काफी पौराणिक है ददरी का मेला, भृगु ऋषि ने की थी इसकी शुरुआत, जानें महत्व

सनन्दन उपाध्याय/बलिया: जिले में लगने वाला ददरी मेला न केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि ऐतिहासिक के साथ पौराणिक भी है. यह मेला महर्षि भृगु ने अपने शिष्य दर्दर मुनि के नाम से प्रारंभ किया. इस मेले का संबंध सीधे महर्षि भृगु मुनि के तपस्या से जुड़ा हुआ है. कार्तिक पूर्णिमा में लगने वाले इस ददरी मेले का महत्व अनंत है. मान्यता है कि जो गंगा स्नान करके महर्षि भृगु के चरणों पर जल चढ़ाता है उसके जन्मों जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं. उसके बाद वह महर्षि दर्दर के नाम पर लगने वाले ददरी मेले में जाकर भ्रमण करता है. यहां देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इस ददरी मेले में एक मीना बाजार और मीना बाजार थाना भी स्थापित होता है. जिसकी कहानी भी काफी प्राचीन और मुगल शासको से जुड़ी हुई है. 27 नवंबर 2023 से लखनऊ के तर्ज पर दिखेगा यह ऐतिहासिक और पौराणिक ददरी मेला.

इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि 1707 ईस्वी में मुगल शासको ने इस ऐतिहासिक और पौराणिक ददरी मेले को एक नया आयाम दिया. जो इस मेले के महत्व को समाप्ति के कगार पर ले जाने का एक माध्यम बना. कालांतर में वह सारे अराजक तथ्य समाप्त हो गए लेकिन नाम आज भी बरकरार है. जिसको पौराणिक तथ्यों के हिसाब से परिवर्तित करने की आवश्यकता है.

ये है इस मीना बाजार/थाने की पूरी कहानी…

इतिहासकार बताते हैं कि परंपरागत प्राचीन व्यवस्था के अनुसार याज्ञिक कल्पवास की व्यवस्था क्षेत्रीय भूपतियों एवं नागरिकों के दान से क्षेत्रीय संत महात्माओं द्वारा होती रही है. मेले में आए व्यापारियों से कर वसूली का कार्य बादशाह के नियुक्त जमींदारों के लोग प्राचीन काल में करते थे. मुगल शासक अकबर औरंगजेब के शासनकाल में सन 1707 ईस्वी में इस मेले में नृतकियों का आना प्रारंभ हुआ. जो अपने नृत्य गायन से यहां आने वाले लोगों का मनोरंजन करती थी. मुगल शासकों ने उनके लिए एक पृथक बाजार ही बना दिया. जिसका नाम उन लोगों ने मीना बाजार रखा इसलिए उन्होंने अलग से सुरक्षा व्यवस्था भी किया. कालांतर में इस मीना बाजार में युवतियों/महिलाओं की खरीद के साथ-साथ सौंदर्य के सामानों की बिक्री भी होने लगी. सोने चांदी के आभूषणों में जड़ी कीमती रत्न भी बिकने लगे. इस मीना बाजार में नर्तकियों के नाच गाना, मदिरा पान और विविध प्रकार के जुए, सट्टे के खेल और तमाशा ने एक नया आयाम इस याज्ञिक परंपरा के मेले में जोड़ दिया.

मुगल शासको ने किया मीना बाजार के साथ थाने की शुरुआत…

मुनि दर्दर के नाम पर लगने वाले ददरी मेले में जहां मुगल शासको ने मीना बाजार बनाया. वहीं एक मीना बाजार थाना भी बना दिया. वर्तमान में मुगलों के द्वारा लागू किए गए अराजक तथ्यों को समाप्त कर दिया है लेकिन नाम आज भी बरकरार है. दर्दर मुनि के नाम पर लगने वाले इस धार्मिक ददरी मेले में लगने वाले मीना बाजार और मीना बाजार थाने का नाम ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्यों के अनुसार ददरी मेला और ददरी थाना कर देना ही उचित है.

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