किसी समय में मजदूरों को दिया जाता था चांदी का सिक्का, हर दिन की दिहाड़ी थी तीन से चार सिक्के, जाने क्यों हुए अचानक बंद

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उसे दौरान बिहारी मजदूरों को तीन से चार रुपए की दिहाड़ी दी जाती थी यानी उन्हें हर रोज तीन से चार चांदी के सिक्के दिए जाते थे। वर्ष 1917 में चांदी के सिक्कों के उपयोग करने पर रोक लगाई गई जो अब तक जारी है। इसके बाद चांदी के सिक्कों की जगह है नोट की छपाई करनी शुरू की गई।

भारत में आज के समय में चांदी की अहमियत बेहद अधिक है। आज के समय में चांदी हजारों रुपए किलो के दम पर बिकती है जो बेहद की कीमती मानी जाती है। आज के समय में चांदी के सिक्के आमतौर पर त्योहारों के समय या शादियों में तोहफे के तौर पर दिए जाते हैं।

चांदी आज भी काफी शुभ मानी जाती है मगर एक समय था जब चांदी का सिक्का हर आम व्यक्ति की जेब में होता था। चांदी का यह सिक्का एक रुपए की कीमत का था जो हर भारतीय के लिए उपयोग करना बेहद आम बात थी। उसे समय चांदी का सिक्का चलन में था।

जानकारी के मुताबिक भारत में पहला ₹1 का सिक्का 1757 में जारी किया गया था जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने जारी किया था। रिपोर्ट्स के अनुसार इस सिक्के का वजन 11.5 ग्राम था, जिसपर ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जॉर्ज II का चि्र बना हुआ था। वर्ष 1757 से 1835 तक₹1 के चांदी के इस सिक्के को ईस्ट इंडिया कंपनी ने मेंट किया। इसके बाद भारत की बागडोर ब्रिटिश हुकूमत को मिली और उसे दौरान भी चांदी का सिक्का चलन में रहा। चांदी का सिक्का रोजमर्रा के कामों में उपयोग में लाया जाता था। बता दे कि उसे दौरान बिहारी मजदूरों को तीन से चार रुपए की दिहाड़ी दी जाती थी यानी उन्हें हर रोज तीन से चार चांदी के सिक्के दिए जाते थे। वर्ष 1917 में चांदी के सिक्कों के उपयोग करने पर रोक लगाई गई जो अब तक जारी है। इसके बाद चांदी के सिक्कों की जगह है नोट की छपाई करनी शुरू की गई।

सिक्के बंद होने का कारण

विश्व युद्ध एक के दौरान चांदी का इस्तेमाल करने की काफी अधिक जरुरत पड़ी थी। इसे देखते हुए चांदी की किल्लत होने लगी थी। चांदी की किल्लत होने के कारण ब्रिटिश सरकार के लिए सिक्के बनाना मुश्किल हो गया था। ऐसे में सरकार ने करंसी को बदला और सिक्के की जगह नोट चलाने की शुरुआत की गई। नोट पर भी शुरुआत में सिक्के की तस्वीर लगाई गई थी ताकि लोग एक रुपये के नोट को सिक्के की मदद से पहचान सकें। वर्ष 1947 तक सिल्वर के सिक्के बनाने जारी रखे गए मगर सिक्कों में चांदी की मात्रा आधी कर दी गई थी।  

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