कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सीमाओं को बाधा नहीं मानना चाहिए : केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह

अमित शाह ने यहां ‘‘राष्ट्रमंडल कानूनी शिक्षा संघ (सीएलईए)- राष्ट्रमंडल अटॉर्नी और सॉलिसिटर जनरल सम्मेलन” (सीएएसजीसी) को संबोधित करते हुए कहा कि जब हाल ही में बनाए गए तीन आपराधिक न्याय कानून लागू हो जाएंगे, तो प्राथमिकी दर्ज होने के तीन साल के भीतर ही लोगों को उच्च न्यायालय के स्तर तक न्याय मिल सकता है.

उन्होंने कहा कि यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब वाणिज्य और अपराध के मामलों में भौगोलिक सीमाओं का कोई मतलब नहीं रह गया है.

केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि न्याय मिलने की प्रक्रिया के लिए सीमा पार चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन वाणिज्य, संचार, व्यापार तथा अपराध के लिए कोई सीमा नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘‘अपराध और अपराधी भौगोलिक सीमाओं का सम्मान नहीं करते हैं. इसलिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों को भौगोलिक सीमाओं को बाधा नहीं मानना चाहिए. भविष्य में आपराधिक मामलों के समाधान के लिए भौगोलिक सीमाएं एक अहम बिंदु होनी चाहिए.”

गृह मंत्री शाह ने कहा कि सरकारों को इस दिशा में काम करने की जरूरत है, क्योंकि साइबर धोखाधड़ी के छोटे मामलों से लेकर वैश्विक संगठित अपराध तक, स्थानीय विवाद से लेकर सीमा पार विवाद तक, स्थानीय अपराध से लेकर आतंकवाद तक, सभी में कुछ ना कुछ संबंध हैं.

उन्होंने भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का जिक्र करते हुए कहा कि तीन नए कानूनों के पूर्ण कार्यान्वयन के बाद भारत में दुनिया की सबसे आधुनिक आपराधिक न्याय प्रणाली होगी.

ये कानून क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. गृहमंत्री ने कहा कि सरकार ने इस मॉडल पर काम किया है कि न्याय के अनिवार्य रूप से तीन पहलू होने चाहिए- सुलभ, किफायती और जवाबदेही.

शाह ने कहा, ‘‘मैं सभी को आश्वस्त करना चाहता हूं कि इन तीन कानूनों के लागू होने के बाद देश में दर्ज किसी भी प्राथमिकी के मामले में उच्च न्यायालय के स्तर तक, तीन साल के भीतर न्याय होगा.”

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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