अभिषेक माथुर/हापुड़. उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले की तीर्थनगरी गढ़मुक्तेश्वर में कार्तिक पूर्णिमा का मेला लगा हुआ है. इस मेले को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गंगा स्नान के लिए सबसे बड़ा मेला माना जाता है. यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु स्नान और दीपदान के लिए आते हैं. अगर आप भी इस मेले में शामिल होने के आ रहे हैं, तो यहां तीर्थनगरी के प्राचीन मंदिरों में दर्शन करना, बिल्कुल न भूलें.
आपको बता दें कि गढ़मुक्तेश्वर में गंगा नदी से करीब पांच किलोमीटर दूर सबसे प्राचीन मंदिर गंगा मंदिर है. इस मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई थी, इसका कोई निश्चित प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. मंदिर के नए स्वरूप को बने हुए भी करीब 600 वर्ष हो चुके हैं. इस मंदिर में मां गंगा के साथ-साथ ब्रह्मा जी की एक सफेद मूर्ति स्थापित है. इतना ही नहीं यहां एक चमत्कारी शिवलिंग भी है. यह गंगा मंदिर ऊंचाई पर है. मंदिर में जाने के लिए श्रद्धालुओं को लंबी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. कहा जाता है कि मंदिर की सीढ़ियों पर कोई पत्थर फेंकता है, तो सीढ़ियों से पानी में पत्थर फेंकने जैसी आवाज आती है.
परशुराम ने की थी मंदिर की स्थापना
गढ़मुक्तेश्वर में गंगा मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक शिव मंदिर भी है. जिसे झार खण्डेश्वर मंदिर और मुक्तेश्वर मंदिर कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस मंदिर की स्थापना भगवान शिव ने परशुराम से कराई थी. शिवपुराण के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा तपस्या में मंदराचल पर्वत पर लीन थे, तभी शिव के गणों ने वहां पहुंचकर महर्षि दुर्वासा का उपहास उड़ाया, जिससे क्रोधित होकर दुर्वासा ने शिव के गणों को पिशाच बनने का श्राप दे दिया. श्राप सुनकर गण महर्षि के चरणों में गिरकर श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगे. तब महर्षि दुर्वासा ने कहा कि वह शिवबल्लभ जाकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान शिव की तपस्या करें. शिव के गणों ने जब उनकी तपस्या की तो भगवान शिव ने प्रसन्न होकर पिशाच बने गणों को मुक्ति दे दी. तभी से यह जगह भी शिवबल्लभपुर से गढ़मुक्तेश्वर हो गई.
महादेव के दर्शन से मिलती है कष्टों से मुक्ति
आपको बता दें कि यहां मुक्तेश्वर मंदिर की ऐसी मान्यता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही परेशानी और कष्ट से मुक्ति मिल जाती है. यही वजह है कि इस मंदिर में साल के हर महीने में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लेकिन सबसे अधिक भीड़ कार्तिक मास के दौरान ही रहती है. यहां स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन जरूर करते हैं. इसके अलावा यहां नक्का कुआं भी है, जो काफी प्राचीन है. इस कुएं के बारे में मान्यता है कि प्राचीन समय में यह कुआं गंगा के पानी से भर जाता था. इस कुएं का रास्ता गंगा से मिला हुआ है.
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FIRST PUBLISHED : November 23, 2023, 11:51 IST