निकालना चाहिए।

-योगेन्द्र योगी

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