कलम के जादूगर “हर्ष काफर”, पहाड़ों के दर्द को दिया कविता का रूप, “चोतारे पर बैठी अम्मा” से हुए फेमस

रोहित भट्ट/ अल्मोड़ा. ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यटन नगरी अल्मोड़ा को बुद्धिजीवियों का शहर भी माना जाता है. यहां के कई लेखक और कवि रहे हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं से हर किसी को अपनी और आकर्षित किया है, उनमें से एक हैं उत्तराखंड के “जन कवि” गिरीश तिवारी गिर्दा. अब एक ऐसे ही उभरते हुए युवा कवि से आज हम आपको मिलाने जा रहे हैं, जो अपनी कविताओं से हर किसी के दिल को छू लेता है. इनका नाम है हर्ष काफर . हर्ष कुमाऊंनी और हिंदी में कविताएं लिखते हैं और अपनी कविताओं को सुनाकर हर किसी को मोहित कर देते हैं. उनकी कई कविताएं लोगों को खूब पसंद आती हैं.

‘लोकल 18’ ने अल्मोड़ा के सोमेश्वर गांव में रहने वाले हर्ष काफर से खास बातचीत की. उन्होंने कहा कि वह पिछले कई सालों से कविताएं लिख रहे हैं. हिंदी और कुमाऊंनी कविताएं उन्हें लिखना काफी पसंद है. उनकी सोच थी कि हिंदी और कुमाऊंनी कविताओं को मिक्स करके लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाए, जिसे लोगों ने काफी पसंद भी किया है. उनको लगता है कि पहाड़ों के बारे में लिखा जाए और लोगों को बताया जा सके कि लोग कैसे पहाड़ों में रहते हैं और उनका जीवन कैसा होता है.

कविताओं में पलायन का दर्द
हर्ष काफर ने कहा कि “अम्मा दी टाइम मशीन” कविता उन्होंने डेढ़ साल पहले लिखी थी. गांव से पलायन कर रहे थे और सारे पुरुष गांव छोड़कर जा रहे हैं और सिर्फ अम्मा गांव में बची हुई हैं. इसको लेकर उन्होंने कविता लिखी थी ‘चोतारे पर बैठी अम्मा’ जिसको लोगों ने काफी पसंद किया. उन्होंने इस कविता को हिंदी और कुमाऊंनी के माध्यम से लोगों के सामने प्रस्तुत किया है, जो हर कोई इसे समझ सके.

कविताओं के लिए पहाड़ों की जिंदगी में लौटना होगा
हर्ष काफर ने कहा कि आजकल हर कोई कविता लिख रहा है, पर उनकी कविता लोगों तक नहीं पहुंच पाती है. इसके लिए जो भी कविता लिख रहा है, उसे पहले कविता के लिए जीना पड़ेगा और अपनी बात कविताओं के माध्यम से कहनी पड़ेगी. अगर पहाड़ों पर कविता लिखनी है, तो युवाओं को पहाड़ों की जिंदगी में दोबारा से लौटना पड़ेगा क्योंकि जब वह यहां पर रहेंगे, तभी पहाड़ों के बारे में समझेंगे और अपनी कविताओं में बता सकेंगे.

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