कास्ट के ‘कांव-कांव’ का चौंकाने वाला सच, बनिया, भूमिहारों, कायस्थों और किन्नरों से ‘खेल’, मौज में शेख!

हाइलाइट्स

बिहार में जातीय जनगणना सर्वे रिपोर्ट को लेकर प्रदेश में सियासत गर्म.
मुसहर समाज के साथ ‘छल’ को लेकर जीतन राम मांझी ने उठाए सवाल.
कायस्थों, भूमिहारों, बनिया और किन्ररों की संख्या कम दिखाने पर सवाल.
मुस्लिमों में पसमांदा- अशराफ के दावों के बीच चौंकाने वाली हकीकत.

पटना. बिहार जाति जनगणना सर्वे रिपोर्ट के अनुसार बिहार की आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है. इनमें सबसे बड़ी संख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है. 4 करोड़ 70 हजार 80 हजार 514 आबादी के साथ इसकी हिस्सेदारी 36 प्रतिशत बताई गई है. वहीं, दूसरे नंबर पर ओबीसी में शामिल जातियों की आबादी 3 करोड़ 54 लाख 63 हजार 936 है और यह करीब 27 प्रतिशत है. अनुसूचित जाति की कुल संख्या 2 करोड़ 56 लाख 89 हजार 820 बताई गई है, जो 19 प्रतिशत है. इसमें सामान्य वर्ग की संख्या 2 करोड़ 2 लाख 91 हजार 679 है जो करीब 15.52 प्रतिशत है. हालांकि, इस आंकड़े में शामिल अलग-अलग जातियों की आबादी को लेकर बिहार में घमासान छिड़ गया है. जातीय गणना सर्वे रिपोर्ट पर विभिन्न जातियों की ओर से आपत्तियां जताई गई हैं. जानकारों की नजर में इस रिपोर्ट में कम से कम पांच ऐसी जातियां हैं जिनके आंकड़े चौंकाते हैं.

बिहार में जाति आधारित सर्वे के डेटा पर सर्वे के मैकेनिज्म और पारदर्शिता के मानकों को लेकर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अनुसूचित जाति में मुसहर और भूइयां की आबादी कम दिखाने को लेकर सवाल खड़ा किया है. वहीं, कुशवाहा, तेली-साहू और विभिन्न जातियों की ओर से आपत्ति जताई जा रही है. हालांकि, 2 अक्टूबर जारी आंकड़े के बाद बिहार सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई थी जिसमें सीएम नीतीश ने अधिकारियों से इसमें सुधार करने के लिए कहा था. जानकार कहते हैं कि भूमिहार, कायस्थ, शेख, बनिया और किन्नर जातियों के आंकड़े काफी हैरान करनेवाले हैं. आइये जानते हैं ऐसा क्यों कहा जा रहा है.

भूमिहार बिरादरी को झटका
बिहार में भूमिहार जाति के नेताओं का दावा रहता था कि उनकी आबादी 6 प्रतिशत के आसपास है, लेकिन जाति जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, भूमिहार महज 2.85 प्रतिशत हैं. 1931 सर्वे में बिहार में भूमिहारों की आबादी करीब 3.6 प्रतिशत के आसपास थी. दरअसल, बिहार की राजनीति में दबंग कही जानी वाली भूमिहार बिरादरी के 21 विधायक हैं. यानी 243 विधानसभा सीटों में करीब 9 प्रतिशत सीटों पर इनके विधायक हैं. अब जब जातिगत जनगणना के आंकड़े सामे आए हैं तो इनकी हिस्सेदारी के अनुसार भागीदारी को लेकर सवाल खड़े होंगे.

शेख (मुस्लिम) बिरादरी ने चौंकाया
भारतीय मुसलमानों में शेख सवर्ण हैं. अब तक यही माना जाता कि प्रदेश में अंसारी (पसमांदा-पिछड़े मुसलमान) की तुलना में शेख कम हैं, लेकिन भागीदारी अधिक है. कई बार इसको लेकर मुस्लिम समाज में राजनीति भी होती रही है. लेकिन, जातीय सर्वे रिपोर्ट ने इस अवधारणा को तोड़ दिया है. राज्य में शेख मुसलमानों की संख्या 3.8217 प्रतिशत है और मुसलमानों की कुल आबादी का 22 प्रतिशत है. वहीं, अंसारी मुसलमानों की संख्या 3.545 प्रतिशत है. यहां यह भी चौंकानेवाली बात है कि सवर्ण की सभी जातियों में शेख की आबादी सबसे ज्यादा है. बिहार में सवर्ण समुदाय की आबादी 15 प्रतिशत से अधिक है. इसमें शेख 3.86%, ब्राह्मण 3.66%, राजपूत 3.45% प्रमुख रूप से शामिल हैं.

