कानपुर में महापुरुषों का अपमान! कीचड़ में फेंकी गई मूर्तियां

आयुष तिवारी/कानपुर. कानपुर शहर को विकास की जरूरत है. जिससे शहरवासियों की जिंदगी आसान हो सके. लेकिन, क्या जिन क्रांतिकारियों ने अपने प्राण देकर देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराया. जिनकी बदौलत हम आजाद जिंदगी जी रहे हैं.क्या विकास के नाम पर उनका अपमान होगा. कानपुर की शान कहे जाने वाले इन क्रांतिकारियों को अपमानित करने का गुनाह यूपीएमआरसी ने किया. कानपुर सेंट्रल पर मेट्रो निर्माण के लिए वहां लगाई गई चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, तात्या टोपे आदि शहीदों व महापुरुषों की मूर्तियों को हटाकर खुले आसमान के नीचे कीचड़ में फेंक दिया गया. कई मूर्तियां क्षतिग्रस्त हो गई है.

दानवीर कर्ण जिनके नाम पर अपने शहर कानपुर पहले (कर्णपुर) का नाम पड़ा था. उनकी सेंट्रल स्टेशन पर लगी प्रतिमा को जिस तरह से खुले आसमान के नीचे कीचड़ में फेंका गया है. उसको देखकर लोगों में आक्रोश है. सिर्फ कर्ण ही नहीं अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद, शहीदे आजम भगत सिंह, क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के नायक तात्या टोपे के अलावा शहर को गंगा जमुनी तहजीब सिखाने वाले मौलाना हसरत मोहनी, आजाद हिंद फौज की पहली महिला कैप्टन लक्ष्मी सहगल की भी प्रतिमाएं कीचड़ में सनी पड़ी है.

प्रतिमाओं को किनारे फेका

कानपुर मेट्रो का सेंट्रल स्टेशन के सिटी साइट सर्कुलेटिंग एरिया में अंडर ग्राउंड स्टेशन बन रहा है. इसमें जगह साफ करने के लिए कई चीजें तोड़ी गई हैं. इसी के साथ यहां पर पहचाने कानपुर की थीम पर लगी महापुरुषों व क्रांतिकारियों की प्रतिमाओं को बेदर्दी से तोड़कर किनारे फेंक दिया गया है.काम पूरी तरह से अनियोजित चल रहा है. अगर तुड़ाई करनी ही थी तो प्लानिंग करके इन महापुरुषों की प्रतिमाओं को सही तरीके से निकालकर सिटी के अन्य उचित स्थानों पर रखकर शोभा बढ़ाई जा सकती थी. मेट्रो के लिए रास्ता क्लीयर करने का काम मजदूरों के सहारे छोड़ दिया गया. अगर मेट्रो के जिम्मेदार अधिकारी अपनी देखरेख में यह काम कर रहे होते तो शायद इतनी बड़ी चूक होने से बच जाती है. लेकिन, किसी ने ध्यान नहीं दिया.

 मूर्तियों को इस तरह उखाड़ फेंकना शर्मनाक-राघव त्रिपाठी 

वहीं जब मूर्तियों को लगवाने वाली संस्था परिवर्तन के सदस्य राघव त्रिपाठी से बात की तो उनका साफ़तौर पर कहना है कि शहर का विकास हो पर आजादी के दीवानों की मूर्तियों को इस तरह उखाड़ फेंकना शर्मनाक बात है.परिवर्तन संस्था ने पहचान कानपुर के तहत सिटी साइड दानवीर कर्ण, गणेश शंकर विद्यार्थी, चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, कैप्टन लक्ष्मी सहगल के बाद आज के युग के प्रतीक दो बच्चे, तात्या टोपे, हसरत मोहानी और नानाराव पेशवा की मूर्तियों को सिटी साइड  खुले मैदान में पार्क के बगल में स्थापित किया था. मेट्रो के अफसरों ने संस्था से  कहा था कि मूर्तियों को सुरक्षित जगह पर रखा गया है.काम होने के बाद पुनः शिफ्ट करा देंगे.जबकि मौके पर महापुरुषों की मूर्तियां खंडित हुई पड़ी हुई है.

रेलवे ने भी नहीं दिया ध्यान

कानपुर सेंट्रल के सर्कुलेटिंग एरिया में मेट्रो स्टेशन के निर्माण के लिए रेलवे ने जमीन उपलब्ध करवाई थी ऐसे में इन महापुरुषों के इस तरह के अपमान की नैतिक जिम्मेदारी रेलवे अधिकारियों की भी बनती है.स्टेशन के बाहर निकलते ही सिटी की पहचान बताने के लिए ही ‘पहचान ए कानपुर’ रेलवे की सहमति से ही बनाया गया था.इससे सेंट्रल स्टेशन की भी सुंदरता बढ़ गई थी. इसकी देखरेख की जिम्मेदारी भी रेलवे की ही थी.उनको ध्यान देना चाहिए था कि मेट्रो के निर्माण में इन मूर्तियों के साथ छेड़छाड़ तो नहीं की गई. लेकिन रेलवे के अफसरों ने ध्यान नहीं दिया. अब जवाब नहीं दे पा रहे.

Tags: Kanpur city news, Local18

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