बनिया समुदाय की हिस्सेदारी
जातीय सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बनिया की आबादी 2.32 प्रतिशत है. 1931 के जनगणना की मानें तो बनिया की आबादी बिहार में करीब 6 प्रतिशत था. वहीं, बिहार में बनिया जाति से आने वाले नेताओं का दावा खुद के 8 प्रतिशत होने का रहा है. ऐसे में बनिया समाज की ओर से कहा जा रहा है कि उनकी संख्या को जनबूझकर कम दिखाया गया है. कहा जाता है कि वैश्य या बनिया जाति में कुल 56 उपजातियां आती है, लेकिन बिहार सरकार ने कई जातियों को अलग अलग करके जनगणना प्रकाशित किया है. इसके लिए जरूरत पड़ी तो कोर्ट जाएंगे. बता दें कि बिहार की राजनीति में बनिया समुदाय के (उपजातियों को जोड़कर) करीब 20 विधायक हैं.

कायस्थों के साथ हो गया बड़ा खेल!
जाती सर्वे में सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा कायस्थों का है. इसके मुताबिक, कायस्थ समुदाय की आबादी 7 लाख 85 हजार 771 (0.6%) है. लेकिन, 1931 के जातीय जनगणना में कायस्थों की आबादी 1.2 प्रतिशत के आसपास थी. वहीं, 2011 की जनगणना के अनुसार कायस्थों की आबादी 1.52 प्रतिशत है. हालांकि, कायस्थ समुदाय के नेताओं का दावा रहा है कि उनकी आबादी 4 प्रतिशत है. लेकिन, जातीय रिपोर्ट आने के बाद सियासी चर्चाओं की दिशा ही बदल गई है. वर्तमान में विधानसभा में 3 कायस्थ विधायक हैं और विधानसभा में उनका हिस्सेदारी 1.23 फीसदी है.

किन्नरों से किस बात की निकाली खुन्नस!
बिहार जातीय जनगणना सर्वे के में सबसे बड़ा झटका किन्नर समुदाय को माना जा रहा है. दरअसल, सर्वे में किन्नर समुदाय की कुल संख्या सिर्फ 852 बताई गई है, जिसका समुदाय के लोगों ने विरोध किया है. किन्नर एसोसिएशन का कहना है कि जानबूझकर हम लोगों की संख्या को कम किया गया है. पहले तो सरकार हम लोगों को जाति में गिनकर गलत किया है और उसमें भी संख्या सही-सही नहीं बतायी गयी. किन्नर एसोसिएशन का दावा है कि बिहार में उनकी संख्या 41000 के आसपास है. सिर्फ पटना में 2-3 हजार किन्नर हैं. बिहार में 5 हजार से ज्यादा किन्नरों के पास वोटर कार्ड हैं, फिर हमारी संख्या 852 कैसे हो सकती है? बता दें कि 2020 के विधानसभा चुनाव में हथुआ सीट पर लोजपा टिकट से चुनाव लड़े मुन्ना किन्नर को करीब 10 हजार वोट मिले थे.

कास्ट के 'कांव-कांव' का चौंकाने वाला सच, बनिया, भूमिहारों, कायस्थों और किन्नरों से 'खेल', मौज में शेख!

यह समीकरण भी जानना जरूरी
यहां यह बता दें कि कुल 215 जातियों में 1995 जातियां ऐसी हैं जिनमें से अब तक किसी ने संसद की दहलीज तक नहीं देखी है, क्योंकि मुख्य तौर पर समाज की 20 दबंग जातियों का ही दबदबा रहा है. जातिगत आधारित सर्वे में 190 जातियों की संख्या 1 प्रतिशत से भी कम है. 10 जातियां तो ऐसी है, जिसकी संख्या 400 से भी कम है. इन 190 जातियों का कुल वोट करीब 20 प्रतिशत है. जो एक साथ आने पर किसी भी सियासी समीकरण को बदल सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, सवर्ण समुदाय से सैय्यद, पठान और कायस्थ की आबादी 1 प्रतिशत से कम है. बाकी की 5 जातियों की संख्या 2 प्रतिशत से ज्यादा है. वहीं बिहार में 2400 से अधिक ऐसे भी लोग हैं, जो किसी जाति या धर्म को नहीं मानते हैं.

Tags: Bihar Government, Caste Based Census, Caste Census, Nitish Government, बिहार

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